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राजभंग योग ।। Raj Bhanga Yoga.



राजभंग योग ।। RajBhanga Yoga.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz

मित्रों, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राजयोग, जो की लगभग सभी को प्राकृतिक रूप से अत्यंत प्रिय होता है, जन्म कुंडली में निर्मित्त कैसे होता है ? अबतक आपलोगों ने जितने प्रकार के भी राजयोग सुने अथवा पढ़े होंगे, सबका महत्व सर्वदा सर्वमान्य है । उच्च ग्रह व केंद्र त्रिकोण का संबंध होने से राजयोग बनता है । इन योगों के विषय में किसी श्रेष्ठ ज्योतिषी से जानकर अबतक लाखों-करोड़ों लोग लाभान्वित होकर जीवनकाल में सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं ।।

लेकिन मित्रों, जहां एक ओर उच्च कोटि के राजयोग फलित होते हुए दिखाई पड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं राजयोगों का भंग होना भी फलीभूत होता हुआ देखा जाता है । कोई भी ग्रह फिर चाहे वो उच्च का हो, बलवान स्थिति में हो अथवा उसके साथ सूर्य या चंद्र हो तो राजयोग भंग हो ही जाता है ।।

कई बार कई लोग चुनाव जीत कर संसद सदस्य तो बन जाते हैं, किंतु मंत्री नहीं बन पाते । क्योंकि यदि नवमेश व दशमेश राजयोग स्थापित कर रहे हों और उनके साथ कोई बाधक ग्रह हो तो भी राजयोग भंग हो ही जाता है । इतना ही नहीं बल्कि कोई बलवान ग्रह भी यदि स्तंभित हो जाता है तो राजयोग भंग कर देता है ।।

किसी की कुण्डली में किसी अकारक ग्रह की दशा हो और यदि वह ग्रह अपनी ही दशा की अंतर्दशा में शुभ फल दे, तो बाकी की दशा में मिलने वाला राजयोग भंग हो जाता है । पूर्ण चंद्र होते हुए भी भाग्येश चंद्र से कर्मेश सूर्य यदि अष्टमस्थ हो, तो भी राज योग भंग हो जाता है । तथा नवमेश व दशमेश सूर्य एवं चंद्र अगर किसी जातक की कुण्डली में आमने सामने बैठे हों तो भी विपरीत फल मिलता है । सूर्य एवं चंद्र कमजोर हों तो भी राजयोग भंग हो जाता है ।।

मित्रों, अगर ग्रहों के उच्चत्व भंग की बात को देखें, तो गुरु, मकर लग्न के लिए सप्तम भाव में परम उच्च का होकर अकारक होते हुए भी जातक को "हंस योग" का शुभ फल देता है । किंतु यदि अष्टमेश सूर्य गुरु के साथ सप्तम भाव में स्थित हो तो राजयोग भंग हो जाता है ।।

कन्या लग्न के लिए यदि मंगल पंचम (त्रिकोण) भाव में शनि के साथ मकर राशि में हो, तो षष्ठेश शनि के कारण उच्चस्थ होने के बावजूद भी मंगल का उच्चत्व भंग हो जाता है ।।

सूर्य कन्या लग्न में द्वादशेश होकर अष्टम भाव में उच्चस्थ हो जाता है किंतु यदि शनि साथ हो, तो अपनी उच्च राशि का फल देने में सक्षम नहीं होता । एवं शुक्र मिथुन लग्न में दशम केंद्र में अपनी उच्चस्थ राशि में मालव्य योग बनाता है किंतु यदि एकादशेश व षष्ठेश मंगल इसके साथ हो तो मालव्य योग को भी भंग कर देता है ।।

बुध अपनी उच्च राशि में कन्या लग्न में स्थान बल प्राप्त करने के साथ-साथ भद्र योग भी बनाता है किंतु सूर्य एवं मंगल अगर साथ हो तो यह राजयोग भी भंग हो जाता है । कभी-कभी पांच ग्रह भी उच्च के होकर, जैसे कर्क राशि में २८ डिग्री का गुरु, कन्या में ० डिग्री का बुध, तुला में २८ डिग्री का शुक्र, मेष में २९ डिग्री का सूर्य व मकर में २९ डिग्री का मंगल, राजयोग का आंशिक फल ही दे पाते हैं ।।

लग्न से छठे, सातवें या आठवें भाव में प्राकृतिक रूप से कोई शुभ ग्रह हों या किसी एक घर में भी शुभ ग्रह हो तो लग्नाधिराज योग का शुभ फल मिलता है, किंतु यदि उस शुभ ग्रह के साथ एक भी पाप ग्रह हो तो उस लग्नाधिराज योग से प्राप्त राजयोग भंग हो जाता है । इस प्रकार ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां या तो राजयोग भंग होता हैं या फिर सिर्फ उसका आंशिक फल ही उन्हें मिले हैं ।।

मित्रों, जीवन का अर्थ ही संघर्ष है, उतार-चढ़ाव जिंदगी के दो पहलू होते हैं । जीवन के संघर्षों से जुझते हुए निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना ही हमारा कर्तव्य है । सफलता मिलना या न मिलना अवश्य ही भाग्य का खेल है ।।

परन्तु पुरुषार्थ के माध्यम से ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं । अतः राजयोग भंग होने पर भी मनुष्य को हार न मान कर अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहकर कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।।


  
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।।। नारायण नारायण ।।।

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