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तन्त्र साधना एवं सिद्धि प्राप्ति विधि तथा माता कालरात्री और शनिदेव का सम्बन्ध ।।



तन्त्र साधना एवं सिद्धि प्राप्ति विधि तथा माता कालरात्री और शनिदेव का सम्बन्ध ।। Tantra Siddhiyan And Mata Kalratri Ki Kripa Prapti Vidhi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, जगतजननी, जगत्कल्याणि, जगन्माता श्री दुर्गा का सप्तम रूप माता श्री कालरात्रि हैं । ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं ।।

नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है । इस दिन साधक को अपना चित्त सहस्रार चक्र में स्थिर कर साधना करनी चाहिए । संसार में काल का नाश करने वाली देवी "कालरात्री" ही हैं ।।

भक्तों की सामान्य पूजा मात्र से ही उनके सभी दु:ख-संताप आदि माता भगवती हर लेती हैं । दुश्मनों का नाश करने वाली तथा मनोवांछित फल देकर अपने भक्तों को संतुष्ट करती हैं ।।

दुर्गा पूजा का सातवां दिन आश्विन शुक्ल सप्तमी माता कालरात्रि की उपासना का विधान है । मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, इनका वर्ण अंधकार की भाँति काला है ।।

इनके केश बिखरे हुए हैं, कंठ में विद्युत की कान्ति बिखेरनेवाली माला तथा तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल एवं गोल हैं जिनमें से बिजली की भाँति किरणें निकलती रहती हैं ।।

मित्रों, इनकी नासिका से निकलनेवाली श्वास-प्रश्वास से जैसे अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं । माँ का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिये ही है ।।

माँ कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली हैं । माता कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों का सदा ही शुभ ही करती हैं ।।

दुर्गा पूजा के सप्तम दिन साधक का मन "सहस्रार" चक्र में स्थित होता है । मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से अपने भक्तों के जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने मां की स्तुति की थी ।।

यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं । इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है । देवी काल-रात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो अमावस्या की रात्रि से भी अधिक काला है ।।

मां कालरात्रि के तीन बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्र हैं जिनसे मां अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती हैं । माता कालरात्रि देवी की चार भुजाएं हैं दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान देती हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान करती हैं ।।

बायीं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है । बाल खुले और हवा में लहराते देवी कालरात्रि गर्दभ पर सवार होती हैं । मां का वर्ण काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है ।।

देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है अत: देवी को शुभंकरी भी कहा गया है । हर प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि देनेवाली माता कालरात्रि का यह सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है ।।

सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं । ऐसी मान्यता है, कि इस दिन मां की आंखें खुलती हैं ।।

इसके लिए तन्त्र साधना करनेवाले भक्त षष्ठी को ही बिल्ववृक्ष से किसी एक पत्र को आमंत्रित करके आते हैं और उसे आज तोड़कर लाते है ।।

मित्रों, उसी बिल्वपत्र से माता की आँखें बनाई जाती है और उसी को माता को प्रत्यक्षदर्शी मानकर उनकी उपस्थिति में साधना करके मन्त्र-तन्त्रों की सिद्धि की जाती है ।।

दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व होता है, इस दिन से भक्तों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है । भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन-पूजन के लिए भारी मात्रा में आने लगते हैं ।।

लगभग सभी देवी माता के प्रमुख स्थलों पर सप्तमी की पूजा भी सुबह में अन्य दिनों की तरह ही होती है । परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है ।।

इस दिन अनेक प्रकार के मिष्टान्न एवं कहीं-कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है । सप्तमी की रात्रि "सिद्धियों" की रात्री भी कही जाती है इसलिये कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं ।।

पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा, नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए ।।

मित्रों, साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार आज की साधना से खुलने लगता है । इस दिन सामान्य पूजा परन्तु मन की एकाग्रता से भक्तों को माता के साक्षात्कार का भी अवसर मिलता है ।।

आज की पूजा-साधना से मिलने वाले पुण्य एवं नव दिनों के उपवास से भक्त इसका अधिकारी होता है । इस दिन की पूजा से भक्तों की समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है ।।

माता कालरात्रि के भक्तों को उनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय तथा भूत-पिशाच आदि तो माता के स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं । कालरात्रि माता भक्तों को सदा ही अभय प्रदान करती है ।।

देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए । नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ अवश्य करना अथवा करवाना चाहिये इससे माता को अत्यन्त प्रशन्नता प्राप्त होती है और माता अपने भक्तों के सभी दु:खों का अन्त कर देती हैं ।।

मित्रों, दुर्गा सप्तशती के प्रधानिक रहस्य में बताया गया है कि जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण शुरू किया और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को प्रकट किया उसके पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन महादेवीयों को उत्पन्न किया ।।

लिखा है, कि माता महालक्ष्मी ने ब्रह्माण्ड को अंधकारमय और तामसी गुणों से भरा हुआ देखकर सबसे पहले तमसी रूप में जिस देवी को उत्पन्न किया वही देवी माता कालरात्रि हैं ।।

देवी कालरात्रि ही अपने गुण और कर्मों द्वारा महामाया, महामारी, महाकाली, क्षुधा, तृषा, निद्रा, तृष्णा, एकवीरा, एवं दुरत्यया कहलाती हैं ।।

माता कालरात्रि को गुड से निर्मित मिष्टान्न का भोग अत्यन्त प्रिय होता है । लेकिन भोग लगाने के बाद उसे दान कर देना चाहिये । भोग की एक थाली दक्षिणा और भोजन सहित किसी श्रेष्ठ ब्रह्माण को दान कर देना चाहिये ।।

इस प्रकार माता की पूजा करने से व्यक्ति को उसके शोक से मुक्त कर देती है । आज का व्रत और उपवास करने से उसके उपर आकस्मिक रुप से आने वाले संकट भी टल जाते हैं ।।

गुजरात में होनेवाला एक फल जिसे चीकू कहते हैं, माता कालरात्रि को अत्यन्त प्रिय होता है । उसे माता को भोग के रूप में अर्पित करके शाम को प्रसाद के रूप में ग्रहण किये जायें तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है ।।

माता की कृपा से ग्रह जनित बाधायें सहजता से दूर हो जाती है और सांसारिक भय भक्त के समीप नहीं आते । साथ ही अकाल मृत्यु, भूत-प्रेत बाधा, व्यापार, नौकरी, अग्निभय, शत्रुभय आदि से छुटकारा प्राप्त होता है ।।

माता कालरात्रि का ज्योतिष के अनुसार शनिदेव से सम्बन्ध बताया जाता है । अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली और काल से भी रक्षा करने मां कालरात्रि का रंग गहरा काला होता है ।।

साथ ही शनिदेव का रंग भी काला होता है और मां कालरात्रि का स्वरूप भी काले रंग का है । कहते हैं मां कालरात्रि की उपासना से शनि जैसा क्रूर ग्रह भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाता ।।

सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य भगवान हैं और शनिदेव के पिता भी सूर्य देव हैं । अतः मां कालरात्रि एवं शनि देव का आपस में भाई-बहन का रिश्ता होता है ।।

आज के लिए विशेष उपाय - आज सप्तमी के दिन माता कालरात्रि को दूध में शहद मिलाकर भोग लगाने से शनिदेव के बुरे प्रभाव का अन्त हो जाता है ।।




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।।। नारायण नारायण ।।।

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