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मुख्य द्वार की सही दिशा जीवन को खुशियों से भर देता है ।। Main Gate-right direction-Happy Life.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, हमारा घर एवं ऑफिस वास्तु शास्त्र के मुलभुत सिद्धान्तों के अनुसार अगर निर्मित हो अथवा किया जाय तो जीवन को हर प्रकार की खुशियों से भर देता है । इसलिए हमें इस विषय को अपने भवन निर्माण में प्रधानता देनी चाहिए ।।

किसी भी घर अथवा ऑफिस के मुख्य द्वार की सही दिशा से कई प्रकार के लाभ होते हैं । इसलिए सबसे पहले मुख्य द्वार के विषय में जानना अति आवश्यक होता है । मुख्य द्वार कैसा हो किस प्रकार सही रहेगा इसे जानकर ही उसकी दिशा तय करनी चाहिए ।।

मित्रों, घर या ऑफिस में यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं अथवा उसके माध्यम से खुशहाली चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्य द्वार की दिशा और दशा ठीक रखनी चाहिए ।।

जरा-सी सावधानी व्यक्ति को उसके जीवन में ढेरों उपलब्धियों की सौगात दिलाती है । इसलिए वास्तुशास्त्र के अनुसार मानव शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों में से जो महत्ता हमारे मुख की है, वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य प्रवेश द्वार की होती है ।।

मित्रों, साधारणतया किसी भी भवन या ऑफिस में मुख्य रूप से एक या दो द्वार मुख्य द्वारों की श्रेणी के होते हैं । जिनमें से प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की चारदीवारों में प्रवेश करते हैं ।।

दूसरा द्वार भी घर में होता है जिससे हम भवन में प्रवेश करते हैं । भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध होता है । वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं हर प्रकार के वैभव से भर देते हैं ।।

मित्रों, जबकि नकारात्मक मुख्य द्वार जीवन में अनेकों समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं । जहां तक संभव हो पूर्व एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूर्वोत्तर अर्थात ईशान कोण में ही बनाएं ।।

अगर पश्चिम मुखी भवन हो तो पश्चिम-उत्तर के कोण में एवं दक्षिण मुखी भवन हो तो उसमें मुख्य द्वार दक्षिण-पूर्व में रखना चाहिए । यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण न कर सकें ।।

तो भवन के चारो तरफ थोड़ी से जगह छोड़कर मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा का चयन करें । ऐसा कर लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है ।।

मित्रों, नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे या पुरी कड़ियों की लकड़ी का प्रयोग कदापि न करें । मुख्य द्वार का आकार आयताकार ही रखना अत्यंत श्रेयस्कर होता है ।।

ध्यान रखें की मुख्य द्वार की आकृति किसी प्रकार से भी आड़े, तिरछे, न्यून या अधिक कोण न बनाकर सभी कोण समकोण हो । यह त्रिकोण, गोल, वर्गाकार या बहुभुज की आकृति का न हो, इस बात का विशेष ध्यान रखें ।।

मित्रों, बहुत ही महत्वपूर्ण बात ये भी है, कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार को खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की कोई कर्कश आवाज न हो । आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपार्टमेंट को बनाने वाले बिल्डर्स केवल पैसे कमाने के लिए ही मकान बनाते हैं ।।

हालाकि इससे आवास की समस्या का हल तो काफी हद तक लगभग हो जाता है । परन्तु जहाँ तक वास्तु के सिद्धान्तों की बात है तो उसका सम्बन्ध तो आपके और आपके परिवार के निवास से जुड़ा हुआ है ।।

मित्रों, इसलिए जहां तक मुख्य द्वार का सम्बन्ध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं । क्योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं ।।

पंरतु ऐसे में आपके अपने फ्लैट में अंदर आने वाला दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा । जिस भवन को जिस दिशा से सर्वाधिक प्राकृतिक ऊर्जाएं जैसे प्रकाश, वायु, सूर्य की किरणें आदि प्राप्त होंगी, उस भवन का मुख भी उसी ओर माना जाना चाहिए ।।

मित्रों, ऐसी स्थिति में मुख्य द्वार की भूमिका का महत्त्व न्यून हो जाती है । भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊर्जाएं भी विद्यमान हो सकती हैं । वास्तुशास्त्र के अनुसार इन्हें द्वार बेध या मार्ग बेध कहा जाता है ।।

किसी भी प्रकार का द्वार बेध मकान को नकारात्मक ऊर्जा ही देते हैं । जैसे घर मुख्य द्वार पर किसी ऐसे दुकान का होना जहाँ से शोर-शराबे की आवाज आती हो या गली अथवा कोई बिजली का खंभा हो तो ये सिर्फ नकारात्मक उर्जा ही देते हैं ।।

अगर आपके प्रवेश द्वार के बीचोंबीच कोई पेड़ हो अथवा सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हों । इन सबको वास्तुशास्त्र में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा दी जाती है ।।

इस प्रकार के दोष व्यक्ति के जीवन को उद्विग्न कर देते हैं परिवार में कलह अथवा परेशानियों का जमावड़ा हो जाता है । इनसे बचने के लिए अपने घर के लिए जमीन खरीदते समय अथवा घर खरीदते समय ही इसका विशेष ध्यान रखें ।।

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।। नारायण नारायण ।।

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