मित्रों, आज से पचास-साठ पहले तक भारत और चीन में प्रायः सभी हिन्दू थे तथा सभी लोग शिखा रखते थे । शिखा रखने के पीछे एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है ।।
खोपड़ी के पीछे के अंदरूनी भाग को संस्कृत में मेरुशीर्ष कहते हैं । मानव शरीर का यह सबसे अधिक संवेदनशील भाग होता है । मेरुदंड की सब शिराएँ यहाँ मस्तिष्क से जुडती हैं ।।
इस भाग का कभी कोई ऑपरेशन नहीं हो सकता क्योंकि शरीर में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवेश यही से होता है । भ्रू-मध्य में आज्ञा चक्र इसी का प्रतिबिम्ब माना जाता है ।।
आजतक जितने योगियों को नाद की ध्वनि सुनायी दी है वो यही केन्द्र है । शरीर का यह भाग पुरे शरीर के लिए रिसीवर का काम करता है ।।
शिखा सचमुच में ही एन्टिना का कार्य करती है । ध्यान के पश्चात् आरम्भ में योनी मुद्रा में कूटस्थ ज्योति के दर्शन होते हैं । वह ज्योति यहीं से प्रवेश करती है ।।
मित्रों, आज्ञा चक्र में नीले और स्वर्णिम आवरण के बीच श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र के रूप में दिखाई देती है । योगी लोग इसी ज्योति का ध्यान करते हैं और इस पञ्चकोणीय नक्षत्र का भेदन करते हैं ।।
यह नक्षत्र ही पंचमुखी महादेव है और मेरुदंड व मस्तिष्क के अन्य चक्रों (मेरुदंड में मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत और विशुद्धि, व मस्तिष्क में कूटस्थ, और सहस्त्रार व ज्येष्ठा, वामा और रौद्री ग्रंथियों एवं श्री बिंदु को ऊर्जा यहीं से वितरित होती है ।।
शिखा धारण करने से यह भाग अधिक संवेदनशील हो जाता है । भारत में जो लोग शिखा रखते थे वे मेधावी होते थे । अतः शिखा धारण की परम्परा भारत के हिन्दुओं में आज भी है ।।
संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मन्त्र के साथ शिखा बंधन का विधान है । इसके पीछे और कोई कारण नहीं है यह मात्र एक संकल्प और प्रार्थना है ।।
किसी भी साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मन्त्र के साथ किया जाता है तथा ये एक हिन्दू परम्परा मात्र है । इसके पीछे यदि और भी कोई वैज्ञानिकता है तो उसका बोध गहन ध्यान में माँ भगवती की कृपा से ही हो सकता है ।।
मित्रों, हमारे यजुर्वेद में शिखा को इन्द्र्योनी कहा गया है । ब्रह्मरन्ध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है । मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है ।।
इसलिए उतने भाग में केश होना बहुत आवश्यक होता है । बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केशराशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है ।।
ब्रह्मरन्ध्र की ऊष्णता और पीनियल ग्लेंड्स की संवेदनशीलता को बनाए रखने हेतु शिखा कि रचना की गई और इसी स्थान पर इसे कोई भी रख सकता है ।।
वैदिक अनुष्ठानादी में ऊर्जा उत्सर्जित ना हो क्योंकि यह स्थान सर्वाधिक कोमल होता है इसलिए इस स्थान पर शिखा बंधन किया जाता है ।।
शिखा को बाँधने का मन्त्र है :-
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