हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, पूजा करने की सही दिशा क्या है, ये सवाल जब भी हम पूजा पर बैठते हैं, तो हमारे मन में उठता है । सामान्यत: पूर्वाभिमुख होकर पूजन करना ही श्रेष्ठ माना जाता है ।।
इसमें देव प्रतिमा (यदि हो तो) का मुख और दृष्टि पश्चिम दिशा की ओर होती है । इस प्रकार की गई उपासना हमारे भीतर ज्ञान, क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता प्रकट करती है ।।
सम्मुखे अर्थ लाभश्च = देव प्रतिमा के सामने बैठकर पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है । जिससे हम अपने लक्ष्य की तलाश करके उसे आसानी से हासिल कर लेते हैं ।।
परन्तु विशिष्ट उपासनाओं में पश्चिमाभिमुख रहकर पूजन का वर्णन भी मिलता है । इसमें हमारा मुख पश्चिम की ओर होता है और देव प्रतिमा की दृष्टि और मुख पूर्व दिशा की ओर होती है ।।
यह उपासना पद्धति सामान्यत: पदार्थ प्राप्ति या कामना पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है । उन्नति के लिए कुछ ग्रंथ उत्तरभिमुख होकर भी उपासना एवं पूजन का परामर्श देते हैं ।।
मित्रों, दक्षिण दिशा सिर्फ षट्कर्मों के लिए ही प्रयुक्त की जाती है । चलिए लगे हाँथ कुछ वास्तु सिद्धान्तों की बातें करते चले । ईशान कोण में स्टोव कभी न रखें ।।
वास्तु के नियम इसकी अनुमति नहीं देते कारण यह स्थान जल से संबंधित होता है । यहां अग्नि की उपस्थिति अनजाने में गृह क्लेश, मतभेद, अनबन, अपव्यय इत्यादि को आमंत्रित करती है ।।
मित्रों, लोग अक्स़र प्रत्येक कक्ष में कपाट रखते हैं परन्तु कहाँ रखें ? कपाट को दक्षिण-पश्चिम दीवार पर ही रखें इससे घर में सुख-शांति व समृद्धि आती है ।।
यदि घर में गमले में असली पौधे लगाए गए हैं तो उनकी साफ-सफाई करते रहें और सूखे पत्ते हटाते रहें । वहां गंदगी की अधिकता आपके आमदनी के रास्ते बन्द कर सकती है ।।
मित्रों, ऐसे सामान जो बहुत ही कम प्रयोग में आते हैं, के स्टोरेज की सही दिशा नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम कोना है । यदि संभव न हो तो फिर किसी भी कमरे के दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे रखा जा सकता है ।।
ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व के कोने का इस्तेमाल इस तरह के सामान को रखने के लिए कदापि नहीं करना चाहिए । यथासंभव घर में बेकार के सामान रखने ही नहीं चाहिए ।।
मित्रों, यह कबाड़ लक्ष्मी की बहन अलक्ष्मी यानी दरिद्रता का प्रतिनिधित्व करती है । मुख्य द्वार पर कचरा, गंदगी या व्यवधान निश्चित रूप से शुभ फल नहीं देते ।।
इसलिए कचरे का प्रबंध किसी बंद डब्बे में घर के अंदर किया जा सकता है । यदि द्वार के बाहर रखना अनिवार्य ही हो तो इसे किसी बंद डिब्बे में रखें कि यह मुख्य द्वार के ठीक सीधे में न होकर किनारे हो ।।
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वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।
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किसी भी तरह के पूजा-पाठ, विधी-विधान, ग्रह दोष शान्ति आदि के लिए तथा बड़े से बड़े अनुष्ठान हेतु योग्य एवं विद्वान् ब्राह्मण हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ।।
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संपर्क करें:- बालाजी ज्योतिष केंद्र, गायत्री मंदिर के बाजु में, मेन रोड़, मन्दिर फलिया, आमली, सिलवासा ।।
WhatsAap+ Viber+Tango & Call: +91 - 8690 522 111.
E-Mail :: astroclassess@gmail.com
Website :: www.astroclasses.com
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।।। नारायण नारायण ।।।
मित्रों, पूजा करने की सही दिशा क्या है, ये सवाल जब भी हम पूजा पर बैठते हैं, तो हमारे मन में उठता है । सामान्यत: पूर्वाभिमुख होकर पूजन करना ही श्रेष्ठ माना जाता है ।।
इसमें देव प्रतिमा (यदि हो तो) का मुख और दृष्टि पश्चिम दिशा की ओर होती है । इस प्रकार की गई उपासना हमारे भीतर ज्ञान, क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता प्रकट करती है ।।
सम्मुखे अर्थ लाभश्च = देव प्रतिमा के सामने बैठकर पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है । जिससे हम अपने लक्ष्य की तलाश करके उसे आसानी से हासिल कर लेते हैं ।।
परन्तु विशिष्ट उपासनाओं में पश्चिमाभिमुख रहकर पूजन का वर्णन भी मिलता है । इसमें हमारा मुख पश्चिम की ओर होता है और देव प्रतिमा की दृष्टि और मुख पूर्व दिशा की ओर होती है ।।
यह उपासना पद्धति सामान्यत: पदार्थ प्राप्ति या कामना पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है । उन्नति के लिए कुछ ग्रंथ उत्तरभिमुख होकर भी उपासना एवं पूजन का परामर्श देते हैं ।।
मित्रों, दक्षिण दिशा सिर्फ षट्कर्मों के लिए ही प्रयुक्त की जाती है । चलिए लगे हाँथ कुछ वास्तु सिद्धान्तों की बातें करते चले । ईशान कोण में स्टोव कभी न रखें ।।
वास्तु के नियम इसकी अनुमति नहीं देते कारण यह स्थान जल से संबंधित होता है । यहां अग्नि की उपस्थिति अनजाने में गृह क्लेश, मतभेद, अनबन, अपव्यय इत्यादि को आमंत्रित करती है ।।
मित्रों, लोग अक्स़र प्रत्येक कक्ष में कपाट रखते हैं परन्तु कहाँ रखें ? कपाट को दक्षिण-पश्चिम दीवार पर ही रखें इससे घर में सुख-शांति व समृद्धि आती है ।।
यदि घर में गमले में असली पौधे लगाए गए हैं तो उनकी साफ-सफाई करते रहें और सूखे पत्ते हटाते रहें । वहां गंदगी की अधिकता आपके आमदनी के रास्ते बन्द कर सकती है ।।
मित्रों, ऐसे सामान जो बहुत ही कम प्रयोग में आते हैं, के स्टोरेज की सही दिशा नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम कोना है । यदि संभव न हो तो फिर किसी भी कमरे के दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे रखा जा सकता है ।।
ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व के कोने का इस्तेमाल इस तरह के सामान को रखने के लिए कदापि नहीं करना चाहिए । यथासंभव घर में बेकार के सामान रखने ही नहीं चाहिए ।।
मित्रों, यह कबाड़ लक्ष्मी की बहन अलक्ष्मी यानी दरिद्रता का प्रतिनिधित्व करती है । मुख्य द्वार पर कचरा, गंदगी या व्यवधान निश्चित रूप से शुभ फल नहीं देते ।।
इसलिए कचरे का प्रबंध किसी बंद डब्बे में घर के अंदर किया जा सकता है । यदि द्वार के बाहर रखना अनिवार्य ही हो तो इसे किसी बंद डिब्बे में रखें कि यह मुख्य द्वार के ठीक सीधे में न होकर किनारे हो ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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