आइये आज आपलोगों को किसी भी तरह के कंस्ट्रक्शन को शुरू करने से पहले जो अत्यावश्यक बात है वो बताते हैं । पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण ये चार दिशायें होती है । इन चारों दिशाओं के चारों कोने पर भी चार दिशायें होती हैं, जिसे क्रमशः पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच वाले कोण को आग्नेय कोण कहते हैं । उसी प्रकार क्षीण और पश्चिम दिशा के बीच के कोण को नैऋत्य कोण कहते हैं । पश्चिम और उत्तर के कोण को वायव्य कोण कहते हैं एवं पूर्व और उत्तर के कोण को ईशान कोण कहते हैं ।।
अब आप लोगों को बता दूँ, कि अगर आपके कंस्ट्रक्शन के वायव्य कोण की दिशा बढ़ी हुई है अर्थात् कॉर्नर बढ़ा हुआ है तो आप मुश्किल में आ सकते हैं । आपके भूभाग के वायव्य कोण के बढ़ने से आप कोर्ट कचहरी, के विवाद में पड़ सकते हैं । इतना ही नहीं, इसके बढ़ने से आपके शत्रुओं की संख्या बढ़ने लगती है अर्थात् बढ़ा हुआ ये कोण मित्रों से भी शत्रुता बढ़ाने में आपकी मदद करता है ।।
आपके कंस्ट्रक्शन के वायव्य कोण के बढ़ने से आपके व्यापार एवं आपके व्यवसाय में बहुत शीघ्रता से उतार चढ़ाव होने लगता है, जिससे आपका व्यापार अस्थिर हो जाता है तथा आपकी परेशानियाँ बढ़ने लगती है ।।
आपके जीवन में अस्थिरता आ जाती है तथा आपके आपसी संबन्धों में भी अस्थिरता आ जाती है आपका जीवन अस्त व्यस्त सा हो जाता है ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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