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वक्री ग्रहों का हमारे जीवन पर प्रभाव एवं शुभाशुभ फल, भाग-१.।।



वक्री ग्रहों का हमारे जीवन पर प्रभाव एवं शुभाशुभ फल, भाग-१.।। Vakri Grahon Ka Shubhashubh Prabhav, Part-1.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, कितनी विचित्र बात है न, की हम अपनी आँखों से देखते और मन से समझते हुये भी सत्य को स्वीकार नहीं करते । जी हाँ कुछ ऐसा ही होता है ग्रहों के साथ भी । असल में ग्रहों के भ्रमण का मार्ग अंडाकार होने से ऐसा होता है । पृथ्वी की गति से जब अन्य ग्रहों की गति कम हो जाती है, तब वे विपरीत दिशा में चलते हुए प्रतीत होते हैं और इसे ही ग्रहों का वक्री होना कहते हैं ।। वैसे तो ये ग्रह यूं ही निरन्तर अपने निर्धारित मार्ग पर ही चलते रहते हैं । परंतु ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से ग्रह सीधी चाल से चलते हुए कुछ समय के लिए ठहर जाते हैं । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह निरन्तर गोचर करते हैं । गोचर में ग्रह व्रकी भी होते हैं अर्थात उल्टा चलने लगते हैं । वास्तव में ग्रहों की यह गति या स्थिति हमें आभास मात्र होती है । ग्रह कभी भी विपरीत दिशा में गमन नहीं करते हैं ।। मित्रों, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह सीधी चाल से चलते हुए कुछ समय के लिए ठहर जाते हैं । फिर विपरीत चलने लगते हैं ऐसा प्रतीत होता है । वक्री चाल चलते समय ग्रह अपने नियत स्वभाव के अनुसार फल देने की बजाय कभी-कभी उससे अलग फल भी देते हैं ।। वक्री ग्रहों के फल की बात करें तो ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह वक्री होने पर बली होते हैं । इस संदर्भ में यह भी कहा गया है कि ग्रह चाहे नीच राशि में या नीच नवमांश में हों परंतु अस्त नहीं हों और वक्री हों तो ऐसे ग्रह अत्यंत बलवान होते हैं । ग्रह शत्रु राशि में हों या नीचराशि में परंतु वक्री हों तो ऐसे ग्रह व्यक्ति को उत्तम फल प्रदान करते है ।। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह भी कहा गया है कि जिस ग्रह की दशा- अन्तर्दशा चल रही है वह ग्रह जिन भावों का स्वामी होता है, उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल तभी प्राप्त होता है जबकि भावों का स्वामी होकर दशापति स्वगृही, उच्च राशिगत अथवा वक्री हो । यदि दशापति नीच राशिगत, शत्रुराशिगत, अस्त या षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो तो शुभफल मिलने की संभावना अल्प रहती है ।। मित्रों, जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही हो वह ग्रह जब गोचरवश अपनी स्वराशि या अपनी उच्चराशि में आये अथवा वक्री होगा तो व्यक्ति को उत्तम फल देता है । वक्री ग्रह मंगल, बुध, गुरू, शुक्र एवं शनि चन्द्रमा के साथ हो तो इनके प्रभाव में वृद्धि हो जाती है । भोगादि ताराग्रह स्वराशि उच्चराशि में हों साथ ही वक्र या अस्तगत हों तो इनका फल मिश्रित प्राप्त होता है ।। यदि शुभ ग्रह वक्री होते हैं तो जातक को सभी प्रकार का सुख, धन आदि प्रदान करते हैं । जबकि अशुभ ग्रह वक्री होने पर विपरीत प्रभाव देते हैं । इस स्थिति में व्यक्ति व्यसनों का शिकार होता है तथा निजी जीवन में इन्हें अपमान का सामना करना पड़ता है । एक सिद्धान्त यह भी है कि वक्री ग्रहों की दशा में सम्मान एवं प्रतिष्ठा में कमी की संभावना रहती है । कुण्डली में क्रूर ग्रह वक्री हों तो इनकी क्रूरता बढ़ती है एवं सौम्य ग्रह वक्री हों तो इनकी कोमलता बढ़ती है ।। मित्रों, वक्री ग्रहों के विषय में बहुत कुछ कहने को है । क्योंकि एक-एक ग्रहों के विषय में हम आपलोगों को विस्तृत रूप से समझा-समझाकर वक्र स्थितियों के विषय में हम बतायेंगे । तो हम अपने अगले अंक में आपलोगों को एक-एक करके ग्रहों के वक्री स्थिति एवं वक्र अवस्था में किस प्रकार का फल कौन सा ग्रह देता है ये भी बतायेंगे ।। वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।


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