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दुर्वा की कोपलों से गणेशजी की पूजा करने से कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है ।।
दुर्वा की कोपलों से गणेशजी की पूजा करने से कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है ।।
astroclassess.blogspot.com
09:24:00
दुर्वा की कोपलों से गणेशजी की पूजा करने से कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है - गणपत्यथर्वशीर्ष ।। Ganapati, Durva & Malamal Weekly.
हैल्लो फ्रेंड्सzzzzz.
मित्रों, क्या आप जानते हैं श्रीगणेश को एक विशेष प्रकार की घास अर्पित की जाती है, जिसे दुर्वा कहते हैं । दुर्वा के कई चमत्कारी प्रभाव हैं । आइये जानते हैं, दुर्वा से जुड़ी कुछ खास बातें । गणपति अथर्वशीर्ष में लिखा है - यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति । अर्थात- जो दुर्वा की कोपलों से (गणपति की) उपासना करते हैं उन्हें कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है ।।
प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं से भगवान की पूजा करने की परंपरा बहुत ही प्राचीन है । जल, फल, पुष्प यहां तक कि कुशा और दुर्वा जैसी घास द्वारा भी अपनी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचाने की सुविधा हमारे शास्त्रों में उपलब्ध है । दुर्वा चढ़ाने से श्रीगणेश की कृपा भक्त को प्राप्त होती है और उसके सभी कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं ।।
इतना ही नहीं हमारे जीवन में भी इस दुर्वा के कई उपयोग होते हैं । दुर्वा को शीतल और रेचक माना जाता है । दुर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है । पशु आहार के रूप में यह पुष्टिकारक एवं ज्ञानवर्धक होती है । प्रात:काल सूर्योदय से पहले दूब पर जमी ओंस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से नेत्र ज्योति बढ़ती है ।।
पञ्चदेव उपासना में भी दुर्वा का महत्वपूर्ण स्थान है, यह गणपति को अतिप्रिय है । हमारे ग्रन्थों में एक कथा है कि धरती पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की । इन्द्रदेव आये परन्तु वो भी उसे परास्त न कर सके । देवगण भगवान शिव के पास गए तब शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ भगवान गणेश ही कर सकते हैं ।।
देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया । परन्तु उसके निगलते ही उनके पेट में जलन होने लगी तब महर्षि कश्यप ने औषधि के तौर पर 21 दुर्वा की गांठ उन्हें खिलाई जिससे उनकी पेट की ज्वाला शांत हो गयी । दुर्वा जिसे आम भाषा में दूब तथा गुजराती में दरोई कहते हैं - एक प्रकार ही घास है ।।
इसकी विशेषता है कि इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरे (लगभग 6 फीट) अन्दर तक जाती हैं । विपरीत परिस्थिति में यह अपना अस्तित्व बखूबी से बचाए रखती है । दुर्वा गहनता और पवित्रता की प्रतीक माना गया है ।।
इसे देखते ही मन में ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होता है । पांच दुर्वा के साथ भक्त अपने पंचभूत-पंचप्राण अस्तित्व को गुणातीत गणेश को अर्पित करते हैं । इस प्रकार तृण के माध्यम से मानव अपनी चेतना को परमतत्व में विलीन कर देता है ।।
तंत्र शास्त्र में भगवान श्रीगणेश को उनकी पूजा में दो, तीन अथवा पांच दुर्वा अर्पण करने का विधान मिलता है । इसके गूढ़ अर्थ हैं, संख्याशास्त्र के अनुसार दुर्वा का अर्थ जीव होता है जो सुख और दु:ख ये दो भोग भोगता है । जिस प्रकार जीव पाप-पुण्य के अनुरूप जन्म लेता है, उसी प्रकार दुर्वा अपने कई जड़ों से जन्म लेती है ।।
दो दुर्वा के माध्यम से मनुष्य सुख-दु:ख के द्वंद्व को परमात्मा को समर्पित करता है । तीन दुर्वा का प्रयोग यज्ञादि में होता है, ये आणव (भौतिक), कार्मण (कर्मजनित) और मायिक (माया से प्रभावित) रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है ।। (शोर्स - गणपत्यथर्वशीर्ष)
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