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कौन सा ग्रह वक्री हो तो क्या शुभ या अशुभ फल देता है ।।



कौन सा ग्रह वक्री हो तो क्या शुभ या अशुभ फल देता है ।। Kaun Sa Grah Vakri Hokar Kya Shubh Ya Ashubh Fal Deta Hai.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, मैंने अपने कल के लेख में आपलोगों को बताया था, कि ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की वक्र गति क्या और कैसे माना जाता है अथवा होता है । साथ ही मैंने ये भी बतलाया था कि वक्री ग्रहों का हमारे जीवन में अथवा कुण्डली पर प्रभाव एवं शुभाशुभ फल । परन्तु वक्री ग्रहों के विषय में एक बात और ये है, कि यात्रा देखते समय यात्रा के लग्न में एक भी ग्रह वक्री हो तो शुभ फल नहीं होता अर्थात अशुभ फल ही माना जाता है ।। अब आज हम बात करेंगे अलग-अलग विभिन्न ग्रहों का वक्री अवस्था का शुभाशुभ फल क्या होता है । तो हम सर्वप्रथम बृहस्पति के वक्री होने और उसके द्वारा मिलनेवाले शुभाशुभ फल कि बात करते हैं । कुण्डली में बृहस्पति वक्री हो तो पंचम भाव से सम्बन्धित फल को प्रभावित करता है । दुसरे मंगल कि बात करें तो मंगल तीसरे भाव का फल देता है । ग्रहों में राजकुमार बुध चतुर्थ स्थान से सम्बन्धित फल को प्रभावित करते हैं ।।

मित्रों, किसी कुण्डली में अगर शुक्र वक्री हो तो विवाह स्थान अर्थात सप्तम भाव के फल पर प्रभाव डालता है । शनि भाग्य स्थान के और चन्द्रमा दूसरे स्थान के फल को प्रभावित करता है । लगभग हर दूसरे व्यक्ति की जन्मकुण्डली में एक या इससे अधिक वक्री ग्रह होते ही हैं । अधिकांश लोगों के मन में यह जिज्ञासा बनी रहती है कि उनकी कुण्डली में जिस ग्रह को वक्री बताया जाता है उस ग्रह का क्या मतलब हो सकता है ।। वक्री ग्रहों को लेकर भिन्न-भिन्न ज्योतिषियों तथा विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत होते हैं । इसलिये आज हम वक्री ग्रहों के बारे में ही चर्चा करेंगे । सामान्यतः कोई भी ग्रह जब अपनी सामान्य दिशा के बजाए उल्टी दिशा यानि विपरीत दिशा में चलना शुरू कर देता है तो ऐसे ग्रह की इस गति को वक्र गति कहा जाता है । उदाहरण के लिए शनि यदि अपनी सामान्य गति से कन्या राशि में भ्रमण कर रहे हों....

तो इसका अर्थ यह होता है कि शनि कन्या से तुला राशि की तरफ जा रहे हैं । किन्तु वक्री होने की स्थिति में शनि उल्टी दिशा में चलना शुरू कर देते हैं अर्थात शनि कन्या से तुला राशि की ओर न जाते हुए कन्या राशि से सिंह राशि की ओर चलना शुरू कर देते हैं । जैसे ही शनि का वक्र दिशा में चलने का यह समय काल समाप्त हो जाता है, वे पुन: अपनी सामान्य गति और दिशा में कन्या राशि से तुला राशि की तरफ चलना शुरू कर देते हैं ।। मित्रों, वक्र दिशा में चलने वाले अर्थात वक्री होने वाले बाकि के सभी ग्रह भी इसी तरह का व्यवहार करते हैं । अब आप कुछ अन्य ज्योतिषि जो कि वक्री ग्रहों के बारे में क्या धारणाएं रखते हैं उनके विचारों को जानें । कुछ ज्योतिषियों की यह धारणा है, कि वक्री ग्रह किसी भी कुण्डली में सदा अशुभ फल ही प्रदान करते हैं क्योंकि वक्री ग्रह उल्टी दिशा में चलते हैं इसलिए उनके फल भी अशुभ ही होंगे ।।

कुछ ज्योतिषियों कि मान्यता है, कि वक्री ग्रह किसी कुण्डली विशेष में अपने कुदरती स्वभाव से विपरीत आचरण करते हैं । उनका अभिप्राय यह होता है, कि अगर कोई ग्रह किसी कुण्डली में सामान्य रूप से यदि शुभ फल देने वाला होता है तो वक्री होने की स्थिति में वह अशुभ फल देता है । इसी प्रकार अगर कोई ग्रह किसी कुण्डली में सामान्य रूप से अशुभ फल देने वाला है तो वक्री होने की स्थिति में वह शुभ फल देता है ।। मित्रों, इस धारणा का मूल उद्देश्य मुझे यह समझ में आता है, कि वक्री ग्रह उल्टी दिशा में चलता है इसलिए उसका शुभ या अशुभ प्रभाव भी सामान्य से उल्टा होता है । कुछ ज्योतिषियों का मानना है, कि अगर कोई ग्रह अपनी उच्च की राशि में स्थित हो और वक्री हो तो उसके फल अशुभ हो जाते हैं । साथ ही यदि कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में वक्री होता है तो उसके फल शुभ हो जाते हैं ।।

कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार वक्री ग्रहों के प्रभाव बिल्कुल सामान्य गति से चलने वाले ग्रहों की तरह ही होते हैं और उनके फल में कुछ भी अंतर नहीं आता है । इनके अनुसार प्रत्येक ग्रह केवल सामान्य दिशा में ही भ्रमण करता है तथा कोई भी ग्रह सामान्य से उल्टी दिशा में भ्रमण करने में सक्षम नहीं होता । परन्तु मेरी धारणा तथा मेरे अनुभव के आधार पर किसी भी वक्री ग्रह का व्यवहार उसके सामान्य होने की स्थिति से अलग होता है ।। मित्रों, साथ ही वक्री और सामान्य ग्रहों को एक जैसा कदापि नहीं मानना चाहिए । हाँ कभी-कभी अधिकतर मामलों में किसी ग्रह के वक्री होने से कुण्डली में उसके शुभ या अशुभ होने की स्थिति पर कोई फर्क नही पड़ता । अभिप्राय यह है, कि सामान्य स्थिति में किसी कुण्डली में शुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में भी शुभ फल ही प्रदान करता है ।।

साथ ही सामान्य स्थिति में किसी कुण्डली में अशुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में भी अशुभ फल ही प्रदान करता है । अधिकतर मामलों में ग्रह के वक्री होने की स्थिति में उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं आता । परन्तु ग्रहों के स्वाभाविक व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाता है । वक्री होने की स्थिति में किसी ग्रह विशेष के व्यवहार में आने वाले इन बदलावों के बारे में जानना चाहिये ।। मित्रों, यहाँ एक विशेष बात जानना आवश्यक है, कि नवग्रहों में सूर्य तथा चन्द्र सदैव ही सामान्य दिशा में चलते हैं । क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा दोनों ग्रह कभी किसी अवस्था में भी वक्री नहीं होते । इनके अतिरिक्त राहु-केतु सदा उल्टी दिशा में ही चलते हैं अर्थात हमेशा ही वक्री रहते हैं । इसलिए सूर्य-चन्द्र तथा राहु-केतु के फल तथा व्यवहार सदा सामान्य ही रहते हैं और इनमें कोई अंतर नहीं आता ।।

अब बाकी के पांच ग्रहों के स्वभाव और उनके व्यवहार में उनके वक्री होने की स्थिति में क्या अंतर आते हैं । इस विषय में हम अपने अगले अंक में विस्तृत चर्चा करेंगे । वक्री ग्रहों कि पहचान तथा उनकी स्थिति का विस्तृत विवेचन हम अपने अगले लेख में करेंगे ।। वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।


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