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आपके मृत्यु का कारक ग्रह कौन सा है, आपकी कुण्डली के अनुसार ? दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें हैं, तो ग्रह दशा वाले ग्रह से सम्बंधित उपायों को अपनायें ।। Markesha for yor Horoscope.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
आपके मृत्यु का कारक ग्रह कौन सा है, आपकी कुण्डली के अनुसार ? दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें हैं, तो ग्रह दशा वाले ग्रह से सम्बंधित उपायों को अपनायें ।। Markesha for yor Horoscope.


जन्म कुण्डली द्वारा मारकेश का विचार करने के लिए कुण्डली के दूसरे भाव, सातवें भाव, बारहवें भाव, अष्टम भाव आदि को समझना आवश्यक होता है । जन्म कुण्डली के आठवें भाव से आयु का विचार किया जाता है । लघु पाराशरी के अनुसार तीसरे स्थान को भी आयु स्थान कहा गया है क्योंकि यह आठवें से आठवाँ भाव है (अष्टम स्थान से जो अष्टम स्थान अर्थात लग्न से तृतीय स्थान को भी आयु स्थान ही कहा जाता है) और सप्तम तथा द्वितीय स्थान को मृत्यु स्थान या मारक स्थान कहते हैं । मित्रों, इसमें से दूसरा भाव प्रबल मारक कहलाता है ।।

बारहवाँ भाव व्यय भाव कहा जाता है, व्यय का अर्थ है खर्च होना । हानि होना क्योंकि कोई भी रोग शरीर की शक्ति अथवा जीवन शक्ति को कमजोर करने वाला होता है । इसलिये बारहवें भाव से रोगों का विचार किया जाता है । और इस कारण इसका विचार करना भी जरूरी होता है । मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना अत्यन्त जरूरी होता है । क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक परेशनियां होती ही हैं ।।

मित्रों, मारक ग्रह की दशा काल में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान करती हैं । जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं । लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना ही इसका इलाज है । यदि अष्टमेश, लग्नेश भी हो तो पाप ग्रह नहीं रहता । मंगल और शुक्र आठवें भाव के स्वामी होने पर भी पाप ग्रह नहीं होते ।।

सप्तम स्थान एक मारक केंद्र स्थान है, अत: गुरु या शुक्र आदि सप्तम स्थान के स्वामी हों तो वह प्रबल मारक हो जाते हैं । इनसे कुछ कम बुध और चन्द्रमा यहाँ सबसे कम मारक होता है । तीनों मारक स्थानों में द्वितीयेश के साथ वाला पाप ग्रह सप्तमेश के साथ वाले पाप ग्रह से अधिक मारक होता है । मित्रों, एक और विचित्र बात आपलोगों को बताते चलें कि द्वादशेश और उसके साथ वाले पापग्रह षष्ठेश एवं एकादशेश भी कभी-कभी मारकेश हो जाते हैं । द्वितीयेश सप्तमेश की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता हैं और प्रबल मारकेश भी होता है । परन्तु द्वितीयेश से भी ज्यादा उसके साथ रहने वाले पाप ग्रहों की स्थिति का भी गंभीरतापूर्वक विचार करना जरूरी होता है ।।

विभिन्न लग्नों की कुण्डलियों में भिन्न भिन्न मारकेश होते हैं । परन्तु यहां एक बात और समझने की है कि सूर्य व चंद्रमा को मारकेश का दोष नहीं लगता है । मेष लग्न के लिये शुक्र मारकेश होकर भी मारकेश का कार्य नहीं करता किंतु शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ घातक हो जाते हैं । वृष लग्न के लिये गुरु, मिथुन लग्न वाले जातकों के लिये मंगल और गुरु अशुभ होते हैं, कर्क लग्न वालों के लिये शुक्र, सिंह लग्न वालों के लिये शनि और बुध, कन्या लग्न वालों के लिये मंगल, तुला लग्न वालों के लिए मंगल, गुरु और सूर्य, वृश्चिक लग्न वालों के लिए बुध, धनु लग्न का मारक शनि, शुक्र, मकर लग्न वालों के लिये मंगल, कुंभ लग्न वालों के लिये गुरु, मंगल, मीन लग्न वालों के लिये मंगल और शनि मारकेश का काम करता है । छठे आठवें बारहवें भाव में स्थित राहु केतु भी मारक ग्रह का काम करते है ।।

मित्रों, यह जरुरी नहीं की मारकेश ही मृत्यु का कारण बने, परन्तु जो भी मारकेश ग्रह होता है वो मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाला अवश्य ही होता है । लेकिन मित्रों, मारकेश के साथ स्थित ग्रह भी जातक की मृत्यु का कारण बन जाता है । मारकेश ग्रह के बलाबल का भी विचार अवश्य करना चाहिए 
कभी-कभी मारकेश न होने पर भी अन्य ग्रहों की दशाएं भी मारक हो जाती हैं । इसीलिए मारकेश के विषय में चन्द्र कुण्डली (लग्न) से भी विचार करना आवश्यक होता है । यह विचार राशि अर्थात जहां चंद्रमा स्थित हो उस भाव को भी लग्न मानकर किया जा सकता है । उपर्युक्त मारक स्थानों के स्वामी अर्थात् उन स्थानों में बैठी हुई राशियों के अधिपति ग्रह मारकेश होते हैं ।।


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।। नारायण नारायण ।।

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