Header Ads Widget

मानव मूल्यों एवं आदर्शो का सन्देश देती है विजयादशमी ।।

मानव मूल्यों एवं आदर्शो का सन्देश देती विजयादशमी एवं वैदिक सनातन व्यवस्था का प्रतिक त्यौहार विजयादशमी ।। Vedic Sanskriti And Manav Mulyon Ka Pratik Vijaya Dashami.
 Bhagwan Ram.

जय श्रीमन्नारायण,


मित्रों, हमारे वैदिक सनातन धर्म के हमारे पर्व, हमारी संस्कृति तथा हमारी सभ्यता ही पहचान है । देश में वर्ष भर में अनेकों त्योहार आते हैं और इन सभी त्योहारों को मनाने की एक अपनी-अपनी अलग परंपरा एवं विधि है । सभी त्योहार मानवता के लिए कोई न कोई संदेश लेकर आते हैं । हमारे त्योहार लोगों में परस्पर प्रेम व सद्‌भावना का संदेश देते हैं तथा मानव जीवन में नवीन खुशियाँ एवं नये उल्लास का संचार करते हैं ।।


होली, रक्षाबंधन, दीपावली एवं विजयादशमी हमारे प्रमुख त्योहार हैं । विजयादशमी अथवा दशहरा हमारे लिये कुछ ख़ास एवं सबसे कुछ विशेष महत्व रखता है । प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाने वाला यह त्योहार जनमानस में खुशी, उत्साह एवं नवीनता का संचार करता है । पौराणिक मान्यता यह है कि इसी दिन अयोध्या के राजा राम ने लंका के आततायी राक्षस राजा रावण का वध किया था ।।

तब से लोग भगवान राम की इस विजय स्मृति को विजयादशमी के पर्व के रूप में मनाते चले आ रहे हैं । विजयादशमी का यह पर्व अच्छाई की बुराई पर एवं सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है । विजयादशमी हमें यह संदेश देता है, कि बुराई चाहे कितना ही बलवान व प्रभावशाली क्यों न हो उसका अंत सुनिश्चित है । मृत्यु पर भी विजय पाने वाले रावण का अंत कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अधर्म पर धर्म के मार्ग से विजय प्राप्त की ।।


विजयादशमी के पर्व को मनाने के लिए उपरोक्त मान्यता के अतिरिक्त भी अनेक मत प्रचलित हैं । बंगाल में उत्तर-पूर्वी भारत की मान्यताओं से भिन्न यह त्योहार शक्ति की प्रतिक माँ दुर्गा को सम्मान एवं उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए मनाया जाता है । इस अवसर पर व्रत, पूजा, उपासना, दुर्गा-पाठ आदि के कार्यक्रम होते हैं । इसके अतिरिक्त जगह-जगह पर माँ की सुंदर-सुसज्जित झाँकियाँ भी निकाली जाती हैं ।।


विजयादशमी से नौ दिन पूर्व से ही, अर्थात् आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से ही माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर इनकी पूजा आरंभ हो जाती है । दुर्गा सप्तशती के श्लोकों का सस्वर पाठ वातावरण में गूँजने लगता है । कुछ लोग विद्वान ब्राह्मणों से यह पाठ करवाते हैं तथा भक्तिभाव से आदि शक्ति दुर्गा का महात्म्य श्रवण करते हैं । यही पर्व गुजरात में अपने तरीके से डांडिया-रास करके माता दुर्गा की उपासना के साथ मनाया जाता है ।।


सप्तशती का पाठ घर पर स्नानादि कर श्रद्धापूर्वक अवश्य करना-करवाना चाहिये । शास्त्रानुसार इस का पुण्य बहुत अधिक होता है ऐसा करने से वर्षपर्यंत नवो ग्रहों से मिलनेवाले कष्ट शान्त रहते हैं । कहा गया है, कि दस महाविद्‌याओं-काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका इनका स्मरण एवं ध्यान ही हमारे समस्त पापों एवं रुग्णताओं का नाश कर देता है तथा परम सिद्धि कि प्राप्ति हो जाती है ।।


विजयादशमी के त्योहार से कई दिन पूर्व ही इसकी तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं । देश भर में जगह-जगह रामलीला आदि का आयोजन होता है जिसमें राम के जीवन प्रसंगों का जीवन्त प्रदर्शन किया जाता है । लोग बड़ी ही श्रद्धा एवं विश्वास से रामलीला को देखते हैं । इस प्रकार सभी को उनके महान आदर्शों एवं महान चरित्र की अद्‌भुत झाँकी के दर्शन रामलीला के माध्यम से होते हैं ।।


इन रामलीलाओं का बड़ा ही असर बच्चे, बूढ़े और जवान सभी पर होता है । विशेष रूप से बच्चे इसे देखकर अत्यधिक प्रफुल्लित होते हैं तथा साथ ही साथ भगवान राम के महान चरित्र से उन्हें उत्तम चरित्र निर्माण की प्रेरणा भी मिलती है । यह त्योहार खुशी, उल्लास एवं नवचेतना का त्योहार है । इस दिन सड़कों, बाजारों एवं दुकानों पर विशेष चहल-पहल होती है । अमीर-गरीब सभी इस त्योहार में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं ।।


सभी बच्चे-बूढ़े-जवान नये एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं । देश भर में मिठाई एवं पटाखों की दुकानों में विशेष चहल-पहल होती है । किसानों के लिए भी यह अत्यंत खुशी का अवसर होता है । क्योंकि इस समय तक खरीफ की फसल काटकर वे इसका आनंद उठाते हैं । गाँव-गाँव, नगर-नगर में भगवान राम की झांकियाँ निकाली जाती हैं जिसे देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है । अनेक स्थानों पर लोग एक दूसरे के घरों में जाते हैं एवं बड़े-बूढों का आशीर्वाद लेते हैं एवं बराबरी वाले लोग परस्पर गले मिलते हैं ।।


भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में तथा छोटे-छोटे शहरों में व्रत, उपवास, आराधना का विशेष महत्व है । गाँवों में दशहरा के अवसर पर छोटे-बड़े मेले लोगों के परस्पर मिलने-जुलने तथा अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं । विजयादशमी का पर्व हमारी भारतीय संस्कृति को और भी अधिक गौरवान्वित करता है एवं इसे महान बनाता है । यह त्योहार हमारी धार्मिक आस्था एवं भगवान के प्रति हमारे विश्वास की शक्ति को दर्शाता है ।।


अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक यह त्योहार संपूर्ण विश्व को धर्म और सत्य के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा देता है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का महान चरित्र जनमानस को जीवन के महान नैतिक मूल्यों की अवधारणा हेतु प्रेरित करता है । यह त्योहार मनुष्य को प्रेम, भाईचारा एवं मानवता का संदेश देता है । आज के भौतिकवादी युग में जहाँ मनुष्यों में असंतोष की प्रवृत्ति एवं स्वार्थ लोलुपता बढ़ती ही जा रही है...


ऐसे में इन त्योहारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है । अत: यह हम सभी का नैतिक दायित्व है कि हम अपनी इस गौरवशाली परंपरा को कायम रखें । इस प्रकार के त्योहारों के माध्यम से धर्म के मूल्यों को सभी लोगों तक पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिये । ऐसा इसलिये नहीं कि हम किसी रुढ़िवादी व्यवस्था को प्रसारित कर रहे हैं बल्कि इसलिये कि लोगों में आपसी भाईचारा और प्रेम विकसित हो तथा अपने आदर्शों को समझकर लोग आपस में प्रेम करें ।।















।।। नारायण नारायण ।।।

Post a Comment

0 Comments