गुरु देता है आपको सम्पूर्ण राजयोग । परन्तु कैसे ? ।। Jupiter gives the Sampurna RajYoga.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, गुरु ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं । जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के पीछे गुरु ग्रह की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है । कुण्डली में अगर गुरु मजबूत हो तो सफलता का कदम चूमना बिल्कुल तय है ।। सफलता के पीछे सकारात्मक उर्जा का होना भी अहम होता है और देवगुरु बृहस्पति यही काम करते हैं । गुरु जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में सकारात्मक उर्जा प्रदान करने में सहायक होते हैं । अपने सकारात्मक रुख के चलते व्यक्ति कठिन से कठिन समय को आसानी से सुलझा लेता है ।।
गुरु आशावादी बनाते हैं और निराशा को जीवन में प्रवेश नहीं करने देते । इसके फलस्लरूप सफलता खुद ब खुद कदम चूमने लगती है । जीवन में जब सफलता मिलती रहती है तब जिंदगी में खुशहाली भी आती ही है ।। मित्रों, परन्तु यही गुरु अगर कुण्डली में कमजोर हो तो तमाम मुश्किलें आती है और जीना मुहाल हो जाता है । बनते हुए काम बिगड़ने लगते हैं, किसी काम में यश नहीं मिलता, घर में पैसे की तंगी बनी रहती है और स्वास्थ्य पर भी इसका असर दिखने लगता है ।।
ऐसी स्थिति में ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि अगर आपकी कुंडली में गुरु कमजोर है तो उसे मजबूत कैसे करें ? क्योंकि जीवन में खुशहाली लाने के लिये ये अत्यन्त आवश्यक है । गुरु के प्रबल प्रभाव वाले जातकों की वित्तिय स्थिति मजबूत होती है तथा आम तौर पर इन्हें अपने जीवन काल में किसी गंभीर वित्तिय संकट का सामना नहीं करना पड़ता ।। गुरु प्रभावी जातक सामान्यतया विनोदी स्वभाव के होते हैं तथा जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में इनका दृष्टिकोण सकारात्मक ही होता है । ऐसे जातक अपने जीवन में आने वाले कठिन समस्याओं में भी विचलित नहीं होते तथा अपने सकारात्मक रुख के कारण इन कठिन परिस्थितियों में से भी आसानी से निकल जाते हैं ।।
मित्रों, ऐसे जातक आशावादी होते हैं तथा निराशा का आम तौर पर इनके जीवन में लंबी अवधि के लिए प्रवेश नहीं होता है । जिसके कारण ऐसे जातक अपने जीवन के प्रत्येक पल का पूर्ण आनंद उठाने में सक्षम होते हैं ।। ऐसे जातकों के अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर संबंध होते हैं तथा आवश्यकता के समय वे अपने प्रियजनों की हर प्रकार से सहायता करते हैं । आध्यात्म के मार्ग में भी ऐसे जातक शीघ्रता से ही उत्तम परिणाम प्राप्त करने में सफल होते हैं ।।
कुण्डली में बृहस्पति अगर लग्न मे बैठा हो तो बली होता है और यदि चन्द्रमा के साथ बैठा हो तो चेष्टाबली होता है । गुरु वृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है और ये धनु एवं मीन राशि का स्वामी होता है ।। मित्रों, कुण्डली का शुभ बृहस्पति जातक को मजिस्ट्रेट, वकील, प्रिंसिपल, गुरु, पंडित, ज्योतिषी, बैंक मैनेजर, एमएलए (विधायक जी), मंदिर के पुजारी, यूनिवर्सिटी का अधिकारी, एमपी (सांसद) तथा प्रसिद्द राजनेता आदि बनाता है ।।
वैसे देवगुरु बृहस्पति किसी भी एक राशि में 13 मास तक रहता है । सूर्य, चन्द्र और मंगल देवगुरु बृहस्पति के मित्र ग्रह हैं तथा बुध और शुक्र शत्रु ग्रह है एवं शनि, राहु और केतु समग्रह है देवगुरु बृहस्पति के ।। देवगुरु वृहस्पति बुद्धि तथा उत्तम वाकशक्ति के स्वामी है । बृहस्पति विशाखा, पुनर्वसु तथा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी है । बृहस्पति को प्रसन्न करना है तो ब्रह्माजी एवं बैदिक ब्राह्मणों की सेवा-पूजा करनी चाहिए ।।
मित्रों, बृहस्पति मुख्य रूप से आध्यात्मिकता को विकसित करने वाले ग्रह हैं । गुरु ग्रह को अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, लेखकों जैसे कई प्रकार के क्षेत्रों में कार्य करने का भी कारक माना जाता है ।। गुरु की अन्य कारक वस्तुओं में पुत्र, संतान, जीवन साथी, धन-सम्पति, शैक्षणिक योग्यता, बुद्धिमता, शिक्षा, ज्योतिष, तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा, त्याग, समृ्द्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यों तथा राजसिक सम्मान देखा जा सकता है ।।
गुरु से संबन्धित कार्य क्षेत्र कौन से हैं ? इस विषय की चर्चा हम अपने अगले लेख में विस्तृत रूप से करेंगे । आप पढ़ते रहें और हमारे फेसबुक पेज को अवश्य लाइक करें ।। वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, गुरु ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं । जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के पीछे गुरु ग्रह की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है । कुण्डली में अगर गुरु मजबूत हो तो सफलता का कदम चूमना बिल्कुल तय है ।। सफलता के पीछे सकारात्मक उर्जा का होना भी अहम होता है और देवगुरु बृहस्पति यही काम करते हैं । गुरु जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में सकारात्मक उर्जा प्रदान करने में सहायक होते हैं । अपने सकारात्मक रुख के चलते व्यक्ति कठिन से कठिन समय को आसानी से सुलझा लेता है ।।
गुरु आशावादी बनाते हैं और निराशा को जीवन में प्रवेश नहीं करने देते । इसके फलस्लरूप सफलता खुद ब खुद कदम चूमने लगती है । जीवन में जब सफलता मिलती रहती है तब जिंदगी में खुशहाली भी आती ही है ।। मित्रों, परन्तु यही गुरु अगर कुण्डली में कमजोर हो तो तमाम मुश्किलें आती है और जीना मुहाल हो जाता है । बनते हुए काम बिगड़ने लगते हैं, किसी काम में यश नहीं मिलता, घर में पैसे की तंगी बनी रहती है और स्वास्थ्य पर भी इसका असर दिखने लगता है ।।
ऐसी स्थिति में ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि अगर आपकी कुंडली में गुरु कमजोर है तो उसे मजबूत कैसे करें ? क्योंकि जीवन में खुशहाली लाने के लिये ये अत्यन्त आवश्यक है । गुरु के प्रबल प्रभाव वाले जातकों की वित्तिय स्थिति मजबूत होती है तथा आम तौर पर इन्हें अपने जीवन काल में किसी गंभीर वित्तिय संकट का सामना नहीं करना पड़ता ।। गुरु प्रभावी जातक सामान्यतया विनोदी स्वभाव के होते हैं तथा जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में इनका दृष्टिकोण सकारात्मक ही होता है । ऐसे जातक अपने जीवन में आने वाले कठिन समस्याओं में भी विचलित नहीं होते तथा अपने सकारात्मक रुख के कारण इन कठिन परिस्थितियों में से भी आसानी से निकल जाते हैं ।।
मित्रों, ऐसे जातक आशावादी होते हैं तथा निराशा का आम तौर पर इनके जीवन में लंबी अवधि के लिए प्रवेश नहीं होता है । जिसके कारण ऐसे जातक अपने जीवन के प्रत्येक पल का पूर्ण आनंद उठाने में सक्षम होते हैं ।। ऐसे जातकों के अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर संबंध होते हैं तथा आवश्यकता के समय वे अपने प्रियजनों की हर प्रकार से सहायता करते हैं । आध्यात्म के मार्ग में भी ऐसे जातक शीघ्रता से ही उत्तम परिणाम प्राप्त करने में सफल होते हैं ।।
कुण्डली में बृहस्पति अगर लग्न मे बैठा हो तो बली होता है और यदि चन्द्रमा के साथ बैठा हो तो चेष्टाबली होता है । गुरु वृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है और ये धनु एवं मीन राशि का स्वामी होता है ।। मित्रों, कुण्डली का शुभ बृहस्पति जातक को मजिस्ट्रेट, वकील, प्रिंसिपल, गुरु, पंडित, ज्योतिषी, बैंक मैनेजर, एमएलए (विधायक जी), मंदिर के पुजारी, यूनिवर्सिटी का अधिकारी, एमपी (सांसद) तथा प्रसिद्द राजनेता आदि बनाता है ।।
वैसे देवगुरु बृहस्पति किसी भी एक राशि में 13 मास तक रहता है । सूर्य, चन्द्र और मंगल देवगुरु बृहस्पति के मित्र ग्रह हैं तथा बुध और शुक्र शत्रु ग्रह है एवं शनि, राहु और केतु समग्रह है देवगुरु बृहस्पति के ।। देवगुरु वृहस्पति बुद्धि तथा उत्तम वाकशक्ति के स्वामी है । बृहस्पति विशाखा, पुनर्वसु तथा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी है । बृहस्पति को प्रसन्न करना है तो ब्रह्माजी एवं बैदिक ब्राह्मणों की सेवा-पूजा करनी चाहिए ।।
मित्रों, बृहस्पति मुख्य रूप से आध्यात्मिकता को विकसित करने वाले ग्रह हैं । गुरु ग्रह को अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, लेखकों जैसे कई प्रकार के क्षेत्रों में कार्य करने का भी कारक माना जाता है ।। गुरु की अन्य कारक वस्तुओं में पुत्र, संतान, जीवन साथी, धन-सम्पति, शैक्षणिक योग्यता, बुद्धिमता, शिक्षा, ज्योतिष, तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा, त्याग, समृ्द्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यों तथा राजसिक सम्मान देखा जा सकता है ।।
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