कुण्डली में अल्पायु योग, अरिष्ट एवं अरिष्ट भंग योग ।। Alpayu Yoga And Arisht Bhang Yoga.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, आज हम बात करेंगे आपकी कुण्डली में आपके अल्पायु योग, अरिष्ट अर्थात कष्ट एवं अरिष्ट भंग योग के विषय में । यदि आपकी कुण्डली में 1, 4, 5 तथा 8वें स्थानों का मालिक होकर शनि यदि लग्न में बैठा हो तो अल्पायु योग बनता है ।।
आपकी कुण्डली में कोई शुभग्रह 3, 6 और 9वें स्थानों में बैठे हों अथवा अष्टमेश पापग्रह होकर गुरु से दृष्ट हो, चन्द्र, शनि और सूर्य आठवें भाव में हो तो जातक के जीवन में अल्पायु योग निर्मित होता है ।।
कुण्डली का लग्नेश निर्बल होकर पाप राशि में पड़ा हो, दिन में जन्म हो और चन्द्रमा से आठवें स्थान पर पापग्रह हो तो ऐसे जातकों के जीवन में दीर्घायु योग का अभाव होता है ।।
अरिष्ट भंग योग की अगर बात करें तो आपके वर्ष कुण्डली का लग्नेश पंचवर्गी में सबसे अधिक बलवान होकर एक, चार, पांच, सात, नौवें या दसवें भाव में हों तो अरिष्टनाशक योग बनता है ।।
बृहस्पति किसी केन्द्र अर्थात १, ४, ७ या १०वें भाव में अथवा किसी त्रिकोण ५वें या ९वें भाव में शुभग्रहों से दृष्ट हो और उस पर पापग्रहों की दृष्टि न हो तो अरिष्टनिवारक योग बनता है ।।
चतुर्थ भाव अपने स्वामी के साथ या शुभग्रह के साथ अथवा उससे दृष्ट हो तो भी अनिष्टनाशक योग होकर धन, सुख एवं सम्मान कि वृद्धि करता है । सप्तमेश लग्न में बृहस्पति के साथ हो और क्रूरग्रह उसे न देखते हों तो ऐसा योग अरिष्टनिवारक योग कहलाता है ।।
नवम घर का स्वामी तथा दुसरे घर का स्वामी बलवान होकर लग्न में हों तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक राज्य में सम्मान प्राप्त करता है । तीसरे, छठें, तथा ग्यारहवें स्थानों में पापग्रह एवं केन्द्र तथा त्रिकोण में शुभग्रह हो तो अरिष्टनिवारक योग बनता है ।।
लग्नेश पूर्णबली होकर केन्द्र, त्रिकोण या ११ या फिर १२वें स्थान में हो तो जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं । उच्च राशि का स्वामी बलवान होकर वर्षेश हो तथा वह तीसरे या ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो अरिष्टनिवारक योग होता है ।।
सूर्य, बृहस्पति तथा शुक्र परस्पर इत्थशाल योग करते हों तो उस वर्ष जातक को नौकरी में प्रमोशन मिलता है । शुक्र, बुध और चन्द्रमा अपनी राशि में हों तो जातक व्यापार से लाभ उठता है । मंगल वर्षेश होकर मित्र की राशि में हो और घर में पड़े ग्रह से योग करता हो तो उस वर्ष जातक को उच्च वाहन मिलता है ।।
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मित्रों, आज हम बात करेंगे आपकी कुण्डली में आपके अल्पायु योग, अरिष्ट अर्थात कष्ट एवं अरिष्ट भंग योग के विषय में । यदि आपकी कुण्डली में 1, 4, 5 तथा 8वें स्थानों का मालिक होकर शनि यदि लग्न में बैठा हो तो अल्पायु योग बनता है ।।
आपकी कुण्डली में कोई शुभग्रह 3, 6 और 9वें स्थानों में बैठे हों अथवा अष्टमेश पापग्रह होकर गुरु से दृष्ट हो, चन्द्र, शनि और सूर्य आठवें भाव में हो तो जातक के जीवन में अल्पायु योग निर्मित होता है ।।
कुण्डली का लग्नेश निर्बल होकर पाप राशि में पड़ा हो, दिन में जन्म हो और चन्द्रमा से आठवें स्थान पर पापग्रह हो तो ऐसे जातकों के जीवन में दीर्घायु योग का अभाव होता है ।।
अरिष्ट भंग योग की अगर बात करें तो आपके वर्ष कुण्डली का लग्नेश पंचवर्गी में सबसे अधिक बलवान होकर एक, चार, पांच, सात, नौवें या दसवें भाव में हों तो अरिष्टनाशक योग बनता है ।।
बृहस्पति किसी केन्द्र अर्थात १, ४, ७ या १०वें भाव में अथवा किसी त्रिकोण ५वें या ९वें भाव में शुभग्रहों से दृष्ट हो और उस पर पापग्रहों की दृष्टि न हो तो अरिष्टनिवारक योग बनता है ।।
चतुर्थ भाव अपने स्वामी के साथ या शुभग्रह के साथ अथवा उससे दृष्ट हो तो भी अनिष्टनाशक योग होकर धन, सुख एवं सम्मान कि वृद्धि करता है । सप्तमेश लग्न में बृहस्पति के साथ हो और क्रूरग्रह उसे न देखते हों तो ऐसा योग अरिष्टनिवारक योग कहलाता है ।।
नवम घर का स्वामी तथा दुसरे घर का स्वामी बलवान होकर लग्न में हों तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक राज्य में सम्मान प्राप्त करता है । तीसरे, छठें, तथा ग्यारहवें स्थानों में पापग्रह एवं केन्द्र तथा त्रिकोण में शुभग्रह हो तो अरिष्टनिवारक योग बनता है ।।
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