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दुर्वा की कोपलों से गणेशजी की पूजा करने से कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है ।।


 श्री महागणपतये नम:.



मित्रों, क्या आप जानते हैं श्रीगणेश को एक विशेष प्रकार की घास अर्पित की जाती है, जिसे दुर्वा कहते हैं । दुर्वा के कई चमत्कारी प्रभाव हैं । आइये जानते हैं, दुर्वा से जुड़ी कुछ खास बातें । गणपति अथर्वशीर्ष में लिखा है - यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति । अर्थात- जो दुर्वा की कोपलों से (गणपति की) उपासना करते हैं उन्हें कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है ।।


प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं से भगवान की पूजा करने की परंपरा बहुत ही प्राचीन है । जल, फल, पुष्प यहां तक कि कुशा और दुर्वा जैसी घास द्वारा भी अपनी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचाने की सुविधा हमारे शास्त्रों में उपलब्ध है । दुर्वा चढ़ाने से श्रीगणेश की कृपा भक्त को प्राप्त होती है और उसके सभी कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं ।।


इतना ही नहीं हमारे जीवन में भी इस दुर्वा के कई उपयोग होते हैं । दुर्वा को शीतल और रेचक माना जाता है । दुर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है । पशु आहार के रूप में यह पुष्टिकारक एवं ज्ञानवर्धक होती है । प्रात:काल सूर्योदय से पहले दूब पर जमी ओंस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से नेत्र ज्योति बढ़ती है ।।


पञ्चदेव उपासना में भी दुर्वा का महत्वपूर्ण स्थान है, यह गणपति को अतिप्रिय है । हमारे ग्रन्थों में एक कथा है कि धरती पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की । इन्द्रदेव आये परन्तु वो भी उसे परास्त न कर सके । देवगण भगवान शिव के पास गए तब शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ भगवान गणेश ही कर सकते हैं ।।








तंत्र शास्त्र में भगवान श्रीगणेश को उनकी पूजा में दो, तीन अथवा पांच दुर्वा अर्पण करने का विधान मिलता है । इसके गूढ़ अर्थ हैं, संख्याशास्त्र के अनुसार दुर्वा का अर्थ जीव होता है जो सुख और दु:ख ये दो भोग भोगता है । जिस प्रकार जीव पाप-पुण्य के अनुरूप जन्म लेता है, उसी प्रकार दुर्वा अपने कई जड़ों से जन्म लेती है ।।





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