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देव गुरु वृहस्पति का मनुष्य जीवन में प्रभाव एवं परिणाम, पार्ट-१.।। Devguru Brihaspati And Manushy Jivan, Part-1.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, गुरू जो अधंकार को मिटाये, गुरु अर्थात भारी अथवा ब़डा इत्यादि गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है । हमारे पुराणों में बृहस्पति को देवताओं का गुरू बताया गया है और असुरों के गुरू शुक्र अर्थात शुक्राचार्य हैं । जिन व्यक्तियों पर बृहस्पति की कृपा एवं प्रभाव होता है, वे परोपकारी, कर्तव्यपरायण, संतुष्ट एवं कानून का पालन करने वाले होते हैं ।।

बृहस्पति को धनु एवं मीन राशियों का स्वामित्व प्राप्त है । इसमें धनु की आकृति धनुष-बाण से लक्ष्य साधता धनुर्धर, आत्मविश्वास, आशावाद और लक्ष्य भेदन की क्षमता का प्रतीक है । दूसरी जल में विचरण करती मीन शान्त परन्तु सतत कार्यशील एवं आसानी से प्रभावित न होने वाली तथा पूर्ण समर्पण का प्रतीक है । पाराशर जी ने बृहस्पति देव का चित्रांकन एक धीर, गंभीर, चिंतक एवं ज्ञान के अतुल भंडार के रूप में किया है ।।

मित्रों, चौ़डा ललाट अच्छे भाग्य की निशानी माना जाता है और यह बृहस्पति देव का ही क्षेत्र है । जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर बृहस्पतिदेव का अधिकार है, जैसे- शिक्षा, विवाह, संतान, धर्म, धन, परोपकार, जीवन के इन पक्षों से संतुष्ट व्यक्ति नि:संदेह भाग्यशाली होता है । बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं और उन्हें ब्रह्मा की सभा में बैठने का भी अधिकार प्राप्त है । उनका शौक ब्राह्मण जैसा हैं, उन्हें पवित्र एवं दैवीय गुणों से युक्त माना जाता है ।।

बृहस्पति एक शिक्षक, उपदेशक अथवा धर्म-कर्म इत्यादि के प्रवक्ता माने जाते हैं । सभी गुरुओं, धर्माचार्यों, न्यायाधीशों, अमात्य एवं मंत्रियों को तथा धन से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों को गुरु प्रभावित अथवा गुरु का अंश माना जाता है । बृहस्पति ज्ञान और सुख स्वरूप हैं, गौर वर्ण हैं, इनके प्रत्यधि देवता इन्द्र हैं और इन्हें पुरुष ग्रह माना जाता है । इनकी सत् प्रकृति, विशालदेह, पिंगल वर्ण केश और नेत्र, कफ प्रकृति, बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता के रूप में जाना जाता है ।।

मित्रों, देवगुरु बृहस्पति के विषय में जितनी बातें करें कम ही है । अब और कुछ इनके विषय में अगले गुरुवार को जानेंगे । आज अब ये जानते हैं, कि किसी की जन्मकुण्डली में बृहस्पति प्रथम भाव में बैठा हो तो क्या शुभाशुभ फल देता है । पहले घर में स्थित बृहस्पति निश्चय ही जातक को अतुलनीय धनवान बनाता है । भले ही वह बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा हो अथवा न हो अथवा शिक्षा से बिलकुल ही वंचित हो ।।

जातक स्वस्थ और दुश्मनों से भी निर्भीक रहने वाला होता है । जातक अपने स्वयं के प्रयासों, मित्रों की मदद और सरकारी सहयोग से हर आठवें वर्ष में बडी तरक्की पाता है । यदि सातवें भाव में कोई ग्रह न हो तो विवाह के बाद सफलता और अकल्पनीय समृद्धि मिलती है । विवाह या अपनी कमाई से चौबीसवें या सत्ताइसवें साल में घर बनवाना जातक की पिता की उम्र के लिए ठीक नहीं होता है अतः इन वर्षों को त्यागकर ही गृह निर्माण करवायें ।।

मित्रों, बृहस्पति यदि प्रथम भाव में हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक को स्वाथ्य से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं । बृहस्पति पहले भाव में हो और राहू आठवें भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से अथवा अस्थमा रोग के कारण होती है । इसका उपाय ये है, कि बुध, शुक्र और शनि से सम्बंधित वस्तुयें धार्मिक स्थलों में दान करें, इससे फायदा होगा ।।

गुरु अगर दूषित हो और दूषित फल दे रहा हो तो गायों की सेवा करें और कमजोरों की मदद करें । यदि शनि पांचवे भाव में हो तो नये घर का निर्माण न करें । यदि शनि नवम भाव में हो तो शनि से सम्बंधित चीजें जैसे मशीनरी आदि कदापि न खरीदें । यदि शनि ग्यारहवें या बारहवें भाव में हो तो भूलकर भी शराब, मांस और अंडे आदि का प्रयोग बिलकुल न करें ।।

मित्रों, बृहस्पति दूसरे भाव में हो तो जातक बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होता है । भले ही शुक्र कुण्डली में कहीं भी बैठा हो फिर भी वो इस जातक पर अपना पूरा प्रभाव रखता है । शुक्र और बृहस्पति एक दूसरे के शत्रु ग्रह माने जाते हैं । इसलिए दोनों एक दूसरे पर प्रतिकूल असर डालते हैं ।।

ऐसी स्थिति में जातक स्वर्ण या अन्य प्रकार के आभूषणों के व्यापार करेगा तो शुक्र से संबंधित चीजें जैसे पत्नी, धन और संपत्ति आदि नष्ट होने की संभावनायें बढ़ जाती है । यदि जातक की पत्नी भी उसके साथ हो तो जातक सम्मान और धन कमाता जाता है परन्तु उसके परिवार के लोग स्वास्थ्य समस्या या अन्य परेशानियों से ग्रस्त रहते हैं ।।

मित्रों, ऐसा जातक महिलाओं में प्रशंसनीय होता है और अपने पिता की संपत्ति को विरासत में प्राप्त करता है । यदि 2, 6 और 8वां घर शुभ हो और शनि दसवें घर में नहीं हो तो जातक को लॉटरी से और किसी नि:संतान से भी सम्पत्ति प्राप्त कर सकता है ।।

परन्तु अगर ऐसा न हो तो जातक की परेशानियाँ समाप्त होने का नाम नहीं लेती और बढ़ती ही जाती हैं । इसका उपाय ये है, कि जातक जितना अधिक दान-दक्षिणा करेगा उसकी समृद्धि उतनी ही बढ़ेगी । दशम भाव में स्थित शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए सांपों को दूध पिलाना चाहिये ।।




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।।। नारायण नारायण ।।।

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