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मृत्यु के कारण एवं चन्द्रमा की भूमिका ।।



मृत्यु के कारण एवं चन्द्रमा की भूमिका ।। Due to death and role of the moon.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, आज बहुत दिनों के बाद अपना विषय परिवर्तित करते हुये चलिये आज ज्योतिष के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को छू लेते हैं ।।

इससे पहले मैंने दो भागों में अकस्मात मृत्यु के कुछ योगों के विषय में विस्तृत वर्णन किया हुआ हैं । इस विषय को अधिक-से-अधिक स्पष्ट करने का प्रयास तो हमारा रहेगा ।।

मित्रों, हम पूर्ण प्रयत्न करेंगे कि इसके साथ ही अपने अगले अंक में इन दोषों की शान्ति का उपाय भी बताने का प्रयत्न करेंगे ।।

तो आइये चलते आज अपने प्रसंग की ओर जहाँ हमारा आज का विषय है, अकस्मात मृत्यु के कौन-कौन से योग हैं ? विस्तार से हम इस विषय की व्याख्या करें और ऐसी मृत्यु से बचाव के लिए क्या किया जाय ?।।

जैसा की आप जानते हैं की चन्द्रमा मन का कारक ग्रह होता है । इसीलिये मानव शरीर में आत्मबल, बुद्धिबल, मनोबल, शारीरिक बल सदैव कार्य करते हैं ।।

मित्रों, परन्तु किसी जन्मकुण्डली में चन्द्रमा के क्षीण होने से मनुष्य का मनोबल कमजोर हो जाता है । ऐसी स्थिति में विवेक काम नहीं करता और अनुचित अपघात जैसा पाप कर्म मनुष्य कर बैठता है ।।

जन्म कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति ही मनुष्य के विचारों, दृष्टिकोण और सोच का निर्धारण करती है । यदि कुण्डली में चन्द्रमा बली है तो मन भी बली होता है ।।

मनोबल ही व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से ल़डने की क्षमता देता है । इसके विपरीत यदि जन्मकुण्डली में चन्द्रमा क्षीण या कमजोर हो तो यह व्यक्ति के कमजोर मनोबल का संकेत देता है ।।

मित्रों, यदि किसी जन्मकुण्डली में लग्न व सप्तम भाव में कोई नीच ग्रह हों और लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध अगर व्ययेश से हो या फिर अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात होने की सम्भावना होती है ।।

यदि अष्टम भाव में एक अथवा अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना तथा बीमारी से मृत्यु को प्राप्त होता है ।।

मित्रों, ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग के विषय को भी देखते हैं । चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल की युति हों, शनि दशम भाव में बैठा हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट अथवा अपेंडिक्स जैसे किसी गम्भीर रोग से मौत होती है ।।

दुसरे भाव में शनि, चतुर्थ भाव में चन्द्रमा, दशम भाव में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है । दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ भाव में मंगल बैठा हो तो किसी वाहन दुर्घटना या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है ।।

क्षीण चन्द्रमा अष्टम भाव में हो और उसके साथ अगर मंगल-शनि-राहू हो तो पिशाचादि दोष के कारण मृत्यु सम्भव होती है ।।

मित्रों, जिस जातक का जन्म विष घटिका में होता है उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव के वजह से होती है । दुसरे में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख में कृमिरोग होने से मृत्यु होती है ।।

शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम अथवा लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी आदि किसी शस्त्र की मार से मृत्यु होती है ।।

मित्रों, यदि मंगल नवम भाव में हो तथा शनि, सूर्य राहु कहीं किसी घर में एक साथ हो एवं किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो बाण अथवा गोली लगने से मृत्यु हो सकती है ।।

अष्टम भाव में अगर चन्द्रमा के साथ मंगल, शनि और राहु हो तो मिर्गी से मृत्यु होती है । नवम भाव में अगर बुध और शुक्र हो तो जातक की हृदय रोग से मृत्यु होती है ।।

मित्रों, अष्टम भाव में शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह जैसे रोगों के कारण होती है । किसी स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा मेष या वृश्चिक राशि में होकर पाप ग्रहों के बीच हो तो महिला की अकाल मृत्यु शस्त्र या अग्नि से होती है ।।

यदि किसी महिला की जन्मकुण्डली में दुसरे भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु होती है ।।

सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री का पहाड़ से गिर कर अथवा ठोकर लगने से मृत्यु होती है । दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि हो तो किसी भी स्त्री की मृत्यु डिप्रेशन से होती है ।।

मित्रों, किसी स्त्री की कुण्डली में पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह अथवा शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय स्त्री की मृत्यु सम्भव होती है ।।



  
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।।। नारायण नारायण ।।।

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