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ग्रहों की स्थिति के अनुसार कालसर्प दोष का दु:ष्प्रभाव एवं उसका फल ।।



ग्रहों की स्थिति के अनुसार कालसर्प दोष का दु:ष्प्रभाव एवं उसका फल ।। KalSarp Dosh Me Grah Sthitiyon Ka Fal.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, इसके पहले वाले लेख में मैंने कुण्डली में कालसर्प दोष हो और उस कुण्डली में अन्य ग्रहों की स्थिति जिस प्रकार की हो उसके फल के विषय में बहुत विस्तार से वर्णन किया था ।।

परन्तु उसमें से बहुत सी स्थितियों के विषय में चर्चा करना बाकी रह गया था । तो और बाकि के ग्रह स्थिति एवं उसके फल के विषय आज और विस्तार से चर्चा करने का प्रयत्न करते हैं ।।

मित्रों, जन्मकुण्डली में जब भी दशम भाव के नवांश का मालिक ग्रह यदि मंगल, राहु अथवा शनि से युति करे तो ऐसा जातक भयंकर अग्निकांड का शिकार होता है । दशम भाव के नवांश के मालिक ग्रह के साथ राहु या केतु हो तो जातक की दम घुटने से मौत या मृत्यु पर्यन्त कष्ट की आशंका होती है ।।

अष्टम भाव में पाप ग्रहों के साथ राहु बैठा हो तो जातक की मृत्यु सांप काटने से होती है । अगर राहु और मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तो जातक को बहुत कष्ट होता है ।।

अगर राहू को मंगल यदि अपनी पूर्ण चौथी, सातवीं या आठवीं दृष्टि से देख रहा हो तो जातक का कष्ट और भी बढ़ जाता है । मेष, वृष या कर्क लग्न में जन्म लेनेवाले जातक की कुण्डली में राहु अगर.....

प्रथम, तीसरे, चौथे, पाँचवे, छठे, सातवें, आठवें, ग्यारहवें ता बारहवें घर में बैठा हो तो ऐसा राहू जातक को स्त्री, पुत्र, धन-धान्य एवं अच्छे स्वास्थ्य के साथ हर प्रकार का सुख प्रदान करता है ।।

मित्रों, किसी कुण्डली में राहु छठे भाव में हो तथा गुरु केन्द्र में बैठा हो तब भी ऐसे जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है । राहु और चन्द्रमा की युति किसी केन्द्र अथवा किसी त्रिकोण में हो तो जातक के जीवन में सुख-समृद्धि एवं सम्पूर्ण सुख प्राप्त होती है ।।

किसी कुण्डली में शुक्र दूसरे या बारहवें घर में बैठा हो तो जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं । कुण्डली में यदि बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तो जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं ।।

मित्रों, किसी कुण्डली में लग्न एवं लग्नेश यदि उसकी सूर्यकुण्डली अथवा चन्द्रकुण्डली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में बैठे हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों । तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता लगभग समाप्त हो जाती है ।।

कुण्डली के दशम भाव में मंगल बलवान हो एवं किसी अशुभ भाव से युक्त अथवा अशुभ ग्रहों से दृष्ट न हों तो जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता । जब मंगल की युति चन्द्रमा से किसी केन्द्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो....

तथा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों तब भी कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती है । राहु यदि किसी अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तो जातक का कालसर्प योग समृद्धिदायक होता है ।।

छठे भाव में बैठा राहू तथा केन्द्र अथवा दशम भाव में बैठा गुरु जातक के जीवन में धन-धान्य आदि की सदैव वृद्धि करता है । उम्मीद है इस लेख को पढ़कर कालसर्प योग के शुभाशुभ प्रभावों की पर्याप्त जानकारी आपलोगों को हो गयी होगी ।।

मित्रों, स्पष्ट है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा नहीं होता है । लग्नों एवं राशियों में अलग-अलग बैठे ग्रहों की स्थितियों के आधार पर ही जन्मकुण्डली का स्पष्ट और अंतिम निर्णय किया जा सकता है ।।

एक बात का अनुभव तो मैनें अपने जीवन काल में किया है कि अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऐसे लोग ऊंचे पदों पर अवश्य ही पहुंचते हैं । जिसमें भारत के अनेकों प्रधानमन्त्रियों से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक का नाम है ।।

अगर आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है तो निराशा के जगह उसे दूर करने के उपाय करें । शास्त्रानुसार ऐसे दोषों के कई उपाय बताये गए हैं ।जिसे अपनाकर हम हर प्रकार की ग्रह-बाधाओं एवं अपने पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित कर सकते हैं ।।


  
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।।। नारायण नारायण ।।।

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