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ग्रहों का खिलौना है मनुष्य का जीवन ।। Hamara Jivan And Grahon Ka Khel.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, कभी कंचन से प्रभावित होना कभी किसी कामिनी के चक्कर में पड़ना । ये सब ग्रहों का ही तो खेल है ग्रह ही तो संसार में सभी को नाच नचाते हैं । हर इंसान के पास दिल दिमाग हाथ पैर और शरीर के हिस्से लगभग एक जैसे होते हैं । परन्तु सभी की शक्ल अलग अलग होती है । भगवान् ने सबका शरीर एक समान बनाया है पर सबकी सोच अलग अलग है यही तो ग्रहों का खेल है ।।

लगभग सभी जीवों की कुण्डलियों में ग्रहों की स्थिति अलग अलग होती है । तभी तो कुछ लोग सात्विक होते हैं तो कुछ लोग तामसिक होते हैं । जिसकी जैसी ग्रह स्थिति होती है उसकी वैसी ही सोंच होती है । एक तरह से देखा जाय तो ये सारा खेल रेडीएशन अर्थात किरणों का खेल है । ग्रहों कि तो हम इंसानों से बहुत ज्यादा दूरी है परन्तु उनसे निकलने वाली ऊर्जा हम सभी को प्रभावित करती है ।।

मित्रों, ग्रहों की यही उर्जा (रेडीएशन) हमें अच्छा या बुरा सोचने और करने को मजबूर करती है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुण्डली में सूर्य शनि शत्रु ग्रह बताये जाते हैं । इसका मतलब ये है, कि इनकी किरणों में मदभेद है । जैसे हम जब भी बहुत गर्मी में जाते हैं, तो अपनी आँखों पर काला चश्मा पहन लेते हैं तब हमारे आँखों को थोड़ी राहत मिलता है क्योंकि काला रंग गर्मी को सोख लेता है ।।


हम अपनी कार में काले रंग का शीशा चढ़ाते हैं, उससे गर्मी का प्रभाव कम हो जाता है । क्योंकि काला रंग सूर्य का शत्रु बताया गया है कारण काला और नीला अर्थात शनि । यही शनि ही सूर्य की किरणों को रोक लेते हैं जैसे काले बादल सूर्य को ढक देते है । बादलों द्वारा सूर्य की किरणों को ढकने के बाद ही बारिश होती है इसमें भी ग्रहों की किरणों का खेल स्पष्टतः दिख जाती है ।।

मित्रों, हमारे मोबाइल का जो नेटवर्क है वो भी एक प्रकार का किरण ही है । एक प्रकार की उर्जा ही सिग्नल का काम करती है तब हमारा मोबाइल काम करता है । परन्तु हमें वो किरणें दिखाई तो नहीं देती हैं । परन्तु हमारा मोबाइल उनके माध्यम से ही काम कर रहा होता है । ऐसे ही हमारा मस्तिष्क भी एक फ़ोन ही है और हमारी सोंच जो है वो वास्तव में इन ग्रहों की उर्जा अर्थात रेडीएशन हैं ।।

स्पष्ट है, कि हमारे अन्दर जो सोंच है वो ग्रहों के वजह से ही है । हमारी जिंदगी हमारी सोंच पर ही चलती है अथवा निर्भर है । इससे स्पष्ट है, कि सोंच जब ग्रहों से आती है और सोंच पर ही जिंदगी निर्भर है, तो ग्रहों से ही हमारी जिंदगी भी संचालित होती है । अब रही बात कि अगर अच्छे ग्रहों की किरणें हमारे शरीर पर पड़ती है तो हम अच्छा सोंचते हैं और बुरे ग्रहों की किरणें पड़े तो हम गलत सोंचने को मजबूर हो जाते हैं ।।


मित्रों, हम एक एंटीना की तरह हैं और ये ग्रह सेटलाइट की तरह हैं । उनकी अच्छी किरणें जब हमारे जीवन में दशा-अन्तर्दशा के रूप में आयेंगी तो एक ठेले पर केला बेचने वाला अम्बानी बन जाता है । परन्तु उन्हीं ग्रहों की बुरी किरणें जब दशा-अन्तर्दशा के रूप में जीवन में आती हैं तो अच्छा-ख़ासा व्यापारी माल्या जैसे लोग भगोड़ा बन जाते हैं ।।

जब हमारे कर्म अच्छे अर्थात पूजा-पाठ में लगी होती है तो ग्रहों की पॉजिटिव एनर्जी हमारी ओर आकर्षित होती हैं । परन्तु जब हम बुरे कर्मों में प्रवृत्त होते हैं तो ग्रहों की बुरी उर्जा हमारी ओर आकृष्ट होती है और हमें बर्बाद कर देती है । इतना ही नहीं प्रकृति कि सुविधाओं का हम बिना यज्ञ-दान के उपभोग करते रहें, और कहते रहें कि हमने तो किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है तो भी हम दोषी होते ही हैं ।।

मित्रों, उसका कारण ये हैं, कि हमने प्रकृति की सम्पदा जैसे हवा, पानी तथा सूर्य की किरणें इत्यादि का उपभोग करते हैं । परन्तु इनपर हमारा हक तभी होता है, जब हम इनको सुरक्षित रखने के लिये कुछ करें । इनको सुरक्षित रखने के लिये हमें शास्त्रानुसार यज्ञ, हवन-दान के अलावा पेड़-पौधे लगाना आदि करना ही पड़ता है अन्यथा हम इनके दोषी होते ही हैं ।।


इसी से हमारे जीवन में ग्रहों की पॉजिटिव एनर्जी का प्रभाव होता है हमारे खुबसूरत शरीर से नहीं । जैसे आप कितना ही महंगा मोबाइल क्यों न ले लो अगर उसमें नेटवर्क नहीं आता तो वो आपके लिए बेकार है । ऐसे ही जब तक ग्रहों की सकारात्मक उर्जा आपके शरीर अथवा जीवन में नहीं पड़ेगी तो आप न कुछ सोंच सकते हैं न ही कुछ कर सकते हैं । यही मानव जीवन है और इसी को ग्रहों का खेल कहते हैं अच्छे दिन आयें इसके लिये धर्म में प्रवृत्त होना ही पड़ेगा ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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