हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, आज हम कर्तरी योग के विषय में बात करेंगे । कर्तरी योग दो प्रकार का होता है । पहला पापकर्तरी योग एवं दूसरा शुभ कर्तरी योग । अब नाम से तो स्पष्ट है, कि पाप बुरा फलदायक होगा और शुभकर्तरी शुभ फलदायक होगा ।।
परन्तु आइये जानते हैं, कि ये दोनों प्रकार के योग जन्मकुण्डली में ग्रहों की किस प्रकार की स्थितियों से निर्मित होते हैं ? मूल रूप से यह योग लग्न से ही आधारित होता है ।।
मित्रों, जन्मकुण्डली में जब लग्न के दोनों तरफ अर्थात द्वितीय और द्वादश भावों में पाप ग्रह स्थित होते हैं तो "पापकर्तरि योग" बनता है । परन्तु यही स्थिति जब विपरीत हो जैसे लग्न से द्वितीय और द्वादश भावों में शुभ ग्रह स्थित हों तो "शुभ कर्तरि योग" बनता है ।।
शुभ कर्तरि संजातस्तेजोवित्तबलाधिकः।।
पापकर्तरिके पापी भिक्षाशी मलिनो भवेत।।
अर्थ:- शुभ कर्तरी योग में जन्म लेने वाला मनुष्य तेजस्वी, धनी तथा बल से परिपूर्ण होता है । एवं पाप कर्तरी योग में जन्म लेने वाला मनुष्य भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करने वाला, निर्धन व गन्दा होता है ।।
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वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।
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किसी भी तरह के पूजा-पाठ, विधी-विधान, ग्रह दोष शान्ति आदि के लिए तथा बड़े से बड़े अनुष्ठान हेतु योग्य एवं विद्वान् ब्राह्मण हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ।।
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संपर्क करें:- बालाजी ज्योतिष केंद्र, गायत्री मंदिर के बाजु में, मेन रोड़, मन्दिर फलिया, आमली, सिलवासा ।।
WhatsAap+ Viber+Tango & Call: +91 - 8690 522 111.
E-Mail :: astroclassess@gmail.com
Website :: www.astroclasses.com
www.astroclassess.blogspot.com
www.facebook.com/astroclassess
।।। नारायण नारायण ।।।
मित्रों, आज हम कर्तरी योग के विषय में बात करेंगे । कर्तरी योग दो प्रकार का होता है । पहला पापकर्तरी योग एवं दूसरा शुभ कर्तरी योग । अब नाम से तो स्पष्ट है, कि पाप बुरा फलदायक होगा और शुभकर्तरी शुभ फलदायक होगा ।।
परन्तु आइये जानते हैं, कि ये दोनों प्रकार के योग जन्मकुण्डली में ग्रहों की किस प्रकार की स्थितियों से निर्मित होते हैं ? मूल रूप से यह योग लग्न से ही आधारित होता है ।।
मित्रों, जन्मकुण्डली में जब लग्न के दोनों तरफ अर्थात द्वितीय और द्वादश भावों में पाप ग्रह स्थित होते हैं तो "पापकर्तरि योग" बनता है । परन्तु यही स्थिति जब विपरीत हो जैसे लग्न से द्वितीय और द्वादश भावों में शुभ ग्रह स्थित हों तो "शुभ कर्तरि योग" बनता है ।।
शुभ कर्तरि संजातस्तेजोवित्तबलाधिकः।।
पापकर्तरिके पापी भिक्षाशी मलिनो भवेत।।
अर्थ:- शुभ कर्तरी योग में जन्म लेने वाला मनुष्य तेजस्वी, धनी तथा बल से परिपूर्ण होता है । एवं पाप कर्तरी योग में जन्म लेने वाला मनुष्य भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करने वाला, निर्धन व गन्दा होता है ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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