हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
जिस प्रकार जीवात्मा
का निवास शरीर में और हमारा भवन में होता है । उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी भवन
का कारक चतुर्थ भाव जो हृदय का भी कारक है । इन दोनों के संबंध में घनिष्टता को स्पष्ट
करता है ।।
मित्रों, वास्तु सिद्धान्तों के अनुसार
पूर्व एवं उत्तर दिशा से सकारात्मक और दक्षिण और पश्चिम दिशा नकारात्मक उर्जा का प्रवाह
होता है । ज्योतिष के अनुसार पूर्व दिशा में सूर्य से एवं उत्तर दिशा में बृहस्पति
से कारक तत्वों का प्रवाह होता है ।।
तदनुसार उत्तर एवं पूर्व
को सकारात्मकता का प्रतिक माना जाता है । पश्चिम में शनि के समान मंगल जैसे पाप ग्रह
की प्रबलता होती है । पश्चिम दिशा में शनि अर्थात नकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है
।।
इससे स्पष्ट होता है,
कि दक्षिण-पश्चिम अंत सदृश अर्थात
नकारात्मक दिशाएं हैं । इन बातों से ये स्पष्ट होता है, कि वास्तु एवं ज्योतिष दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू
हैं और जन्मकुण्डली से वास्तु का स्पष्टीकरण किया जा सकता है ।।
देवगुरु बृहस्पति खुली
जगह, खिड़की, रोशनदान, द्वार, कलात्मकता एवं धार्मिक वस्तुओं
के कारक ग्रह माने जाते हैं । चंद्रमा बाहरी वस्तुओं की गणना का कारक माना गया है ।।
मित्रों, दैत्यगुरु शुक्राचार्य को कच्ची
दीवार, गाय, सुख समृद्धि की सामग्री का कारक
माना जाता है । मंगल खान-पान से संबंधित वस्तुओं के कारक होते हैं । बुध को निर्जीव
वस्तुएं एवं शिक्षा संबंधी विभागों का स्वामी माना गया है ।।
शनिदेव लोहा एवं लकड़ियों
के सामान का नेतृत्व करते हैं । राहु धूम्र ग्रह होने के नाते धूएं का स्थान,
नाली का गंदा पानी एवं कबाड़ा
आदि का कारक होता है । केतु कम खुला सामान आदि का कारक माना गया है ।।
जन्मकुण्डली को एक भवन
के रूप में देखें । स्पष्ट करें कि लग्न भाव पूर्व दिशा है और उसका कारक सूर्य है ।
किसी भी व्यक्ति की कुण्डली में जहां पाप ग्रह बैठा हो वहाँ निर्माण वास्तु सम्मत नहीं
है तो ऐसा निर्माण उस जातक को कष्ट देगा ।।
मित्रों, लग्नेश लग्न में हो और वो यदि
कोई शुभ ग्रह हो तो पूर्व में खिड़कियां रखना शुभ फलदायी होगा । लग्नेश का लग्न में
नीच अथवा पीड़ित हो तो पूर्व दिशा का दोष जिससे जातक मष्तिक रोग से पीड़ित रहेगा एवं
शारीरिक सुख प्राप्त नहीं होगा ।।
लग्नेश का 6,
8, 12वें भाव में पीड़ित होकर बैठना पूर्व दिशा में दोष
बताता है । षष्ठेश लग्न में हो तो पूर्व में खुला हो सकता है परन्तु आवाज अथवा शोर-शराबा
आदि के वजह से परेशानियाँ होगी ।।
मित्रों, लग्नेश तृतीय भाव में हो तो ईशानकोण में टूट-फूट एवं घर को विकृत दर्शाता है । लग्नेश से राहु-केतु की युति उस ग्रह
से सम्बन्धित दिशा में दोष दर्शाती है जो अनुकूल नहीं है ।।
एकादश एवं द्वादश भाव
में पाप ग्रह हों अथवा षष्ठेश या अष्टमेश हो तो घर के ईशान कोण में दोष होगा । जहां-जहां
शुभ ग्रह होंगे वहां-वहां खुलापन हवा व प्रकाश की उचित व्यवस्था होने की सम्भावना होगी
।।
जैसे तृतीय भाव पीड़ित
हो तो भाई-बहन को कष्ट । चतुर्थ भाव एवं चतुर्थेश पीड़ित हो तो मां को कष्ट । सप्तम-नवम्भाव पीड़ित हो तो पत्नी एवं पिता को कष्ट होना स्पष्ट करता है ।।
इसी प्रकार प्रत्येक
व्यक्ति की जन्मकुण्डली के आधार पर उस दिशा के स्वामी ग्रह अथवा देवता की पूजा से उस
दोष को दूर करके ग्रहशान्ति का उपाय भी सरलता से किया जा सकता है और उक्त भावों से
सम्बंधित मिलने वाले कष्टों से बचा जा सकता है ।।
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