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वेदों एवं पुराणों में अतिथि क्या है ? Astro Classes, Silvassa.

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टिप्पणी : साधना काल में शक्तियों का अवतरण अतिथि रूप में ही होता है ।।

ऋग्वेद में जिन ऋचाओं में अतिथि शब्द आया है, वह अधिकांश रूप में अग्नि अतिथि के लिए है । दुरोण ? में स्थित अतिथि को श्रेष्ठ माना जाता है । अथर्ववेद ९.६ से ९.११ सूक्तों में अतिथि की महिमा का वर्णन किया गया है और यही सूक्त पुराणों में अतिथि महिमा वर्णन के आधार प्रतीत होते हैं ।।

ऋग्वेद में कुछ राजाओं को अतिथिग्व, अतिथियों का सत्कार करने वाला, संज्ञा दी गई है । ब्राह्मण ग्रन्थों जैसे मैत्रायणी संहिता ३.७.९ में आतिथ्य को यज्ञ का शीर्ष कहा गया है। यज्ञ के शीर्ष को कर्मकाण्ड में उपसद रूपी ग्रीवा पर स्थापित करते हैं । उपसद अहोरात्र, पक्ष, मासों आदि का प्रतीक है ।।

शब्दकल्पद्रुम में उद्धृत व्याकरण के अनुसार अतिथि वह है जिसे चन्द्रमा की कला प्रभावित न करे ।।

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