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आपकी जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार ।। Santan Sukha Vichar-Horoscope.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, हमारे पूर्वज ऋषिजन जो की हमारे और आपके अर्थात हम सभी के पूर्वज थे उन्होंने ज्योतिष में बहुत ही गहरा अध्ययन एवं अनुसन्धान किया है । अब ये अलग बात है, कि हम या फिर हमारे जैसे बहुत से लोग जो ज्योतिषी बनकर बैठे हैं, उन्हें कितना उसका ज्ञान है ?।।

चलिये उसी ज्योतिष के गूढ़ ज्ञान के माध्यम से आज हम कुण्डली में सन्तान योग पर विचार करेंगे । वैसे मैंने कई लेख इस विषय पर पहले भी लिखा है, जो आज भी हमारे ब्लॉग पर उपलब्ध है और जिसे जाकर वहाँ आप कभी-भी पढ़ सकते हैं ।।

मित्रों, ये कटु सत्य है, कि हर एक दम्पत्ति सन्तान प्राप्ति की कामना से ही विवाह करते हैं । ब्रह्माजी के समय से ही वंश परंपरा की वृद्धि एवं परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी है ।।

ये भी सत्य है, कि एक पुरुष पिता बन कर तथा एक स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं । धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ, दान, तप एवं अन्य सभी पुण्यकर्म तक निष्फल हो जाते हैं ।।

मित्रों, महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है - पुन्नाम नरकात त्रायते इति पुत्रः = अर्थात पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है । अगस्त्य ऋषि ने अपनी संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए ।।

प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है एवं पितरों को सद्गति की प्राप्ति होती है । इसलिए आइये आज हम जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार कैसे करें इस विषय पर चर्चा करते हैं ।।

मित्रों, जैसा की मैंने बताया हमारे पूर्वज ऋषियों ने अपने प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया है । भाग्य में संतान सुख है या नहीं, पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा इन सभी बातों का विस्तृत वर्णन किया है ।।

इतना ही नहीं संतान कैसी निकलेगी, संतान सुख कब मिलेगा, संतान सुख की प्राप्ति में बाधा क्या है एवं उसका उपाय क्या है । इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति-पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो जाता है ।।

मित्रों, जन्म कुंडली के किस भाव से जानें कि सन्तान सुख है अथवा नहीं अथवा उपरोक्त सभी प्रश्नों का हल कहाँ किस भाव से मिलेगा ? तो आइये बताते हैं, किसी भी कुण्डली का जन्म लग्न तथा चन्द्र लग्न में जो सर्वाधिक बलवान हो उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है ।।

पहले तो भाव उसके बाद भाव में बैठी राशि और उसका स्वामी, इन सबसे अलग भाव का कारक, बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा अन्तिम सप्तमांश कुंडली इन सभी के उपर गहराई से विचार संतान सुख के लिए किया जाना आवश्यक होता है ।।

दोनों दम्पत्तियों की कुण्डलीयों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए । अब इसमें भी पंचम भाव से प्रथम संतान का, उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए ।।

मित्रों, उस से आगे की संतानों का विचार भी इसी क्रम से किया जाता है अथवा कर सकते हैं । अब हम अपने अगले लेख में सन्तान सुख प्राप्ति के कुछ ज्योतिषीय योगों का वर्णन करेंगे । तो प्लीज लाइक माय एस्ट्रो क्लासेस ऑफिसियल फेसबुक पेज.

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।। नारायण नारायण ।।

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