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अखण्ड साम्राज्य योग, ग्रह, नक्षत्र, तारे एवं ज्योतिष का मूल सिद्धान्त ।। Akhand Samrajya Yoga And Astro Siddhanta.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, वेद के अंग को वेदांग कहते हैं और ज्योतिष एक वेदांग है यथा - ज्योतिषं वेदानां चक्षुः । जैसे मानव शरीर में आँख, कान, नाक आदि शरीर के अंग होते हैं उसी प्रकार वेद का नेत्र अर्थात प्रमुख अंग आँख जो है वही ज्योतिष है । वैसे वेद के ६ अंग बताये गये हैं - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । इस बात से स्पष्ट है, कि ज्योतिष भी हमारे वेदों जितना ही प्राचीन है ।।

प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र एवं अन्य खगोलीय पिण्डों का अध्ययन करने को ही ज्योतिष कहा जाता था । गणित ज्योतिष के विषय में तो बहुत ही स्पकष्टता से वेदों में वर्णन मिलता है । ग्रह, नक्षत्र एवं अन्य खगोलीय पिण्डों की स्पष्ट गणनायें हमारे वेदों में वर्णित हैं । हाँ ज्योतिष का जो फलित भाग है, वो हमारे ऋषियों का अपना निजी अनुभव है । अपनी आवश्यकता के अनुसार हमारे पूर्वज ऋषियों ने फलित भाग का अनुसन्धान किया है ।।

मित्रों, इन बातों से स्पष्ट है, कि अति प्राचीन काल से ही इस विद्या का बोध हमारे पूर्वजों को रहा है । जिसका सम्बन्ध खगोलीय पिंडों, अर्थात्‌ ग्रह-नक्षत्रों, के विवेचन से होता अथवा किया जाता रहा है । इसमें खगोलीय पिंडों की स्थिति, उनके गतिशास्त्र तथा उनकी भौतिक रचना पर विचार किया जाता रहा है । जैसे मुहूर्त्त शोधकर कोई भी कार्य करना क्योंकि बिना मुहर्त के किये गये यज्ञ-यज्ञादि कार्य सम्पूर्ण एवं शुभ फल देते हैं अन्यथा नहीं ।।


फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है । ग्रहों तथा तारों के रंग भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं, इसलिये उनसे निकलनेवाली किरणों के भी भिन्न-भिन्न प्रभाव होते हैं । इन्हीं किरणों के प्रभाव को अनेक देशों के विद्वानों ने प्राचीन काल से अध्ययन करके ग्रहों तथा तारों का स्वभाव ज्ञात किया ।।

मित्रों, हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह ही है, इसलिये इसके निवासियों पर सूर्य, चन्द्र एवं सौर मंडल के सभी ग्रहों का विशेष प्रभाव पड़ता है । पृथ्वी विशेष कक्षा में चलती है जिसे क्रांतिवृत्त कहते हैं । पृथ्वी के निवासियों को सूर्य इसी कक्षा में चलता दिखलाई पड़ता है । इस कक्षा के इर्द गिर्द कुछ तारामंडल हैं, जिन्हें राशियाँ कहते हैं । इनकी संख्या बारह है, इनके नाम मेष, वृष, मिथुन आदि हैं ।।

इनमें से भी एक विशेष प्रकार की किरणें निकलती हैं और उनका भी प्रभाव पृथ्वी के निवासियों पर पड़ता है । हमारी भारतीय प्रणाली को निरयण प्रणाली कहा जाता है जो लगभग सम्पूर्ण भारत में एक जैसी ही है । इसीलिए हमारे भारतीय ज्योतिष के फलित में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता । हाँ इस विद्या का विभिन्न देशों के विद्वानों ने ग्रहों तथा तारों के प्रभावों का अध्ययन अपनी-अपनी गणनाप्रणाली के अनुसार किया है । इसलिये उनके फलकथन में कुछ अंतर हो सकता है ।।


मित्रों, हमारे वैदिक ज्योतिष के अनुसार बारह राशियों के सत्ताईस विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है । जिन्हें अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी आदि नामों से जाना जाता है । फलकथन में चंद्रमा के नक्षत्र का विशेष उपयोग किया जाता है । हमारे वैदिक ज्योतिष में बारह राशियाँ और इन बारह राशियों में भ्रमण करने वाले नव ग्रह । इन नवों ग्रहों में सूर्य आत्मा का कारक, चन्द्रमा मन का कारक, मंगल धैर्य का कारक, बुध वाणी का कारक, गुरु ज्ञान का कारक, शुक्र वीर्य का एवं शनि को संवेदना का कारक अथवा प्रतीक माना गया है ।।

इन ग्रहों का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है और कैसे पड़ता है ये तो हमने अपने कल के लेख में आपलोगों को बताया था । प्राचीन काल से हमारा ज्योतिष विज्ञान इस सौर मण्डल में स्थित ग्रहों कि गति, दिशा एवं स्थिति तथा साथ ही मानव जीवन पर इनके प्रभाव के बारे में बताता आ रहा है । क्योंकि हमारी पृथ्वी भी हमारे सौर मण्डल की एक सदस्या है । यह अनवरत सूर्य की परिक्रमा करती रहती है ।।

मित्रों, पृथ्वी में आकर्षण शक्ति भी है तथा सूर्य के निकट होने के वजह से इसमें ताप, तेज़ और प्रकाश भी सदैव विद्यमान रहता है । इसी के वजह से शरीर धारी प्राणियों में प्राण का संचार होता है । ठीक इसी प्रकार अर्थात सूर्य के समान ही अन्य ग्रहों का प्रभाव भी पृथ्वी तथा पृथ्वी वासियों पर निरन्तर पड़ता है । मानव जीवन में सुख-दुःख, भय-क्रोध, अमीरी-गरीबी इन्हीं ग्रहों-नक्षत्रों-तारों के वजह से होता है ।।


आज हम कुछ ग्रह स्थितियों का वर्णन करेंगे जिससे मनुष्य के जीवन में अखण्ड राज्य एवं साम्राज्य योग का निर्माण होता है । किसी भी कुण्डली में लाभेश, नवमेश अथवा धनेश इनमें से कोई एक भी ग्रह यदि चन्द्र लग्न से अथवा लग्न से केन्द्र स्थान में स्थित हो और साथ ही यदि गुरू द्वितीय, पंचम या एकादश भाव का स्वामी होकर उसी प्रकार केन्द्र में स्थित हो तो अखण्ड साम्राज्य योग का निर्माण होता है । इस योग में जन्म लेने वाले मनुष्य को स्थायी साम्राज्य एवं विपुल धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है ।।

मित्रों, यदि किसी पुरूष का दिन में जन्म हो और तीनों लग्न विषम राशियों में हो तथा किसी स्त्री का जन्म रात्रि में हो और तीनों लग्न सम राशियों में हो तो "महाभाग्य योग" बनता है । इस योग में जन्म लेने वाला जातक महाभाग्यशाली एवं अतुलनीय धनवान होता है । जब तीन या तीन से अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होते हुए केन्द्र में स्थित हों तो सम्पूर्ण राजयोग का निर्माण होता है ।।


जब कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होकर वक्री और शुभ स्थान में स्थित हो तो सम्पूर्ण राजयोग का निर्माण होता है । किसी कुण्डली में तीन या चार ग्रहों को दिग्बल प्राप्त हो तो सम्पूर्ण राजयोग का निर्माण होता है । चन्द्रमा किसी केन्द्र में स्थित हो और गुरू की उस पर द्रष्टि हो तो सम्पूर्ण राजयोग का निर्माण होता है । नवमेश व दशमेश का राशि परिवर्तन हो अथवा नवमेश नवम में एवं दशमेश दशम में हो या फिर नवमेश और दशमेश नवम में या दशम में एक साथ हो तो सम्पूर्ण राजयोग का निर्माण होता है ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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