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"श्री" साधना में मुख्य आराधना योनि रूप में की जाती है ।। The Mein Point of "Shri Sadhana"


हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, समस्त तन्त्र और मन्त्र मूल रूप में देवी कि ही आराधना करते है । इस विषय में शेष, महेश, गणेश, शारदा तथा वेद भी स्वयं इनकी महिमा गाने में असमर्थ हैं । सच्चे भक्तों के सभी प्रार्थना स्वीकार कर देवी माँ भक्तों के प्रति सदैव समर्पित रहती है । अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर माँ भक्तों के मनोनुकूल फल भी दे देती हैं ।।

इस साधना में मुख्य आराधना योनि रूप में की जाती है कारण त्रिपुरसुन्दरी माता का सम्बन्ध कामोत्तेजना से हैं । इस स्वरूप में देवी कामेश्वरी के नाम से पूजित हैं । माता काली के समान ही माँ त्रिपुरसुन्दरी का भी चेतना से ही सम्बंध हैं । देवी त्रिपुरा ब्रह्मा, शिव, रुद्र तथा विष्णु के शव पर आरूढ़ हैं ।।

इस बात का तात्पर्य चेतना रहित देवताओं के शरीर पर माता चेतना रूप से विराजमान हैं । माता त्रिपुरसुन्दरी ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी तथा सरस्वती द्वारा भी पूजिता हैं । कुछ अन्य मतानुसार देवी कमल के आसन पर भी विराजमान हैं, जो अचेत शिव के नाभि से निकलती हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा यम, चेतना रहित शिव को अपने मस्तक पर धारण किये हुए हैं ।।

मित्रों, वैसे तो यन्त्रों की बात करें तो इनकी कोई गिनती ही नहीं है । परन्तु सभी यंत्रो में श्रेष्ठ श्री यन्त्र अथवा श्री चक्र जो साक्षात् देवी त्रिपुरा का ही स्वरूप हैं तथा श्री विद्या या श्री संप्रदाय, पंथ अथवा कुल का निर्माण करती हैं । देवी त्रिपुरा आदि शक्ति हैं और कश्मीर, दक्षिण भारत तथा बंगाल में आदि काल से ही श्री संप्रदाय विद्यमान हैं तथा देवी अराधना की जाती हैं ।।

विशेषकर दक्षिण भारत में देवी माँ "श्री विद्या" के नाम से विख्यात हैं । मदुरै में विद्यमान मीनाक्षी मंदिर, कांचीपुरम में विद्यमान कामाक्षी मंदिर, दक्षिण भारत में हैं तथा यहाँ देवी "श्री विद्या" के रूप में पूजिता हैं । हमारे वाराणसी में विद्यमान राजराजेश्वरी मंदिर में भी जो माँ हैं, वो भी "श्री विद्या" से ही सम्बंधित हैं तथा आकर्षण सम्बंधित विद्याओं की प्राप्ति हेतु प्रसिद्ध हैं ।।

सिद्धियों की प्राप्ति हेतु देवी की उपासना श्री चक्र में होती है, श्री चक्र से सम्बंधित मुख्य शक्ति देवी त्रिपुरसुन्दरी ही हैं । देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध गुप्त अथवा परा शक्तियों अथवा विद्याओं से हैं क्योंकि ये तन्त्रों की ये अधिष्ठात्री मानी जाती हैं । मित्रों, सभी प्रकार के तांत्रिक कर्म देवी माँ की कृपा के बिना सिद्ध एवं सफल नहीं होते हैं ।।

तंत्र में वर्णित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन इत्यादि प्रयोगों की भी देवी ही अधिष्ठात्री है । आदि काल से ही देवी माँ के पीठ कामाख्या में समस्त तंत्र साधनाओं का विशेष विधान हैं । देवी आज भी वर्ष में एक बार ऋतु वत्सला होती है जो ३ दिन का होता है ।

इस समय में असंख्य भक्त तथा साधु, सन्यासी देवी माँ की कृपा प्राप्त करने हेतु कामाख्या पहुँचते हैं । देवी माता के रक्त वस्त्र जो ऋतुस्रव के पश्चात् प्राप्त होता है, प्रसाद के रूप में प्राप्त कर साधकजन उसे अपनी साधना की सिद्धि हेतु अपने पास रखते हैं । क्योंकि किसी भी प्रकार के सिद्धि की सफलता यहाँ आने के उपरान्त ही पूर्णता को प्राप्त होते हैं ।।

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।। नारायण नारायण ।।

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