हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, मनुष्य कि इच्छायें अनंत होती है । हमारे शास्त्र और सन्त इसीलिये बारम्बार कहते हैं, कि संतोषं परमं सुखम् । अर्थात संतोष से बड़ा सुख कोई नहीं है । प्रत्येक मनुष्य की इच्छायें होती है कि उसका परिवार सुखी एवं संपन्न रहें । इसीलिये वह जीवन पर्यन्त परिश्रम करता है और सभी को सुखी रखने का प्रयास करता है ।।
इस प्रयत्न में उसे अपनी सुध नहीं रहती और उसकी मृत्यु उसे सुला देती है । अपनी अधूरी इच्छाओं के वजह से उस जीवात्मा कि मुक्ति नहीं होती और वो इस संसार में भटकती रहती है । किसी भी योनियों में हो तो भी उसकी इच्छाओं के वजह से उसकी दुर्गति भी हो सकती है ।।
मित्रों, अपने पितरों कि मुक्ति एवं उनकी आत्मा की शान्ति हेतु भी हर मनुष्य का कर्तब्य होता है, कि अपने पितरों की पूजा अर्थात तर्पण करे । वैसे भी मनुष्य को अपनी इहलोक की अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए देवताओं के साथ-साथ अपने पितरों का भी पूजन अवश्य करना चाहिये ।।
अब सवाल ये उठता है, कि कैसे करें पितरों का पूजन-तर्पण ? इसकी विधि ये है, कि सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्बे की प्लेट, कच्चा दूध, पुष्प, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में तैयार करके रख लेवें ।।
मित्रों, सर्वप्रथम तीन बार आचमन करे, ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: इन मन्त्रों से इसके बाद हाथ धो लेवे ॐ गोविन्दाय नम: बोलकर । अब अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प करें ।।
अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम् अहं करिष्ये । फिर थाली या ताम्र पात्र में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें । स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें । कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण करें इसी प्रकार ऋषियों का भी तर्पण करें ।।
मित्रों, फिर उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालथी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य अर्थात् ऋषियों का तर्पण करें । इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जायें और थाली या ताम्र पात्र में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें ।।
इस मन्त्र से अपने पितरों का आवाहन करें:- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम । फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से जल गिराकर तर्पण करें । सरल विधि से अपने गोत्र का उच्चारण करें एवं अपने पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण करें ।।
मित्रों, ठीक इसी प्रकार अपने गोत्र का उच्चारण करें, दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनका भी तर्पण करें । फिर तीसरी बार भी अपने गोत्र का उच्चारण करें पिताजी के दादाजी अर्थात प्रपितामह का नाम लेकर उनको भी तीन बार जलांजलि देकर उनका तर्पण करें ।।
उपरोक्त अनुसार ही अपने नाना, पर नाना, वृद्ध पर नाना के गोत्र का उच्चारण करके सपत्निक बोलकर नानी, पर नानी और वृद्ध पर नानी को भी साथ ही साथ तीन-तीन बार जलांजलि देकर तर्पण करें । इसके साथ ही श्राद्धकर्ता अपने गोत्र का उच्चारण करके अगर उसकी पत्नी, पुत्र या पुत्री अथवा कोई भाई या उसकी कोई बहन की भी मृत्यु हुई हो तो परिवार के सभी दिवंगत सदस्य का नाम लेकर तीन-तीन बार तर्पण करे ।।
मित्रों, अपने परिवार के साथ-साथ दिवंगत बुआ, मामा, मौसी, मित्र एवं गुरु का भी तर्पण करना चाहिये । अब जिनके नाम याद नहीं हो तो ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र का नाम लेकर जलांजलि देवें । अन्त में भीष्म का तर्पण करके भगवान सूर्य को जल देना चाहिये । इसी प्रकार प्रत्येक दिन जिस दिन तक आपके पिता के श्राद्ध की तिथि न हो तबतक तर्पण करना चाहिये ।।
जिस दिन आपके पिता की तिथि हो अर्थात जिस तिथि को आपके पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन भण्डारा करें । भण्डारे का सामर्थ्य न हो तो एक, दो अथवा पांच ब्राह्मणों को ही भोजन करवाना दान-दक्षिणा के साथ चाहिये । हमारा देश हमारी संस्कृति में माता को देवी के रूप में पूजा जाता है, परन्तु पितृ प्रधान देश ही माना जाता है । इसलिये माता-पिता की तिथियों में पिता की तिथि के दिन ही श्राद्ध पक्ष में अंतिम तिथि के रूप में मनानी चाहिये ।।
मित्रों, तैयार पकवानों में से पंचबली देनी चाहिये, उसके पहले कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग निकालें जिसे पंचबली कही जाती है । गाय के लिए - पत्ते पर, श्वान (कुत्ते) के लिये जनेऊ को कंठी करके पत्ते पर, कौओं के लिये पृथ्वी पर, देवादिबली जिसे कहा जाता है वो देवताओं के लिये अतिथि को देना चाहिये और चीटियों के लिये अन्त में बलि के रूप में भोग प्रसाद जो भोजन तैयार हो उसमें से देवें ।।
इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में समर्पित कर दें । इस प्रकार पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करने से आपके पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और श्राद्धकर्ता के सभी मनोरथों को पूर्ण करते हैं ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
मित्रों, मनुष्य कि इच्छायें अनंत होती है । हमारे शास्त्र और सन्त इसीलिये बारम्बार कहते हैं, कि संतोषं परमं सुखम् । अर्थात संतोष से बड़ा सुख कोई नहीं है । प्रत्येक मनुष्य की इच्छायें होती है कि उसका परिवार सुखी एवं संपन्न रहें । इसीलिये वह जीवन पर्यन्त परिश्रम करता है और सभी को सुखी रखने का प्रयास करता है ।।
इस प्रयत्न में उसे अपनी सुध नहीं रहती और उसकी मृत्यु उसे सुला देती है । अपनी अधूरी इच्छाओं के वजह से उस जीवात्मा कि मुक्ति नहीं होती और वो इस संसार में भटकती रहती है । किसी भी योनियों में हो तो भी उसकी इच्छाओं के वजह से उसकी दुर्गति भी हो सकती है ।।
मित्रों, अपने पितरों कि मुक्ति एवं उनकी आत्मा की शान्ति हेतु भी हर मनुष्य का कर्तब्य होता है, कि अपने पितरों की पूजा अर्थात तर्पण करे । वैसे भी मनुष्य को अपनी इहलोक की अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए देवताओं के साथ-साथ अपने पितरों का भी पूजन अवश्य करना चाहिये ।।
अब सवाल ये उठता है, कि कैसे करें पितरों का पूजन-तर्पण ? इसकी विधि ये है, कि सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्बे की प्लेट, कच्चा दूध, पुष्प, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में तैयार करके रख लेवें ।।
मित्रों, सर्वप्रथम तीन बार आचमन करे, ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: इन मन्त्रों से इसके बाद हाथ धो लेवे ॐ गोविन्दाय नम: बोलकर । अब अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प करें ।।
अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम् अहं करिष्ये । फिर थाली या ताम्र पात्र में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें । स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें । कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण करें इसी प्रकार ऋषियों का भी तर्पण करें ।।
मित्रों, फिर उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालथी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य अर्थात् ऋषियों का तर्पण करें । इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जायें और थाली या ताम्र पात्र में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें ।।
इस मन्त्र से अपने पितरों का आवाहन करें:- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम । फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से जल गिराकर तर्पण करें । सरल विधि से अपने गोत्र का उच्चारण करें एवं अपने पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण करें ।।
मित्रों, ठीक इसी प्रकार अपने गोत्र का उच्चारण करें, दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनका भी तर्पण करें । फिर तीसरी बार भी अपने गोत्र का उच्चारण करें पिताजी के दादाजी अर्थात प्रपितामह का नाम लेकर उनको भी तीन बार जलांजलि देकर उनका तर्पण करें ।।
उपरोक्त अनुसार ही अपने नाना, पर नाना, वृद्ध पर नाना के गोत्र का उच्चारण करके सपत्निक बोलकर नानी, पर नानी और वृद्ध पर नानी को भी साथ ही साथ तीन-तीन बार जलांजलि देकर तर्पण करें । इसके साथ ही श्राद्धकर्ता अपने गोत्र का उच्चारण करके अगर उसकी पत्नी, पुत्र या पुत्री अथवा कोई भाई या उसकी कोई बहन की भी मृत्यु हुई हो तो परिवार के सभी दिवंगत सदस्य का नाम लेकर तीन-तीन बार तर्पण करे ।।
मित्रों, अपने परिवार के साथ-साथ दिवंगत बुआ, मामा, मौसी, मित्र एवं गुरु का भी तर्पण करना चाहिये । अब जिनके नाम याद नहीं हो तो ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र का नाम लेकर जलांजलि देवें । अन्त में भीष्म का तर्पण करके भगवान सूर्य को जल देना चाहिये । इसी प्रकार प्रत्येक दिन जिस दिन तक आपके पिता के श्राद्ध की तिथि न हो तबतक तर्पण करना चाहिये ।।
जिस दिन आपके पिता की तिथि हो अर्थात जिस तिथि को आपके पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन भण्डारा करें । भण्डारे का सामर्थ्य न हो तो एक, दो अथवा पांच ब्राह्मणों को ही भोजन करवाना दान-दक्षिणा के साथ चाहिये । हमारा देश हमारी संस्कृति में माता को देवी के रूप में पूजा जाता है, परन्तु पितृ प्रधान देश ही माना जाता है । इसलिये माता-पिता की तिथियों में पिता की तिथि के दिन ही श्राद्ध पक्ष में अंतिम तिथि के रूप में मनानी चाहिये ।।
मित्रों, तैयार पकवानों में से पंचबली देनी चाहिये, उसके पहले कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग निकालें जिसे पंचबली कही जाती है । गाय के लिए - पत्ते पर, श्वान (कुत्ते) के लिये जनेऊ को कंठी करके पत्ते पर, कौओं के लिये पृथ्वी पर, देवादिबली जिसे कहा जाता है वो देवताओं के लिये अतिथि को देना चाहिये और चीटियों के लिये अन्त में बलि के रूप में भोग प्रसाद जो भोजन तैयार हो उसमें से देवें ।।
इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में समर्पित कर दें । इस प्रकार पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करने से आपके पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और श्राद्धकर्ता के सभी मनोरथों को पूर्ण करते हैं ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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