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किसी भी कुण्डली पर फलादेश कहाँ से आरम्भ करें ? ज्योतिष का सरल ज्ञान भाग-१. Learn Astrology from Start to end, Part-1.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, आज मैंने सोंचा है, कि ज्योतिष की शुरूआती ज्ञान से आप सभी को अवगत करवाऊं । अपने लेखों के इस श्रृंखला में क्रमबद्ध तरीके से भारतीय फलित ज्योतिष के गूढ़-से-गूढ़ रहस्यों को बहुत ही सरल प्रकार से समझाने का प्रयत्न करूँगा । ग्रह, राशि, नक्षत्र आदि का विस्तृत वर्णन और फलित ज्योतिष में उनका महत्व, जन्मकुण्डली का पूरा-पूरा विश्लेष्ण तथा फलित ज्ञान का विस्तृत वर्णन करने का प्रयत्न करूँगा ।।

इतना ही नहीं उसके आगे ग्रह दशा, मुहूर्त देखने की विधी, वर-कन्या का कुण्डली मिलान आदि विषयों को भी सरलता पूर्वक बताने का प्रयत्न रहेगा । मेरा प्रयत्न सिर्फ इतना है, जिसके विषय में मैं अपने विडियो टूटोरीयल्स में ये बात बार-बार बताते भी रहता हूँ, कि आम जनों तक तक इस वैदिक ज्ञान को सही रूप को पहुंचाना और ज्योतिष के नाम पर फैल रहे पाखण्ड को रोकना ही हमारा उद्देश्य है ।।

मित्रों, अगर आप हमारे लेखों को मन लगाकर पढ़ते हैं अथवा पढेंगे तो निश्चित ही बहुत जल्द आपको ये बात समझ में आ जाएगी की जिस ज्योतिषी के पास आप बैठे हैं उसका ज्ञान कितना प्रभावी है और वो कितना आपका भला कर सकता है । परन्तु जो लोग ज्योतिषी बनना चाहते हैं, अथवा हैं, उनकी अगर हमारे लेखों में रूचि होगी तो वो निश्चित ही बहुत जल्द ज्योतिष के गूढ़-से-गूढ़ ज्ञान को अपने अन्दर आत्मसात कर सकेंगे ।।


वास्तव में प्राणियों का जीवन रथ दो पहियों भाग्य और उनके कर्म पर ही आधारित होता है । ये अकाट्य सत्य है, कि दोनों का ही महत्व किसी एक दुसरे से कम नहीं है । यदि किसी की जन्म कुण्डली, प्रश्न कुण्डली या शकुन आदि के आधार पर उसके पूर्व जन्मों के अशुभ कर्मों के कारण विद्या, विवाह या संतान आदि का अभाव जीवन में होता है तो यज्ञ, दान, जप और विशेष अनुष्ठान आदि के माध्यम से ये सब सम्भव हो सकता है ।।

मित्रों, तस्मात् शास्त्रं प्रमाणं ते = अर्थात जैसे जिन शास्त्रों के आधार पर हम भगवान को जानते हैं, उन्हीं शास्त्रों में ये भी है । जैसे ज्योतिष और ग्रह दोषों का उपाय । जिनके माध्यम से मनुष्य अपने अशुभ कर्मों के प्रभाव को क्षीण करके अपने उन अभावों को दूर कर सकता है । विद्वान व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के द्वारा  अपने दुर्बल भाग्य को बदल कर सौभाग्य को प्राप्त कर सकता है ।।

यज्ञ, दान, व्रतोपवास, जप तथा अन्य और भी विशिष्ट अनुष्ठान आदि भी हमारे शास्त्रों में वर्णित है । इतना ही नहीं जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ भी हमारे शास्त्रों में इन्हीं कर्मों को बताया गया है जिससे व्यक्ति अपने भाग्य की प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकता है । ज्योतिष शास्त्र से हमें अदृष्ट शुभ और अशुभ फल प्राप्ति के समय का ज्ञान हो जाता है ।।


मित्रों, अपने जीवन में आनेवाली दुःखदायी समयों को जानकर हम अपने भौतिक और आध्यात्मिक प्रयत्नों के द्वारा उसका प्रतिकार कर सकते हैं । क्योंकि ये सत्य है कि हम उन्हें टाल नहीं सकते परन्तु जैसे वर्षा के लक्षण देख कर हम छतरी अपने साथ ले कर चल सकते हैं । वर्षा को तो रोक पाना हमारे लिए संभव नहीं है परन्तु छतरी के माध्यम से हम अपना बचाव तो कर ही सकते हैं ।।

भगवान ही ग्रह हैं और भगवान ही ग्रहों के रूप में अवतरित होते हैं । ये बात बृहत्पाराशर होराशास्त्रम् के सृष्ट्यादिक्रमः - अवतारवाद में लिखा है । राम सूर्य के अवतार है तो कृष्ण चन्द्रमा के । मंगल नृसिंह के रूप में आये तो बुद्ध के रूप में बुध । बृहस्पति वामन के रूप में तो शुक्र परशुराम (भार्गव) के रूप में । कुर्मावतार शनि का है तो सुकरावातर राहू का और केतु मत्स्यावतार के रूप में प्रकट हुये ।।

मित्रों, ये सभी धर्म की संस्थापना के लिये परमात्मा के विशिष्टांश के रूप में आये । इनका उद्देश्य धर्म की स्थापना एवं प्राणी मात्र का कल्याण होता है । सभी जीव परमात्मा का ही अंश होता है । किसी में जीवांश ज्यादा होता है तो किसी में परमत्मांश ज्यादा होता है । इस बात को बिना जाने जो व्यक्ति ज्योतिष की निन्दा करता है, महर्षि पराशर कहते हैं मृत्यु के उपरान्त वह व्यक्ति रौरव नरक भोगकर अगले जन्म में अन्धा पैदा होता है ।।


क्योंकि ज्योतिष शास्त्र हमारे वेदों का मुख्य अंग नेत्र के रूप में प्रतिष्ठित है । ज्योतिष शास्त्र के तीन मुख्य विभाग हैं, एक सिद्धान्त, दूसरा संहिता और तीसरा होरा । गणित से काल की गणना, जैसे ग्रहों के संचार का ज्ञान, पृथ्वी, नक्षत्र एवं ग्रहों की स्थिति आदि के ठीक-ठीक निर्धारण की पद्धति का वर्णन होता है । तो मित्रों, अब हम अपने अगले लेख में ज्योतिषशास्त्र के और भी गम्भीर विषयों पर चर्चा करेंगे, आज के लिये इतना ही ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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