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कुण्डली में गर्भ धारण के लिये कुछ महत्वपूर्ण योग ।। Janmakundli And GarbhDharan Time.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
Hanuman Ji.


मित्रों, चाणक्य ने लिखा है, कि न पुत्रसंस्पर्शात् परं सुखम् = अर्थात् पिता दिन भर का थका-हारा हुआ जब घर आये और उसका छोटा सा पुत्र दौड़कर आकर उसके शरीर से लिपट जाये; इससे बड़ा सुख गृहस्थ जीवन का और कोई नहीं है; न ही हो सकता है ।।

चाणक्य ने लिखा सो लिखा; परन्तु हर एक गृहस्थ व्यक्ति सन्तान चाहता है । सन्तान प्राप्ति हेतु लोग क्या नहीं करते ? अर्थात करणीय-अकरणीय कुछ भी लोग करने को तत्पर रहते हैं सन्तान सुख की प्राप्ति हेतु । गृहस्थ जीवन सन्तान सुख के बिना सुना-सुना सा लगता है अधुरा सा लगता है ।।

मित्रों, उसमें भी अगर सन्तान लायक हो तो सोने पे सुहागा हो जाता है । जीवन का आनन्द हजार गुना बढ़ जाता है । एक पुत्र जब १०वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो जाय तो लोग फेसबुक पर सैकड़ों लोगों को टैग करते हैं लिखकर की मेरा बेटा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ है ।।


एक पिता का सीना ५६ इंच का हो जाता है मात्र इतने से ही । सोंचो जिस पिता की सन्तान आईएएस. आईपीएस. तथा वैज्ञानिक बन जाये तो उसके पिता के जीवन की खुशियों का अन्दाजा आप स्वयं लगायें । लेकिन जिन लोगों को कोई सन्तान ही न हो उनके दुःख का अन्दाजा आप नहीं लगा सकते ।।

मित्रों, मेरे वश में हो तो मैं किसी को नि:सन्तान ही न रहने दूँ । परन्तु आज मैं कुछ ऐसा अवश्य ही लेकर आया हूँ, जिससे ऐसे भाइयों-बहनों को कुछ मदद हो जाय । वैसे हमें ऐसे भी कुछ उपाय पता है, जिससे सन्तान की गारन्टी भी है । परन्तु आज के समय में इस प्रकार की बात को ही लोग पाखण्ड समझ लेते हैं ।।

मैंने जिनपर प्रयोग किया; सफल भी हुआ । ऐसे बहुत से टोटके (आर्टिकल्स) हमने अपने पहले के लेखों में लिखे भी हैं । आप हमारे ब्लॉग पर "सन्तान प्राप्ति के उपाय" सर्च करेंगे तो आपको मिल जायेगा । परन्तु आज हम सिर्फ ज्योतिषीय योगों की बात करेंगे ।।


मित्रों, हम सर्वप्रथम प्रश्न कुण्डली से गर्भ धारण के कुछ योगों को देखेंगे । कोई जातक सन्तान हेतु प्रश्न करे तो उसके प्रश्नकाल के आधार पर निर्मित कुण्डली (प्रश्न कुण्डली" में लग्न और पंचम में यदि शुभ ग्रह हों तो स्त्री गर्भवती अवश्य होती है । सप्तमेश और पंचमेश लग्न या पंचम स्थान में हों तब भी स्त्री गर्भवती होने के योग अवश्य बनेंगे ।।

प्रश्न कुण्डली के लग्न, पंचम एवं एकादश स्थान में शुभ ग्रह हों तो स्त्री के गर्भावती होने की सम्भावना बनती है । यदि शुक्र, लग्न अथवा पंचम भाव में स्थित हो अथवा देख रहा हो तो भी गर्भ ठहरने की सम्भावना होती है । पंचम भाव में लग्नेश और चंद्र गर्भ धारण करने की स्थिति बनाते हैं ।।

मित्रों, प्रश्नकर्ता के प्रश्नकाल में निर्मित कुण्डली में पंचम भाव और एकादश भाव में शुभ ग्रह स्थित हो तो स्त्री का गर्भावती होना तय है । लग्न में बैठा बुध यह संकेत देता है कि प्रश्नकर्ता स्त्री के गर्भवती होने के योग करीब हैं और प्रबल हैं ।।


परन्तु प्रश्नकर्ता को संतान की प्राप्ति शीघ्र होगी अथवा विलम्ब से होगी इस बात पर भी विचार करना चाहिये । यदि लग्नेश का दशमेश के साथ संबध हो इसी प्रकार लग्नेश पंचम भाव में अथवा पंचमेश लग्न में या फिर दोनों लग्न में हों तो प्रश्नकर्ता को संतान की प्राप्ति शीघ्र ही होगी ।।

मित्रों, उपर्युक्त ग्रह पंचम भाव में अथवा किसी शुभ भाव में यदि संयुक्त रुप से बैठे हों तो भी संतान का सुख प्रश्नकर्ता को शीघ्र ही प्राप्त होता है । ठीक इसके विपरीत यदि लग्नेश और पंचमेश नक्त योग में हों तब संतान की प्राप्ति में विलम्ब होता है परन्तु होता अवश्य ही है ।।

प्रश्नकर्ता यदि कोई गर्भवती महिला हो और सन्तान के विषय में प्रश्न हो तो देखना होगा की निर्मित कुण्डली में शुभ ग्रह यदि द्विस्वभाव लग्न में होंगे तो जुड़वा बच्चों के जन्म का संकेत होता है । द्विस्वभाव राशि अथवा नवांश में स्थित चन्द्रमा, शुक्र अथवा मंगल, बुध से दृष्ट होने पर भी जुड़वा बच्चों के जन्म की सम्भावना बनाते हैं ।।

मित्रों, यदि ये ग्रह विषम भाव और द्विस्वभाव राशि में स्थित हों तो भी दो पुत्रों के जन्म का योग बनता है । अब ये देखना होता है, कि जन्म लेनेवाला जातक स्वस्थ होगा अथवा रहेगा की नहीं । जन्मलग्न, स्वराशि और उच्च राशि में पंचमेश, चन्द्र अथवा शुभ ग्रह स्वस्थ बच्चे के जन्म का संकेत देते है ।।


इसी प्रकार जब पंचमेश, चन्द्रमा अथवा कोई शुभ ग्रह पंचम भाव में बैठा हो अथवा पंचम भाव को देख रहा हो तो यह माना जाता है की एक हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ बच्चे का जन्म होगा । शुभ ग्रहों से दृष्ट द्वादशेश अथवा चन्द्रमा किसी केन्द्र में बैठा हो तब भी स्वस्थ बच्चे के जन्म की सम्भावना बनती है ।।

शुक्ल पक्ष हो और प्रश्नलग्नानुसार यदि द्वादश भाव में शुभ ग्रहों के साथ चन्द्रमा हो तब भी बच्चा स्वस्थ जन्म लेता है । फलादेश करने के लिये लग्नकुण्डली के अनुसार ही प्रश्नकुण्डली का भी निर्माण किया जाता है । अन्तर सिर्फ इतना होता है, कि जन्मकुण्डली में जन्म समय की प्रधानता होती है जबकि प्रश्न कुण्डली में प्रश्नकर्ता के प्रश्न की प्रधानता होती है ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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