हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, हमारे वैदिक सनातन व्यवस्था में पुनर्जन्म की मान्यता बहुत प्रबल है । हमारे वेदान्त के अनुसार प्राणी का केवल शरीर नष्ट होता है, आत्मा नहीं ! क्योंकि आत्मा तो अमर है । आत्मा एक शरीर के नष्ट हो जाने पर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं ।।
बात जब पुनर्जन्म की करें तो लगभग व्यक्ति उत्सुक हो जाता है ये जानने के लिए कि पूर्वजन्म में वे क्या थे ? साथ ही वे ये भी जानना चाहते हैं, वर्तमान शरीर की मृत्यु हो जाने पर इस आत्मा का क्या होगा ? मित्रों, ज्योतिष शास्त्र में इस विषय पर भी काफी अनुसन्धान किया गया है ।।
किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर उसके पूर्व जन्म और मृत्यु के बाद आत्मा की गति के बारे में जाना जा सकता है । गीताप्रेस गोरखपुर दवारा प्रकाशित परलोक और पुनर्जन्मांक पुस्तक में भी इस विषय पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है । उसके अनुसार शिशु जिस समय जन्म लेता है । उस समय, स्थान व तिथि को देखकर उसकी जन्म कुंडली बनाई जाती है ।।
उस समय के ग्रहों की स्थिति के अध्ययन के फलस्वरूप यह जाना जा सकता है, कि बालक किस योनि से आया है और मृत्यु के बाद उसकी क्या गति होगी ? चलिये इस विषय को ज्योतिषीय योगों के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयत्न करते हैं । ज्योतिष के कुछ विशेष योगों को बता रहे हैं, जिसके विषय में जानकर आप इस विषय को स्पष्ट रूप से समझ जायेंगे ।।
मित्रों, जिस जातक की कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि के अथवा स्वराशि के हों तो निश्चित ही उस जातक ने उत्तम योनि भोगकर यहां जन्म लिया है, ऐसा ज्योतिष शास्त्र का मानना है । लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में योग्य वणिक था, ऐसा मानना चाहिए ।।
लग्नस्थ गुरु इस बात का सूचक है कि जन्म लेने वाला पूर्वजन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था । यदि जन्मकुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा हो तो बालक पूर्वजन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था, ऐसा जानना चाहिए । यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो अथवा तुला राशि का हो तो सम्भवतः ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन व्यतीत करना वाला होगा ।।
मित्रों, लग्न या सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक पूर्वजन्म में राजा अथवा सेठ था एवं जीवन के सभी सुख भोगने वाला था । लग्न, एकादश, सप्तम या चौथे भाव में शनि इस बात का सूचक है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में शुद्र परिवार से संबंधित था एवं पापपूर्ण कार्यों में लिप्त था । यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई, ऐसा ज्योतिष का सिद्धान्त है ।।
किसी जातक की जन्म कुण्डली में चार या इससे अधिक ग्रह नीच राशि के हों तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी, ऐसा जानना चाहिए । कुण्डली में स्थित लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में वणिक पुत्र था एवं विविध क्लेशों से ग्रस्त रहता था । सप्तम भाव, छठे भाव या दशम भाव में मंगल की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में क्रोधी स्वभाव का था तथा कई लोग इससे पीडि़त रहते थे ।।
गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो अथवा पंचम या नवम भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में संन्यासी था, ऐसी मान्यता है । कुण्डली के ग्यारहवें भाव में सूर्य, पांचवें में गुरु तथा बारहवें में शुक्र इस बात के सूचक हैं, कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में धर्मात्मा प्रवृत्ति का तथा लोगों की मदद करने वाला था, ऐसा ज्योतिष का मानना है ।।
मित्रों, व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत क्या गति होती है, इस विषय में आइये विचार करते हैं । मृत्यु के बाद आत्मा की क्या गति होगी या वह पुन: किस रूप में जन्म लेगी, इसके बारे में भी जन्म कुंडली देखकर जाना जा सकता है । आइये देखते हैं कुण्डली के कुछ योगों को जो इस बात को प्रमाणित करते हैं ।।
कुंडली में कहीं पर भी यदि कर्क राशि में गुरु स्थित हो तो जातक मृत्यु के बाद उत्तम कुल में जन्म लेता है ये निश्चित है । लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तथा कोई पापग्रह उसे न देखते हों तो ऐसे व्यक्ति को मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है ।।
अष्टमस्थ राहु जातक को पुण्यात्मा बना देता है तथा मरने के बाद वह राजकुल में जन्म लेता है, ऐसा विद्वानों का कथन है । अष्टम भाव पर मंगल की दृष्टि हो तथा लग्नस्थ मंगल पर नीच शनि की दृष्टि हो तो जातक नरक भोगता है । अष्टमस्थ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक मृत्यु के बाद वैश्य कुल में जन्म लेता है ।।
अष्टम भाव पर मंगल और शनि, इन दोनों ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है । अष्टम भाव पर शुभ अथवा अशुभ किसी भी प्रकार के ग्रह की दृष्टि न हो और न अष्टम भाव में कोई ग्रह स्थित हो तो जातक ब्रह्मलोक प्राप्त करता है ।।
लग्न में गुरु-चंद्र, चतुर्थ भाव में तुला का शनि एवं सप्तम भाव में मकर राशि का मंगल हो तो जातक जीवन में कीर्ति अर्जित करता हुआ मृत्यु के बाद ब्रह्म की प्राप्ति कर लेता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है ।।
लग्न में उच्च का गुरु चन्द्रमा को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो एवं अष्टम स्थान ग्रहों से रिक्त हो तो जातक जीवन में सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है तथा प्रबल पुण्यात्मा एवं मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त करता है । अष्टम भाव को शनि देख रहा हो तथा अष्टम भाव में मकर या कुंभ राशि हो तो जातक योगिराज जैसी पदवी को प्राप्त करता है तथा मृत्यु के बाद विष्णु लोक को प्राप्त करता है ।।
मित्रों, यदि जन्म कुंडली में चार ग्रह उच्च के हों तो जातक निश्चय ही श्रेष्ठ मृत्यु को वरण करता है । ग्यारहवें भाव में सूर्य-बुध हों, नवम भाव में शनि तथा अष्टम भाव में राहु हो तो जातक मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता ही है । कुछ विशिष्ट योगों की चर्चा कर लेते हैं ।।
बारहवां भाव शनि, राहु या केतु से युक्त हो या फिर अष्टमेश से युक्त हो अथवा षष्ठेश से दृष्ट हो तो मरने के बाद अनेक नरक भोगने पड़ते हैं । गुरु लग्न में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो, कन्या राशि का चंद्रमा हो एवं धनु लग्न में मेष का नवांश हो तो जातक मृत्यु के बाद परमपद प्राप्त करता है ।।
अष्टम भाव को गुरु, शुक्र और चंद्र, ये तीनों ग्रह देखते हों तो जातक मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण के चरणों में स्थान प्राप्त करता है, ऐसा ज्योतिष शास्त्र का मत है ।।
मित्रों, इस विडियो में सप्तम भाव के ७ श्लोकों का श्लोक नम्बर १५२ से १५८ तक का विस्तृत विवेचन किया गया है । कुण्डली का सातवाँ भाव जिससे आप आपका विवाह कब होगा ?
वैवाहिक जीवन में होनेवाले सुख-दु:खों के विषय में जानिये । सातवें भाव से पत्नी एवं पत्नी से मिलनेवाले सुख किस प्रकार का होगा ? जानिए इस विडियो टुटोरियल में - https://youtu.be/v30qYQHg_XI
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