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आपकी जन्मकुण्डली में संतान सुख प्राप्ति के कुछ उत्तम योग ।।




आपकी जन्मकुण्डली में संतान सुख प्राप्ति के कुछ उत्तम योग ।। Astrology And Santan Sukh, Part-2.


हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz, मित्रों, मैंने अपने पिछले सन्तान सुख वाले लेख में आपलोगों को वादा किया था कि अपने अगले लेख में सन्तान सुख प्राप्ति के ज्योतिष के कुछ उत्तमोत्तम योगों की चर्चा करेंगे । तो चलिए आज कुछ सर्वोत्तम श्रेणी के ज्योतिषीय योग जो की सन्तान देते हैं, की चर्चा कर लेते हैं ।।

किसी भी जन्मकुण्डली के पञ्चम भाव में गुरु, शुक्र, बुध एवं शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा स्वराशि, मित्र राशि, उच्च राशि अथवा नवांश में बलवान होकर शुभ अवस्था में बैठे हों या इनकी पूर्ण दृष्टि पञ्चम भाव या उसके स्वामी पर हो तो उत्तम सन्तान का योग बनता है ।। मित्रों, पञ्चम भाव में बैठी राशि का स्वामी स्वराशि, मित्र राशि, उच्च राशि का अथवा नवांश का हो और लग्न से केन्द्र, त्रिकोण या किसी अन्य शुभ स्थान पर शुभ ग्रहों से युक्त अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तथा संतान कारक गुरु भी स्वराशि, मित्र राशि, उच्च राशि का अथवा नवांश का हो तो उत्तम सन्तान का योग बनता है ।।

कुण्डली में गुरु लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त एवं शुभ दृष्ट हो तथा गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त या दृष्ट हो तो निश्चित रूप से उत्तम संतान सुख की प्राप्ति होती है । शनि, मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्वराशि, मित्र राशि, उच्च राशि का अथवा नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं ।। मित्रों, वैसे तो कहा जाता है, कि पंचम भाव, पंचमेश तथा सन्तान कारक गुरु तीनों जन्मकुण्डली में बलवान हों तो संतान का सुख उत्तम, दो ग्रह बलवान हों तो मध्यम और एक ग्रह बलवान हो तो सन्तान सुख सामान्य सुख  होता है ।।

सप्तमांश कुण्डली के लग्न का स्वामी जन्मकुण्डली में बलवान हो, शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त एवं दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती ही है ।। मित्रों, जन्मकुण्डली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति, दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है । लग्नेश पंचम भाव में मित्र राशि का, अपनी उच्च राशि का अथवा अपने नवांश का हो तो निश्चित ही जातक को सन्तान सुख प्राप्त होता है ।।

पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो सन्तान सुख देता है । पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है । जन्मकुण्डली में गुरु स्वराशि, मित्रराशि, अथवा अपनी उच्च राशि का अथवा अपने नवांश का होकर लग्न से किसी शुभ भाव में स्थित हो तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है ।। मित्रों, ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर बैठे हों तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है । गुरु से पंचम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है । गुरु के अष्टक वर्ग में पंचम स्थान में बलवान ग्रहों द्वारा प्रदत्त पांच या अधिक शुभ बिंदु हों तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है ।।

सप्तमांश कुण्डली के लग्न का स्वामी बलवान हो कर जन्मकुण्डली में शुभ भाव में स्थित हो तो सन्तान सुख की प्राप्ति होती है । अब हम अपने अगले लेख में सन्तान बाधा के कारण और निवारण के विषय में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे तथा साथ ही कुछ और ज्योतिषीय योगों का वर्णन करेंगे ।। वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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