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क्या आपका भाग्योदय आपके विवाह के पश्चात होगा ? आपकी जन्मकुण्डली में भाग्योदय कारक योग ।। Vivah And Bhagyodaya Connection.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
 Swami Ji.


मित्रों, बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो कितनी भी सूझ-बुझ से कोई भी काम करें, निराशा एवं अपमान ही हाथ लगता है । ऐसा नहीं होता की करनेवाले ने मन न लगाया हो अथवा धन खर्च न किया हो ? परन्तु सब बेकार हो जाता है और निराशा ही हाथ आती है ।।

ये विषय बड़ा गंभीर एवं सोंचनीय है कि आखिर वहीँ पर कोई एक दूसरा व्यक्ति कुछ भी करें, एक-के-बाद-एक सफलता की सीढ़ी चढ़ते ही जाता है । वहीँ उस व्यक्ति को शिवाय निराशा के और कुछ हाथ नहीं लगता, आखिर ऐसा क्यों होता है ।।

मित्रों, कभी-कभी कुछ लोग मुझे कहते हैं, कि गुरूजी फलां आदमी ने जीवन में कभी कोई पूण्य किया हो ऐसा आजतक किसी ने कभी नहीं देखा । लेकिन उसके बाद भी उस आदमी को कभी किसी भी व्यापार अथवा किसी भी कार्य में नुकशान हुआ हो ऐसा भी कभी किसी ने नहीं देखा ना ही सुना है, ऐसा क्यों ।।


हम पूण्य कर-करके थक जाते हैं, और हाथ सिर्फ निराशा ही लगती है । ऐसे में पूण्य कौन करेगा और क्यों करेगा ? हमने कहा देखो उसके जीवन में दोष अभी तैयार हो रहे हैं । और तुम्हारे जीवन में तुम्हारे पूर्वकृत दोष निवृत्त हो रहे हैं । गीता की वाणी याद करो, अर्जुन ने पूछा - योगभ्रष्ट व्यक्ति की - कां गतिं कृष्ण गच्छति ?

भगवान ने कहा - अथवा श्रीमतां गेहे कुले भवति धीमतां । ऐसा योगी जो योगभ्रष्ट हो जाता है उसका पतन नहीं होता है । अगले जन्म में किसी श्रीमन्त (धनवान कुल) में जन्म ग्रहण करता है । उसके बाद उसके संस्कार यदि अच्छे रह गये तो पुनः योगमार्ग को अपनाकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है । अन्यथा पाप करते हुये भी ऐसो-आराम की जिन्दगी व्यतीत करता है ।।

क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वकृत पुन्यकर्मों का फल भोग रहा है । पाप का फल आगे मिलेगा न ? जब घड़ा भर जायेगा । और तुम्हारा पाप से भरा घड़ा खाली हो रहा है क्योंकि तुम पूण्य कर रहे हो । और उसका पाप का घड़ा भर रहा है, क्योंकि वो पाप कर रहा है । अंतर ये हैं दोनों में, कि एक अपने पाप की कमाई भोग रहा है, दूसरा अपने पूर्वकृत पुण्यों की कमाई उड़ा रहा है ।।


मित्रों, ये तो हुई आध्यात्मिक जगत की बात अब मैं बात करता हूँ, ज्योतिष की । ज्योतिषीय परिपेक्ष्य में कोई व्यक्ति सुखी होते हुये भी दुखी होता है अर्थात उसके किये कार्य नहीं बनते तो हो सकता है उसका भाग्योदय उसके विवाह के बाद हो । और ऐसा होते हुये मैंने कईयों को देखा है तथा ज्योतिष भी इस बात को विस्तृत रूप से बतलाता है ।।

कभी-कभी किसी का कोई एक्सीडेंट हो जाय अथवा कोई गंभीर बीमारी हो जाय उसके बाद उसका भाग्योदय होता है । किसी-किसी के तो माता अथवा पिता की मृत्यु के पश्चात् भाग्योदय होता है । इसी प्रकार कई बार मृत्यु तुल्य कष्ट से गुजरने के पश्चात् ही भाग्योदय होता है । इतना ही नहीं भाग्योदय होने के और भी कई कारण हो सकते हैं ।।

मित्रों, परन्तु आज हम बात करेंगे ज्योतिष में कौन सा ऐसा योग है, जो विवाह के बाद जातक के भाग्योदय होने के संकेत देता है । मित्रों, जिस व्यक्ति कि जन्मकुण्डली में सप्तम भाव, सप्तम भाव का कारक ग्रह, एवं सप्तमेश की स्थिति के बलवान हो तो ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय विवाह के पश्चात् ही होता है ।।


किसी व्यक्ति कि जन्मकुण्डली में उसका शुक्र और सप्तम भाव का मालिक ग्रह यदि उसकी नवमांश कुण्डली में मजबूत स्थिति में हों तो उस जातक का भाग्योदय उसके विवाह के बाद ही होता है । ऐसे वो चाहे जितना भी सर पटक ले उसके कृत कार्यों का उचित फल उसे नहीं ही मिलता है ।।

मित्रों, यदि किसी की कुण्डली में सप्तमेश नवम भाव में नवमेश के साथ हो तो विवाह के बाद भाग्योदय होना निश्चित है । इस कुण्डली में सप्तमेश यदि दशमेश, लग्नेश या चतुर्थेश के साथ में भी हो तो भी जातक का भाग्योदय उसके विवाह के बाद ही होता है इसमें कोई संशय नहीं है ।।

जिस व्यक्ति कि जन्मकुण्डली में उसका सप्तमेश अपनी उच्च राशि में, अपनी खुद की राशि में अथवा अपनी मूल त्रिकोण राशि में बैठा हो तथा सप्तम भाव को कोई शुभग्रह देख रहा हो तो ऐसे जातक का भाग्योदय उसके विवाह के बाद ही होता है और निश्चित ही होता है ।।


मित्रों, जन्मकुण्डली में सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र यदि बलवान हो तथा शुभ स्थिति में हो । ये शुक्र यदि अपने षड्वर्ग में भी बलवान हो । सप्तमेश यदि गुरू अथवा शुक्र के साथ शुभ स्थिति में हो । शुक्र यदि लग्न, पञ्चम, नवम अथवा एकादश भाव में हो तो जातक का भाग्योदय उसके विवाह के बाद ही होता है ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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