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किसी विशिष्ट कामना की पूर्ति हेतु माँ कात्यायनी को आज इन विशिष्ट सामग्रियों से पूजन करें ।।
किसी विशिष्ट कामना की पूर्ति हेतु माँ कात्यायनी को आज इन विशिष्ट सामग्रियों से पूजन करें ।।
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किसी विशिष्ट कामना की पूर्ति हेतु माँ कात्यायनी को आज इन विशिष्ट सामग्रियों से पूजन करें ।। Vishisht Kamana Ki Purti Hetu Mata Katyayani Ki Vishisht Pooja.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, आज शारदीय नवरात्रा की षष्ठी तिथि है इसलिए आज के दिन आदिशक्ति माता श्री जगतजननी जगदम्बिका माता श्री दुर्गा देवी के छठे रूप माता श्री कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है । महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था । इसलिए वही आदिशक्ति जगतजननी माता कात्यायनी कहलाती हैं ।।
नवरात्रि में उपवाद एवं साधना करनेवाले भक्तों के मन को आज के दिन उनकी आज्ञाचक्र में स्थित अनुभव किया गया है हमारे पूर्वज ऋषियों के द्वारा । आज माता कात्यायनी की उपासना से साधकों के आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है । वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वदा के लिए विनष्ट हो जाते हैं ।।
मित्रों, माता कात्यायनी के नाम से जुड़ी एक कथा ये है, कि एक समय कत नामक एक प्रसिद्ध ऋषि थे । उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए और उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन हुए । उन्होंने भगवती पराम्बरा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की । उनकी इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें और माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली ।।
कुछ समय के पश्चात जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था । महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं। अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की और माता ने पूजा से प्रशन्न होकर दशमी को महिषासुर का वध किया ।।
मित्रों, इनका स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य और स्वर्ण के समान देदीप्यमान है । इनकी चार भुजायें हैं, इनका दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे का हाथ वरदमुद्रा में रहता है । बांये ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल लिए रहती हैं और इनका वाहन सिंह है । आज के दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है । योगसाधना में आज्ञाचक्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।।
इस चक्र में स्थित साधक कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है । पूर्ण आत्मदान करने से साधक को सहजरूप से माँ के दर्शन हो जाते हैं । माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति सहज ही हो जाती है । माता की आराधना से भक्त का हर काम सरल एवं सुगम हो जाता है । जिनकी भुजाओं में चन्द्रहास नामक तलवार शोभायमान हो रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी कात्यायनी हमारा कल्याण करें ।।
माता दुर्गा के छठा रूप महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं । महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा के इस रूप को कात्यायनी कहा गया है । देवी कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा भक्तों के सभी संकटों का नाश हो जाता है ।।
माता कात्यायनी के पूजन से भक्तों के भीतर एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है । इस दिन साधकों के साधारण पूजन से ही माता कात्यायनी सहज रूप से ही अपने भक्तों को दर्शन दे देती हैं । जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी की अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु माता से प्रार्थना करनी चाहिए ।।
सर्वप्रथम कलश और उसमें स्थापित सभी देवी देवताओं की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी-देवताओं की पूजा करें । सामान्यतया आप माता की प्रतिमा जो देखते हैं उनमें दोनों तरफ विराजमान देवी-देवताओं की पूजा ही देवी की सपरिवार पूजा है । इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है । पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र से उनका ध्यान करें ।।
महर्षि कात्यायन की प्रार्थना से माता ने अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को अवतार लिया । अश्विन शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी इन तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने माता की पूजा की और दशमी को माता ने महिषासुर का वध किया तथा देवताओं को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया । माता की प्रशन्नता का अचूक मन्त्र है - सर्व मंगल माँड़गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नामोस्तुते ।।
मित्रों, जो लोग कला के क्षेत्र से जुड़े हुए है, देशी घी का तिलक देवी माँ को लगाएं । देवी माँ के सामने देशी घी का दीपक जरुर जलाएं । ऐसा करने से हर तरह के कला के क्षेत्र में सफलता अवश्य ही मिलती है । खेलकूद के क्षेत्र सफलता पाने के लिए देवी माँ को सिन्दूर और शहद मिलाकर पुरुष उनके पैरों तथा स्त्रियाँ उनके माँग में तिलक करें । अपनी माँ का आशीर्वाद भी लेवें इस प्रकार अपनी माँ और कात्यायनी माँ का आशीर्वाद आपको सफलता जरुर दिलाएगा ।।
राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लाल कपड़े में २१ चूड़ियाँ, २ जोड़ी चांदी की बिछिया, ५ गुड़हल के फूल, ४२ लौंग, ७ कपूर और सुगन्धित द्रब्य इत्र इत्यादि बांधकर देवी माँ के चरणों में अर्पित करें, सफलता जरुर मिलेगी । प्रतियोगिता में सफलता के लिए ७ प्रकार की दालों का चूरा बनाकर चींटियों को खिलाने से सफलता मिलती है । देवी माता की पूजा के पश्चात महादेव और श्री हरि नारायण की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ करनी चाहिए ।।
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