हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, किसी भी कार्य में विजय, शेयर मार्केट में लाभ, नि:सन्तानों को सन्तान की निश्चित प्राप्ति,जड़ से जड़ रोगों की समाप्ति और सभी तापों से विमुक्त होकर भगवान नारायण के विष्णुलोक को प्राप्त होता है ।।
ग्रहों की बुरी से बुरी दशा की निवृत्ति एवं बड़े-से-बड़े मुसीबतों से बचने हेतु तथा किसी भी प्रकार के उपरी हवाओं, नजर-गुजर, जादू-टोना अथवा अन्य किसी भी बुरी दृष्टि को निष्प्रभाव करने के लिये इस गोपाल अक्षय कवचम् का पाठ करें ।।
इसकी विधि ये है, कि आप भगवान कृष्ण के गोपाल रूप की प्रतिमा का पूजन करके माखन-मिश्री का भोग अर्पित करें । इस स्तोत्र का परायण करते समय भगवान के बाल-गोपालों के साथ भोजन करते हुये स्वरुप का ध्यान करें इससे शीघ्र लाभ मिलेगा ।।
अथ श्री गोपाल अक्षय कवचम् ।। Gopala Akshaya kavacham.
श्री गणेशाय नमः ।। श्रीनारद उवाच:-
इन्द्राद्यमरवर्गेषु ब्रह्मन्यत्परमाऽद्भुतम् ।
अक्षयं कवचं नाम कथयस्व मम प्रभो ॥१॥
यद्धृत्वाऽऽकर्ण्य वीरस्तु त्रैलोक्य विजयी भवेत् ।
ब्रह्मोवाच:-
शृणु पुत्र मुनिश्रेष्ठ कवचं परमाद्भुतम् ॥२॥
इन्द्रादिदेववृन्दैश्च नारायणमुखाच्छ्रतम् ।
त्रैलोक्यविजयस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः ॥३॥
ऋषिश्छन्दो देवता च सदा नारायणः प्रभुः ।
अस्य श्रीत्रैलोक्यविजयाक्षयकवचस्य प्रजापतिऋर्षिः,
अनुष्टुप्छन्दः, श्रीनारायणः परमात्मा देवता,
धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः ।।
पादौ रक्षतु गोविन्दो जङ्घे पातु जगत्प्रभुः ॥४॥
ऊरू द्वौ केशवः पातु कटी दामोदरस्ततः ।
वदनं श्रीहरिः पातु नाडीदेशं च मेऽच्युतः ॥५॥
वामपार्श्वं तथा विष्णुर्दक्षिणं च सुदर्शनः ।
बाहुमूले वासुदेवो हृदयं च जनार्दनः ॥६॥
कण्ठं पातु वराहश्च कृष्णश्च मुखमण्डलम् ।
कर्णौ मे माधवः पातु हृषीकेशश्च नासिके ॥७॥
नेत्रे नारायणः पातु ललाटं गरुडध्वजः ।
कपोलं केशवः पातु चक्रपाणिः शिरस्तथा ॥८॥
प्रभाते माधवः पातु मध्याह्ने मधुसूदनः ।
दिनान्ते दैत्यनाशश्च रात्रौ रक्षतु चन्द्रमाः ॥९॥
पूर्वस्यां पुण्डरीकाक्षो वायव्यां च जनार्दनः ।
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ॥१०॥
तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं न वक्तव्यं तु कस्यचित् ।
कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे ॥११॥
देवा मनुष्या गन्धर्वा यज्ञास्तस्य न संशयः ।
योषिद्वामभुजे चैव पुरुषो दक्षिणे भुजे ॥१२॥
निभृयात्कवचं पुण्यं सर्वसिद्धियुतो भवेत् ।
कण्ठे यो धारयेदेतत् कवचं मत्स्वरूपिणम् ॥१३॥
युद्धे जयमवाप्नोति द्यूते वादे च साधकः ।
सर्वथा जयमाप्नोति निश्चितं जन्मजन्मनि ॥१४॥
अपुत्रो लभते पुत्रं रोगनाशस्तथा भवेत् ।
सर्वतापप्रमुक्तश्च विष्णुलोकं स गच्छति ॥१५॥
।। इति ब्रह्मसंहितोक्तं श्रीगोपालाक्षयकवचं सम्पूर्णम् ।।
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वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।
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किसी भी तरह के पूजा-पाठ, विधी-विधान, ग्रह दोष शान्ति आदि के लिए तथा बड़े से बड़े अनुष्ठान हेतु योग्य एवं विद्वान् ब्राह्मण हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ।।
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संपर्क करें:- बालाजी ज्योतिष केंद्र, गायत्री मंदिर के बाजु में, मेन रोड़, मन्दिर फलिया, आमली, सिलवासा ।।
WhatsAap+ Viber+Tango & Call: +91 - 8690 522 111.
E-Mail :: astroclassess@gmail.com
Website :: www.astroclasses.com
www.astroclassess.blogspot.com
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।।। नारायण नारायण ।।।
मित्रों, किसी भी कार्य में विजय, शेयर मार्केट में लाभ, नि:सन्तानों को सन्तान की निश्चित प्राप्ति,जड़ से जड़ रोगों की समाप्ति और सभी तापों से विमुक्त होकर भगवान नारायण के विष्णुलोक को प्राप्त होता है ।।
ग्रहों की बुरी से बुरी दशा की निवृत्ति एवं बड़े-से-बड़े मुसीबतों से बचने हेतु तथा किसी भी प्रकार के उपरी हवाओं, नजर-गुजर, जादू-टोना अथवा अन्य किसी भी बुरी दृष्टि को निष्प्रभाव करने के लिये इस गोपाल अक्षय कवचम् का पाठ करें ।।
इसकी विधि ये है, कि आप भगवान कृष्ण के गोपाल रूप की प्रतिमा का पूजन करके माखन-मिश्री का भोग अर्पित करें । इस स्तोत्र का परायण करते समय भगवान के बाल-गोपालों के साथ भोजन करते हुये स्वरुप का ध्यान करें इससे शीघ्र लाभ मिलेगा ।।
अथ श्री गोपाल अक्षय कवचम् ।। Gopala Akshaya kavacham.
श्री गणेशाय नमः ।। श्रीनारद उवाच:-
इन्द्राद्यमरवर्गेषु ब्रह्मन्यत्परमाऽद्भुतम् ।
अक्षयं कवचं नाम कथयस्व मम प्रभो ॥१॥
यद्धृत्वाऽऽकर्ण्य वीरस्तु त्रैलोक्य विजयी भवेत् ।
ब्रह्मोवाच:-
शृणु पुत्र मुनिश्रेष्ठ कवचं परमाद्भुतम् ॥२॥
इन्द्रादिदेववृन्दैश्च नारायणमुखाच्छ्रतम् ।
त्रैलोक्यविजयस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः ॥३॥
ऋषिश्छन्दो देवता च सदा नारायणः प्रभुः ।
अस्य श्रीत्रैलोक्यविजयाक्षयकवचस्य प्रजापतिऋर्षिः,
अनुष्टुप्छन्दः, श्रीनारायणः परमात्मा देवता,
धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः ।।
पादौ रक्षतु गोविन्दो जङ्घे पातु जगत्प्रभुः ॥४॥
ऊरू द्वौ केशवः पातु कटी दामोदरस्ततः ।
वदनं श्रीहरिः पातु नाडीदेशं च मेऽच्युतः ॥५॥
वामपार्श्वं तथा विष्णुर्दक्षिणं च सुदर्शनः ।
बाहुमूले वासुदेवो हृदयं च जनार्दनः ॥६॥
कण्ठं पातु वराहश्च कृष्णश्च मुखमण्डलम् ।
कर्णौ मे माधवः पातु हृषीकेशश्च नासिके ॥७॥
नेत्रे नारायणः पातु ललाटं गरुडध्वजः ।
कपोलं केशवः पातु चक्रपाणिः शिरस्तथा ॥८॥
प्रभाते माधवः पातु मध्याह्ने मधुसूदनः ।
दिनान्ते दैत्यनाशश्च रात्रौ रक्षतु चन्द्रमाः ॥९॥
पूर्वस्यां पुण्डरीकाक्षो वायव्यां च जनार्दनः ।
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ॥१०॥
तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं न वक्तव्यं तु कस्यचित् ।
कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे ॥११॥
देवा मनुष्या गन्धर्वा यज्ञास्तस्य न संशयः ।
योषिद्वामभुजे चैव पुरुषो दक्षिणे भुजे ॥१२॥
निभृयात्कवचं पुण्यं सर्वसिद्धियुतो भवेत् ।
कण्ठे यो धारयेदेतत् कवचं मत्स्वरूपिणम् ॥१३॥
युद्धे जयमवाप्नोति द्यूते वादे च साधकः ।
सर्वथा जयमाप्नोति निश्चितं जन्मजन्मनि ॥१४॥
अपुत्रो लभते पुत्रं रोगनाशस्तथा भवेत् ।
सर्वतापप्रमुक्तश्च विष्णुलोकं स गच्छति ॥१५॥
।। इति ब्रह्मसंहितोक्तं श्रीगोपालाक्षयकवचं सम्पूर्णम् ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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