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ग्रहण काल में मन्त्र सिद्धि के उपाय एवं क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए ।। astro classes, silvassa.

हैल्लो फ्रेंड्सzzzzz...
मित्रों, सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण, जो सत्व प्रधान शक्तियों को प्रभावहीन करने का असफल प्रयास है । क्योंकि प्रयात्नकर्ता बहुत प्रभावी नहीं है, इसलिए ये हमारी गलतियों को ही लक्ष्य करता है । अत: शास्त्रों ने हमें कुछ निर्देश दिया है, कि कहाँ एवं किस प्रकार की सावधानियां बरतनी आवश्यक होती है ।।

तारीख 4 अप्रैल 2015, दिन शनिवार, समय - ग्रहण आरम्भ - (काशी में) दिन में ३ बजकर ४५ मिनट से मध्य - ५ बजकर ३० मिनट तथा मोक्ष - ७ बजकर १५ मिनट पर होगा । इस वर्ष का यह पहला चन्द्रग्रहण लगेगा आगे और भी है, समय-समय पर प्रयत्न करूँगा आप सभी को बताता रहूँ ।।

चन्द्र ग्रहण का सूतक निर्धारित समय से ६ घन्टे पहले ही लग जाता है । सायं ३.४५ से ग्रहण लगे उससे ६ घन्टे पूर्व भारतीय मानक समय के अनुसार सुबह ९ बजकर ४५ मिनट से ही शुरू हो जायेगा । इसलिए इससे पूर्व ही नास्ता आदि से निवृत्त होकर तैयार हो जाना चाहिए और सायं ग्रहण मोक्ष के उपरान्त स्नान आदि से निवृत्त होकर कपड़े, बर्तन आदि सभी प्रक्षालित करके ही भोजन बनाना और दान-मंदिर में भगवद्दर्शन आदि करके ही भोजन करना चाहिए ।।

ग्रहण के समय चन्द्रमा हस्त नक्षत्र एवं कन्या राशि में होगा । चन्द्रग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचने, इष्टसिद्धि एवं मनोकामना पूर्ति हेतु अपने गुरु मन्त्र या फिर इष्टदेव के मंत्र का जप करना चाहिए अथवा किसी विशिष्ट सिद्धि हेतु साधना चाहिए ।।

शास्त्रों के निर्देशानुसार कुछ सावधानियां अवश्य रखे ग्रहण के समय में, तो आइये शास्त्रों का मत क्या है इस विषय में तथा हमें क्या-क्या सावधानियाँ रखनी है एवं न रखने से उसके दुष्प्रभाव से क्या हानि हो सकता है, आइये जानने का प्रयास करते हैं ।।

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१.ग्रहण काल में सोने (शयन करने से) से असाध्य रोग होता है, अत: ग्रहण काल में सोना नहीं चाहिए ।।
२.ग्रहण काल में लघु शंका (मूत्र) त्‍यागने से घर में दरिद्रता आती है ।।
३.ग्रहण काल में दीर्घ लघु शंका (शौच) करने से पेट में क्रीमी रोग (कीड़े हो जाते हैं) होता है । ये शास्‍त्र् की बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं होता ।।
४.ग्रहण काल में संभोग करने से सूअर की योनी (अत्यन्त निकृष्ट अवस्था) की प्राप्ति होती है ।।
५.ग्रहण काल में किसी से झूठ बोलने अथवा धोखा या ठगी करने से सर्प की योनि मिलती है ।।
६.ग्रहण काल में किसी भी जीव-जन्‍तु या किसी की हत्‍या करने से नारकीय योनीयों में भटकना पड़ता है ।।
७.ग्रहण काल में भोजन एवं तैलादि का मालिश भी नहीं करना करवाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कुष्‍ठ रोग होने की संभावना प्रबल हो जाती है ।।
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ग्रहण काल में शौचादि न जाना पड़े इसलिए अल्पाहार करना चाहिए । ग्रहण के दौरान मौन रहना चाहिए एवं मन्त्र जप तथा भगवान का ध्‍यान और भजन करना चाहिए क्योंकि ग्रहण काल में किए गए सत्कर्मों का अनन्‍त गुना फल होता है । ग्रहण काल के ये सारे नियम तथा विधि-निषेध बालक, वृद्ध एवं किसी रोगी पर नहीं लगते । ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द स्वरुप (बिम्ब) देखकर एवं दान-पुण्यादि करके ही भोजन ग्रहण करना चाहिये ।।

ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहियें । बाल एवं नाख़ून नहीं काटने चाहिए तथा वस्त्र को पानी में भिगोकर रख देना चाहिए अर्थात् निचोड़ने नहीं चाहिए । ग्रहण के समय (दिन) दातून करना, ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं ।।

ग्रहण के समय मानसिक संकल्प करके किसी सत्पात्र को नि:स्वार्थ भाव से कुछ दान अवश्य करना चाहिए । ऐसा करने से करनेवाले के मनोकामना की पूर्ति तत्काल हो जाती है । बाद में चौबीस घन्टे के अन्दर ही कृत मानसिक संकल्प का दान कर देना चाहिए एवं लेनेवाले को भी ले लेना चाहिए क्योंकि दान मानसिक संकल्प का होता है इसलिए उसको उसका दोष भी नहीं लगता है । कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य तो बिलकुल शुरु नहीं करना चाहिये ।।

कुछ ऐसे पदार्थ, जैसे दूध, दही, घी, चावल तथा तेल आदि जो पदार्थ हैं, उनमें ग्रहण के सूतक लगने से पहले ही कुशा डाल देनी चाहिए, इससे वे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके गाय, कुत्ते आदि को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये । ग्रहण काल में जल भी ग्रहण करना वर्जित है, लेकिन जब अत्यावश्यक हो जाय तो तिल या कुशा जिस जल में डालकर रखा गया हो, उसका ही उपयोग करें अन्यथा नहीं करना चाहिये । ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये ।।

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है । तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल होता है । किंतु अन्य मतानुसार संतानयुक्त ग्रहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये । "स्कंद पुराण" के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है । "देवी भागवत" में लिखा है, कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को कदापि नहीं खोदना या खुदवाना (बिल्डरों के निमित्त) चाहिये ।।

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।। नारायण नारायण ।।

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