कुछ गम्भीर वास्तु दोष एवं दूर करने के कुछ सरल उपाय ।। Kuchh Gambhir Vastu Dosh And Upaya.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, नवरात्री का पावन पर्व अभी-अभी गया है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सात्विक वातावरण ब्याप्त है । एक अलग सी अनुभूति हो रही है जो आन्तरिक आनन्द का अनुभव करवा रही है । आप एकान्त में बैठकर इस आनन्द का अनुभव स्वयं भी कर सकते हैं । अब आपपर निर्भर करता है, कि आपकी मानसिकता कहाँ अटकी है । अगर आपने नवरात्री का उपवास किया है, अथवा व्रतियों कि सेवा भी किया है तो भी आप इस आनन्द का अनुभव कर सकते हैं ।।
आज हम आप सभी के साथ कुछ वास्तु के मुख्य विषयों पर चर्चा करेंगे । वैसे तो मैंने बहुत से लेख लगभग सभी विषयों पर वास्तु के लिख रखें हैं अपने ब्लॉग एवं वेबसाइट पर । फिर भी आज कुछ और महत्वपूर्ण वास्तु के सूत्रों में मुख्य द्वार एवं अन्य वेध के विषय पर बात करेंगे । मुख्य द्वार से प्रकाश एवं वायु को रोकने वाली किसी भी प्रतिरोध को द्वारवेध कहा जाता है ।।
मित्रों, इस बात को विस्तृत समझें, आपके मुख्य द्वार के सामने बिजली, टेलिफोन का खम्भा, कोई बड़ा वृक्ष, पानी की टंकी, मन्दिर तथा कुआँ आदि हो तो उसे द्वारवेध कहते हैं । परन्तु इसमें भी एक और बात है, और वो ये है, कि भवन की ऊँचाई से दो गुनी या फिर उससे भी अधिक दूरी पर ये सब हो तो इसके द्वारा उत्पन्न होने वाले प्रतिरोध को द्वारवेध नहीं माना जाता है ।।
इन बातों को और विधिवत समझें, जैसे द्वारवेध को भी कुछ भागों में वर्गीकृत किया गया है । पहला कूपवेधः जिसमें मुख्य द्वार के सामने आने वाली भूमिगत पानी की टंकी, बोर, कुआँ तथा शौचकूप आदि को कूपवेध कहते हैं, इस प्रकार के वेध से धन हानि होती है । दूसरा स्तंभ वेधः अर्थात मुख्य द्वार के सामने टेलिफोन, बिजली का खम्भा, डी.पी. आदि होने से वहाँ के निवासियों के बीच विचारों में भिन्नता एवं मतभेद जो उनके विकास में बाधक होता है ।।
मित्रों, तीसरा स्वरवेध अर्थात द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती है । इस प्रकार की आवाज जो बिलकुल ठीक नहीं होता यह अत्यन्त अशुभ होता है । इसके वजह से घर में आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है । इसके कील में तेल डालने से यह ठीक हो जाता है । मुख्य द्वार के सामने कोई तेलघानी, आटा आदि कि कोई चक्की, धार तेज करने की मशीन आदि लगी हो तो इसे ब्रह्मवेध कहते हैं ।।
इस ब्रह्मबेध के कारण वहाँ रहने वालों के जीवन में अस्थिरता एवं आपसी मनमुटाव बना रहता है । मुख्य द्वार के सामने गाय, भैंस तथा कुत्ते आदि को बाँधने के लिए खूँटे हों तो इसे कीलवेध कहते हैं । यह कीलबेध वहाँ के निवासियों के विकास में बाधक होता है । आपके घर के मुख्य द्वार के सामने बना गोदाम, स्टोर रूम, गैराज तथा आऊट हाऊस आदि को वास्तुवेध कहते हैं । जिसके वजह से वहाँ के निवासियों को सम्पत्ति का नुकसान उठाना पड़ सकता है ।।
मित्रों, एक अत्यावश्यक बात, आपका मुख्य द्वार आपके भूखण्ड की लम्बाई या चौड़ाई के एकदम मध्य में नहीं होना चाहिये । घर के प्रवेशद्वार की दिशा दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की तरफ बिलकुल नहीं होना चाहिए । पूर्व और उत्तर दिशा में मुख्य द्वार होना वास्तु की दृष्टि से सबसे उत्तम होता है । अगर किसी भवन में दो बाहरी दरवाज़े हों तब इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि दोनों द्वार एक-दूसरे के आमने-सामने न हो, कहते हैं इससे धन जैसे आता है वैसे ही चला भी जाता है ।।
मुख्य द्वार के सामने कीचड़, पत्थर अथवा ईंट आदि का ढेर वहाँ के निवासियों के विकास में बाधक होता है । मुख्य द्वार के सामने लीकेज आदि से एकत्रित पानी परिवार के बच्चों के लिए नुकसानदायक होता है । मुख्य द्वार के सामने कोई अन्य निर्माण का कोना अथवा दूसरे दरवाजे का हिस्सा भी नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार के ठीक सामने दूसरा कोई उससे बड़ा किसी दुसरे का मुख्य द्वार हो जिसमें आपका मुख्य द्वार पूरा अंदर आ जाता हो तो आपके छोटे मुख्य द्वार वाले भवन की धनात्मक ऊर्जा बड़े मुख्य द्वार के भवन में समाहित हो जाती है ।।
मित्रों, ऐसे में आपके छोटे मुख्य द्वारवाला भवन वहाँ के निवासियों के लिए अमंगलकारी हो जाता है । मुख्यद्वार के पूर्व, उत्तर या ईशान कोण में कोई भट्टी आदि नहीं होना चाहिए । इस बात का भी ध्यान रखें कि मुख्य द्वार के दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय अथवा नैऋत्य में पानी की टंकी, खड्डा तथा कुआँ आदि भी हानिकारक होता है । यह मार्गवेध कहलाता है और इससे परिवार के मुखिया के हर कार्य में रूकावटें पैदा होने लगती है ।।
मकान से ऊँची चारदीवारी होना भी शुभ नहीं माना जाता इसको भवन वेध कहते हैं । अक्सर ऐसा जेलों में होता है इसके अतिरिक्त ऐसा लगभग नहीं होता है । जिस भवन में ऐसी स्थिति हो वहाँ का आर्थिक विकास रुक जाता है । दो मकानों का संयुक्त अर्थात एक ही प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए । ऐसा दरवाजा किसी भी मकान के लिए अमंगलकारी होता है ।।
मित्रों, मुख्यद्वार के सामने कोई पुराना खंडहर आदि भी हो तो उस मकान में रहने वालों को प्रतिपल हानि का सामना करना पड़ता है तथा उसके व्यापार-धंधे धीरे-धीरे बन्द होने लगते हैं । छाया-वेध के विषय में एक और बात विशेष महत्त्व रखती है । किसी वृक्ष, मन्दिर, ध्वजा तथा पहाड़ी आदि की छाया प्रातः 10 से सायं 3 बजे के मध्य मकान पर पड़ने को ही छाया वेध कहते हैं तथा यही दोषपूर्ण होता है । इसके बाद का पड़ने वाला छाया, छाया-बेध उत्पन्न नहीं करता ।।
मुख्यद्वार कभी भी बीच में नहीं होना चाहिए । वास्तुशास्त्र के अनुसार जिस दीवार के साथ मुख्यद्वार बनवानी हो उस दीवार को नौ भागों में बांटें । इसके बाद भवन में प्रवेश की दिशा से बायीं ओर पांच भाग और दायीं ओर से तीन भाग छोड़कर प्रवेशद्वार रखें । इससे प्रवेश बड़ा होगा और निकास छोटा अर्थात मान्यता है कि ऐसा होने से आय अधिक होता है और व्यय कम होता है ।।
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, नवरात्री का पावन पर्व अभी-अभी गया है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सात्विक वातावरण ब्याप्त है । एक अलग सी अनुभूति हो रही है जो आन्तरिक आनन्द का अनुभव करवा रही है । आप एकान्त में बैठकर इस आनन्द का अनुभव स्वयं भी कर सकते हैं । अब आपपर निर्भर करता है, कि आपकी मानसिकता कहाँ अटकी है । अगर आपने नवरात्री का उपवास किया है, अथवा व्रतियों कि सेवा भी किया है तो भी आप इस आनन्द का अनुभव कर सकते हैं ।।
आज हम आप सभी के साथ कुछ वास्तु के मुख्य विषयों पर चर्चा करेंगे । वैसे तो मैंने बहुत से लेख लगभग सभी विषयों पर वास्तु के लिख रखें हैं अपने ब्लॉग एवं वेबसाइट पर । फिर भी आज कुछ और महत्वपूर्ण वास्तु के सूत्रों में मुख्य द्वार एवं अन्य वेध के विषय पर बात करेंगे । मुख्य द्वार से प्रकाश एवं वायु को रोकने वाली किसी भी प्रतिरोध को द्वारवेध कहा जाता है ।।
मित्रों, इस बात को विस्तृत समझें, आपके मुख्य द्वार के सामने बिजली, टेलिफोन का खम्भा, कोई बड़ा वृक्ष, पानी की टंकी, मन्दिर तथा कुआँ आदि हो तो उसे द्वारवेध कहते हैं । परन्तु इसमें भी एक और बात है, और वो ये है, कि भवन की ऊँचाई से दो गुनी या फिर उससे भी अधिक दूरी पर ये सब हो तो इसके द्वारा उत्पन्न होने वाले प्रतिरोध को द्वारवेध नहीं माना जाता है ।।
इन बातों को और विधिवत समझें, जैसे द्वारवेध को भी कुछ भागों में वर्गीकृत किया गया है । पहला कूपवेधः जिसमें मुख्य द्वार के सामने आने वाली भूमिगत पानी की टंकी, बोर, कुआँ तथा शौचकूप आदि को कूपवेध कहते हैं, इस प्रकार के वेध से धन हानि होती है । दूसरा स्तंभ वेधः अर्थात मुख्य द्वार के सामने टेलिफोन, बिजली का खम्भा, डी.पी. आदि होने से वहाँ के निवासियों के बीच विचारों में भिन्नता एवं मतभेद जो उनके विकास में बाधक होता है ।।
मित्रों, तीसरा स्वरवेध अर्थात द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती है । इस प्रकार की आवाज जो बिलकुल ठीक नहीं होता यह अत्यन्त अशुभ होता है । इसके वजह से घर में आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है । इसके कील में तेल डालने से यह ठीक हो जाता है । मुख्य द्वार के सामने कोई तेलघानी, आटा आदि कि कोई चक्की, धार तेज करने की मशीन आदि लगी हो तो इसे ब्रह्मवेध कहते हैं ।।
इस ब्रह्मबेध के कारण वहाँ रहने वालों के जीवन में अस्थिरता एवं आपसी मनमुटाव बना रहता है । मुख्य द्वार के सामने गाय, भैंस तथा कुत्ते आदि को बाँधने के लिए खूँटे हों तो इसे कीलवेध कहते हैं । यह कीलबेध वहाँ के निवासियों के विकास में बाधक होता है । आपके घर के मुख्य द्वार के सामने बना गोदाम, स्टोर रूम, गैराज तथा आऊट हाऊस आदि को वास्तुवेध कहते हैं । जिसके वजह से वहाँ के निवासियों को सम्पत्ति का नुकसान उठाना पड़ सकता है ।।
मित्रों, एक अत्यावश्यक बात, आपका मुख्य द्वार आपके भूखण्ड की लम्बाई या चौड़ाई के एकदम मध्य में नहीं होना चाहिये । घर के प्रवेशद्वार की दिशा दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की तरफ बिलकुल नहीं होना चाहिए । पूर्व और उत्तर दिशा में मुख्य द्वार होना वास्तु की दृष्टि से सबसे उत्तम होता है । अगर किसी भवन में दो बाहरी दरवाज़े हों तब इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि दोनों द्वार एक-दूसरे के आमने-सामने न हो, कहते हैं इससे धन जैसे आता है वैसे ही चला भी जाता है ।।
मुख्य द्वार के सामने कीचड़, पत्थर अथवा ईंट आदि का ढेर वहाँ के निवासियों के विकास में बाधक होता है । मुख्य द्वार के सामने लीकेज आदि से एकत्रित पानी परिवार के बच्चों के लिए नुकसानदायक होता है । मुख्य द्वार के सामने कोई अन्य निर्माण का कोना अथवा दूसरे दरवाजे का हिस्सा भी नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार के ठीक सामने दूसरा कोई उससे बड़ा किसी दुसरे का मुख्य द्वार हो जिसमें आपका मुख्य द्वार पूरा अंदर आ जाता हो तो आपके छोटे मुख्य द्वार वाले भवन की धनात्मक ऊर्जा बड़े मुख्य द्वार के भवन में समाहित हो जाती है ।।
मित्रों, ऐसे में आपके छोटे मुख्य द्वारवाला भवन वहाँ के निवासियों के लिए अमंगलकारी हो जाता है । मुख्यद्वार के पूर्व, उत्तर या ईशान कोण में कोई भट्टी आदि नहीं होना चाहिए । इस बात का भी ध्यान रखें कि मुख्य द्वार के दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय अथवा नैऋत्य में पानी की टंकी, खड्डा तथा कुआँ आदि भी हानिकारक होता है । यह मार्गवेध कहलाता है और इससे परिवार के मुखिया के हर कार्य में रूकावटें पैदा होने लगती है ।।
मकान से ऊँची चारदीवारी होना भी शुभ नहीं माना जाता इसको भवन वेध कहते हैं । अक्सर ऐसा जेलों में होता है इसके अतिरिक्त ऐसा लगभग नहीं होता है । जिस भवन में ऐसी स्थिति हो वहाँ का आर्थिक विकास रुक जाता है । दो मकानों का संयुक्त अर्थात एक ही प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए । ऐसा दरवाजा किसी भी मकान के लिए अमंगलकारी होता है ।।
मित्रों, मुख्यद्वार के सामने कोई पुराना खंडहर आदि भी हो तो उस मकान में रहने वालों को प्रतिपल हानि का सामना करना पड़ता है तथा उसके व्यापार-धंधे धीरे-धीरे बन्द होने लगते हैं । छाया-वेध के विषय में एक और बात विशेष महत्त्व रखती है । किसी वृक्ष, मन्दिर, ध्वजा तथा पहाड़ी आदि की छाया प्रातः 10 से सायं 3 बजे के मध्य मकान पर पड़ने को ही छाया वेध कहते हैं तथा यही दोषपूर्ण होता है । इसके बाद का पड़ने वाला छाया, छाया-बेध उत्पन्न नहीं करता ।।
मुख्यद्वार कभी भी बीच में नहीं होना चाहिए । वास्तुशास्त्र के अनुसार जिस दीवार के साथ मुख्यद्वार बनवानी हो उस दीवार को नौ भागों में बांटें । इसके बाद भवन में प्रवेश की दिशा से बायीं ओर पांच भाग और दायीं ओर से तीन भाग छोड़कर प्रवेशद्वार रखें । इससे प्रवेश बड़ा होगा और निकास छोटा अर्थात मान्यता है कि ऐसा होने से आय अधिक होता है और व्यय कम होता है ।।
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