हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, आज के समय में समस्त मानव समाज अर्थोपार्जन के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के हथकण्डे अपना रहा है, क्योंकि वह नहीं जनता कि अर्थोपार्जन के लिये प्रयत्न और परिश्रम के अतिरिक्त पूर्वजन्मार्जित कर्म फल भी भाग्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।।
एतदर्थ अपने पूर्व जन्म के पूण्य अथवा सत्कर्म के आधार पर ही हमें परमात्मा ने चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि प्रदान किया है । उसमें भी भारी भिन्नता है, जैसे सम्पन्नता-विपन्नता, सुन्दरता-कुरूपता, विद्वता-मुर्खता आदि ।।
इससे स्पष्ट होता है, कि मानव जीवन के नाते अर्थोपार्जन के क्रम में हमें सदा सावधान रहना चाहिये । शास्त्र विहित विधान का उल्लंघन करके जीवन में सफलता की आशा नहीं की जा सकती ।।
सफलता यदि बबुल तले आम की तरह किसी व्यक्ति विशेष को मिल भी जाय तो वह स्थायी नहीं होती और भविष्य में उसे अनेक कंटकाकीर्ण मार्गों का कष्ट झेलना पड़ता है और उसकी संम्पन्नता विपन्नता के रूप में परिणत हो जाती है ।।
अब हम ज्योतिष शास्त्रानुसार जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहों के आधार पर राजयोग का वर्णन कर रहे हैं । जिस जातक की कुण्डली में जन्म लग्न से दशम स्थान में बुध-सूर्य हों और छठे घर में मंगल राहू हों तो राजयोग का निर्माण होता है ।।
जिस जन्मकुण्डली में गुरु और शनि के बीच में समस्त ग्रह बैठे हों तो राजयोग बनता है । जिस जातक के जन्म लग्न से तीसरे भाव में बृहस्पति तथा आठवें में शुक्र हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में स्थित हों तो निश्चय ही राजयोग बनता है ।।
मित्रों, किसी कुण्डली में बाकि के सारे ग्रह चाहे जहाँ भी बैठे हों केवल बृहस्पति यदि पूर्ण बलवान होकर किसी केन्द्र बैठा हो तो सभी ग्रह शुभफलदायी हो जाते हैं और जातक विद्वान्, दीर्घायु तथा अतुलनीय धनवान होता है ।।
जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति तृतीय भाव में तथा चन्द्रमा ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो जातक सर्वगुणसंपन्न तथा सभी साधनों से युक्त होकर अपने कुल का दीपक होता है ।।
मित्रों, आगे हम अपने अगले लेख में कुछ और भी प्रभावी ज्योतिष का ज्ञान लेकर आयेंगे । अत: ज्योतिष के गूढ़-से-गूढ़ ज्ञान एवं अन्य हर प्रकार के टिप्स & ट्रिक्स के लिए हमारे फेसबुक के ऑफिसियल पेज को अवश्य लाइक करें - Astro Classes, Silvassa.
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किसी भी तरह के पूजा-पाठ, विधी-विधान, ग्रह दोष शान्ति आदि के लिए तथा बड़े से बड़े अनुष्ठान हेतु योग्य एवं विद्वान् ब्राह्मण हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ।।
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संपर्क करें:- बालाजी ज्योतिष केंद्र, गायत्री मंदिर के बाजु में, मेन रोड़, मन्दिर फलिया, आमली, सिलवासा ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
मित्रों, आज के समय में समस्त मानव समाज अर्थोपार्जन के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के हथकण्डे अपना रहा है, क्योंकि वह नहीं जनता कि अर्थोपार्जन के लिये प्रयत्न और परिश्रम के अतिरिक्त पूर्वजन्मार्जित कर्म फल भी भाग्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।।
एतदर्थ अपने पूर्व जन्म के पूण्य अथवा सत्कर्म के आधार पर ही हमें परमात्मा ने चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि प्रदान किया है । उसमें भी भारी भिन्नता है, जैसे सम्पन्नता-विपन्नता, सुन्दरता-कुरूपता, विद्वता-मुर्खता आदि ।।
इससे स्पष्ट होता है, कि मानव जीवन के नाते अर्थोपार्जन के क्रम में हमें सदा सावधान रहना चाहिये । शास्त्र विहित विधान का उल्लंघन करके जीवन में सफलता की आशा नहीं की जा सकती ।।
सफलता यदि बबुल तले आम की तरह किसी व्यक्ति विशेष को मिल भी जाय तो वह स्थायी नहीं होती और भविष्य में उसे अनेक कंटकाकीर्ण मार्गों का कष्ट झेलना पड़ता है और उसकी संम्पन्नता विपन्नता के रूप में परिणत हो जाती है ।।
अब हम ज्योतिष शास्त्रानुसार जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहों के आधार पर राजयोग का वर्णन कर रहे हैं । जिस जातक की कुण्डली में जन्म लग्न से दशम स्थान में बुध-सूर्य हों और छठे घर में मंगल राहू हों तो राजयोग का निर्माण होता है ।।
जिस जन्मकुण्डली में गुरु और शनि के बीच में समस्त ग्रह बैठे हों तो राजयोग बनता है । जिस जातक के जन्म लग्न से तीसरे भाव में बृहस्पति तथा आठवें में शुक्र हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में स्थित हों तो निश्चय ही राजयोग बनता है ।।
मित्रों, किसी कुण्डली में बाकि के सारे ग्रह चाहे जहाँ भी बैठे हों केवल बृहस्पति यदि पूर्ण बलवान होकर किसी केन्द्र बैठा हो तो सभी ग्रह शुभफलदायी हो जाते हैं और जातक विद्वान्, दीर्घायु तथा अतुलनीय धनवान होता है ।।
जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति तृतीय भाव में तथा चन्द्रमा ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो जातक सर्वगुणसंपन्न तथा सभी साधनों से युक्त होकर अपने कुल का दीपक होता है ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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