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मांगलिक दोष स्वयं दूर हो जाता है कुछ तथ्यों के आधार पर ।। Mangalik Dosh Ki Samapti Kaise.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, किसी कन्या की कुण्डली में अगर मंगल दोष हो तो उसके पिता सुनकर मात्र ही घबरा जाते हैं । ऐसा होना भी चाहिये, श्लोक जो घबरा देने वाला है, यथा - लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे । भर्तु: कन्या विनाशाय कन्या भर्तु: विनाशकृत ।।

अर्थात = १, ४, ७, ८ और १२ वें घर में मंगल बैठा हो तो वर की कुण्डली में हो और कन्या की कुण्डली में न हो तो कन्या की मृत्यु हो जाती है और कन्या की कुण्डली में हो वर की कुण्डली में न हो तो वर की मृत्यु हो जाती है ।।

मित्रों, ये श्लोक लगभग थोड़ा बहुत शब्दों के हेर-फेर से ज्योतिष के सभी पुस्तकों में लिखा हुआ है । ऐसे में किसी भी पिता की घबराहट जायज है । लेकिन क्या आप जानते हैं, की कुछ शर्तों के आधार पर ये दोष स्वतः मिट जाता है अर्थात इस दोष का परिहार हो जाता है ।।

अगर नहीं तो आज मैं आपलोगों को इस विषय में स्पष्टतः बतला देता हूँ, कि कुछ स्थितियों में ये दोष मिट जाता है अथवा इस दोष का परिहार स्वतः हो जाता है । वैसे एक बात की सावधानी तो रखनी ही पड़ेगी की किसी योग्य विद्वान् ज्योतिषी से वर-कन्या की कुण्डली का मिलान करवाया जाय ।।


मित्रों, अगर आपके कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल दोष है तो इस बात का ध्यान रखें कि उसका विवाह मंगल दोष से ग्रसित वर से किया जाय । ऐसा करने से मंगल दोष का परिहार स्वतः हो जाता है । ये मान्यता हमारे पूर्वजों से ही प्रचलन में है । और माइनस+माइनस= प्लस हो भी जाता है ।।

दूसरा किसी कन्या की कुण्डली में मंगल दोष हो और वर की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि हो तो भी मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है । तीसरा यदि कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल दोष हो और शनि की सम्पूर्ण दृष्टि मंगल पर पड़े तो भी मंगल दोष का परिहार हो जाता है ।। 

मित्रों, चौथा यदि किसी कन्या की कुण्डली मकर लग्न की हो और मंगल मकर राशि में ही अर्थात लग्न में ही बैठा हो तथा सप्तम भाव में कर्क राशि का चन्द्रमा स्वराशिस्थ होकर बैठा हो तो भी मंगल दोष नहीं लगता है । कोई कुण्डली यदि कर्क अथवा सिंह लग्न की हो तो मंगल सम्पूर्ण राजयोग कारक होता है ।।


ऐसे में लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने के कारण राजयोग देता है जिसके वजह से मंगल दोष नहीं लगता है । यदि लग्न में बुध व शुक्र हो तो भी मंगल दोष निरस्त हो जाता है । मंगल यदि चतुर्थ, अष्टम या फिर द्वादश स्थान में हो और वहाँ का मालिक ग्रह किसी केन्द्र अथवा त्रिकोण में बैठा हो तो भी मंगल दोष समाप्त हो जाता है ।।

मित्रों, सामान्यतया ऐसा कहा जाता है कि जीवन में 28वें वर्ष के बाद भी मंगल दोष क्षीण हो जाता है । हमारे पूर्वाचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है । यदि मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि का हो तो भी मंगल दोष का परिहार हो जाता है ।।

कुण्डली मिलान में यदि मंगल चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो तथा सामने वर की जन्मकुण्डली में भी इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है । चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो भी मंगल दोष का परिहार हो जाता है ।।

द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष अथवा तुला राशी का हो तो भी मंगल दोष निरस्त हो जाता है । वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो भी मंगल दोष का स्वय ही परिहार हो जाता है ।।


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।।। नारायण नारायण ।।।

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