कुण्डली में जमींदारी योग एवं अतुलनीय धन का योग ।। Jamindari Yoga And Atulaniya Dhandayak Yoga.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, जीवन में धन तथा ऐसो-आराम सभी चाहते हैं । परन्तु चाहने मात्र से किसी को नहीं मिलता । संस्कृत में एक कहावत है, कि भाग्यं फलति सर्वदा न विद्या न च पौरुषम् अर्थात भाग्य के अनुसार ही व्यक्ति के जीवन में धन एवं सुख की प्राप्ति होती है ।।
हमनें परिश्रम करनेवाले भी बहुत देखे हैं पर उनकी भी हालत दरिद्र की तरह ही देखा है । परन्तु कुछ ऐसे भी देखे हैं, जिन्हें बोलना और ठीक से चलना भी नहीं आता परन्तु वो करोड़पति हैं ।।
आखिर ये होता कैसे और क्यों है ? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धन प्राप्ति का कुछ योग बताता हूँ । किसी भी कुण्डली में केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी अथवा अन्य शुभ भावों का स्वामी ग्रह जो होता है, वो जातक को धन, पद-प्रतिष्ठा एवं समस्त ऐसो-आराम आदि वांछित पदार्थों को देता है ।।
इसके अलावा जो भाव पापी है तथा उन भावों के स्वामी यदि केवल पाप प्रभाव में ही हों तो जातक के पापत्व का नाश करके जातक को धन-धान्य आदि प्रदान करते हैं ।।
मित्रों, किसी ग्रह का प्रभाव तब और बढ जाता है, जब वह साधारण बली नहीं बल्कि अति बली होता है । धनदायक योगों के लिये पहले शुक्र को देखना होगा, कि वह एक या एक से अधिक लग्नों में बैठा है क्या ।।
लग्न या लग्नेश से दूसरे, पञ्चम, नवम तथा एकादश भाव के बलवान स्वामियों की परस्पर युति हो अथवा इनकी शुभ दृष्टि इनपर हो तो अतुलनीय धन का योग जातक के जीवन में बनता है ।।
कुण्डली में नवमेश+दशमेश का सम्बन्ध, चौथे और पांचवें भाव के स्वामियों का सम्बन्ध, सप्तमेश शुभ हो तथा नवमेश के साथ उसका संबन्ध हो अथवा पंचमेश और सप्तमेश का शुभ सम्बन्ध भी अतुलनीय धन का योग बनाता है ।।
मित्रों, तीन, छ:, आठ और बारहवें भावों के स्वामी अगर अपनी राशियों से बुरे भावों में बैठें और बुरे ही ग्रहों द्वारा देखे जायें तो भी अतुलनीय धन के योग बनाते हैं ।।
उदाहरण के लिए जैसे मेष लग्न की कुण्डली में बुध वृश्चिक राशि में अष्टम भाव में बैठा हो और शनि के पाप प्रभाव में हो तो मारकेश बुध बहुत निर्बल हो जायेगा और यह जातक का अनिष्ट करने लायक नहीं रह जायेगा ।।
दूसरा कारण है, कि यह बुध अनिष्टदायक भाव में होकर अपने शत्रु की राशि में होगा तथा शनि द्वारा दृष्ट होकर असहाय जैसा हो जायेगा ऐसे वह किसी का क्या बुरा कर सकता है ।।
मित्रों, तीसरा कारण यह है, कि बुध तृतीय घर से छठे स्थान में विराजमान होगा और छठे स्थान से तीसरा होकर और बुरी स्थिति में होगा ।।
अभिप्राय यह है, कि कोई शत्रु ग्रह अथवा कोई बाधक ग्रह कमजोर हो तो जातक के लिए अच्छी बात ही होती है । क्योंकि वो अपनी दशा में भी कोई अनिष्ट नहीं कर पायेगा ।।
मित्रों, कुण्डली में सभी लग्नों के स्वामी आपस में युति करें तो भी धन दायक योग बन जाता है । शुक्र गुरु से बारहवें भाव में बैठ जावे तो भी धन दायक हो जाता है ।।
चार या चार से अधिक भावों का अपने स्वामियों से द्र्ष्ट होने पर भी धनदायक योग बनता है । किसी ग्रह का तीनों लग्नों से शुभ बन जाना भी धनदायक योग बना देता है ।।
मित्रों, सूर्य या चन्द्र का नीच भंग हो जाना भी धनदायक बन जाता है । कोई उच्च का ग्रह शुभ स्थान में चला जाये और जिस स्थान में वह उच्च का ग्रह गया उसका स्वामी भी उच्च का हो जाये तो भी धनदायक योग बनता है ।।
शुभ भाव का स्वामी अगर बक्री हो जाये तो भी धनदायक योग बनता है । यदि यह सब कारण तीनों लग्नों में आ जाये तो शुभता कई गुनी बढ जाती है ।।
मित्रों, अब जमींदारी योग के विषय में बात करते हैं । कुण्डली में यदि चौथे घर का मालिक दशम में तथा दशमेश चतुर्थ मे हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में बहुत जमीन का स्वामी होता है ।।
कुण्डली में चतुर्थेश, २ या ११वें स्थान पर हो अथवा चतुर्थेश, दशमेश और चन्द्रमा बलवान हों और परस्पर मित्र भी हों तो जातक बहुत बड़े जमींदार का बेटा होता है ।।
किसी कि जन्म कुण्डली में पंचमेश लग्न मे हो अथवा सप्तमेश, नवमेश तथा एकादशेश लग्न मे हों तो जातक गरीब घर में पैदा होकर भी बहुत ही जमीनों का स्वामी बन जाता है ।।

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, जीवन में धन तथा ऐसो-आराम सभी चाहते हैं । परन्तु चाहने मात्र से किसी को नहीं मिलता । संस्कृत में एक कहावत है, कि भाग्यं फलति सर्वदा न विद्या न च पौरुषम् अर्थात भाग्य के अनुसार ही व्यक्ति के जीवन में धन एवं सुख की प्राप्ति होती है ।।
हमनें परिश्रम करनेवाले भी बहुत देखे हैं पर उनकी भी हालत दरिद्र की तरह ही देखा है । परन्तु कुछ ऐसे भी देखे हैं, जिन्हें बोलना और ठीक से चलना भी नहीं आता परन्तु वो करोड़पति हैं ।।
आखिर ये होता कैसे और क्यों है ? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धन प्राप्ति का कुछ योग बताता हूँ । किसी भी कुण्डली में केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी अथवा अन्य शुभ भावों का स्वामी ग्रह जो होता है, वो जातक को धन, पद-प्रतिष्ठा एवं समस्त ऐसो-आराम आदि वांछित पदार्थों को देता है ।।
इसके अलावा जो भाव पापी है तथा उन भावों के स्वामी यदि केवल पाप प्रभाव में ही हों तो जातक के पापत्व का नाश करके जातक को धन-धान्य आदि प्रदान करते हैं ।।
मित्रों, किसी ग्रह का प्रभाव तब और बढ जाता है, जब वह साधारण बली नहीं बल्कि अति बली होता है । धनदायक योगों के लिये पहले शुक्र को देखना होगा, कि वह एक या एक से अधिक लग्नों में बैठा है क्या ।।
लग्न या लग्नेश से दूसरे, पञ्चम, नवम तथा एकादश भाव के बलवान स्वामियों की परस्पर युति हो अथवा इनकी शुभ दृष्टि इनपर हो तो अतुलनीय धन का योग जातक के जीवन में बनता है ।।
कुण्डली में नवमेश+दशमेश का सम्बन्ध, चौथे और पांचवें भाव के स्वामियों का सम्बन्ध, सप्तमेश शुभ हो तथा नवमेश के साथ उसका संबन्ध हो अथवा पंचमेश और सप्तमेश का शुभ सम्बन्ध भी अतुलनीय धन का योग बनाता है ।।
मित्रों, तीन, छ:, आठ और बारहवें भावों के स्वामी अगर अपनी राशियों से बुरे भावों में बैठें और बुरे ही ग्रहों द्वारा देखे जायें तो भी अतुलनीय धन के योग बनाते हैं ।।
उदाहरण के लिए जैसे मेष लग्न की कुण्डली में बुध वृश्चिक राशि में अष्टम भाव में बैठा हो और शनि के पाप प्रभाव में हो तो मारकेश बुध बहुत निर्बल हो जायेगा और यह जातक का अनिष्ट करने लायक नहीं रह जायेगा ।।
दूसरा कारण है, कि यह बुध अनिष्टदायक भाव में होकर अपने शत्रु की राशि में होगा तथा शनि द्वारा दृष्ट होकर असहाय जैसा हो जायेगा ऐसे वह किसी का क्या बुरा कर सकता है ।।
मित्रों, तीसरा कारण यह है, कि बुध तृतीय घर से छठे स्थान में विराजमान होगा और छठे स्थान से तीसरा होकर और बुरी स्थिति में होगा ।।
अभिप्राय यह है, कि कोई शत्रु ग्रह अथवा कोई बाधक ग्रह कमजोर हो तो जातक के लिए अच्छी बात ही होती है । क्योंकि वो अपनी दशा में भी कोई अनिष्ट नहीं कर पायेगा ।।
मित्रों, कुण्डली में सभी लग्नों के स्वामी आपस में युति करें तो भी धन दायक योग बन जाता है । शुक्र गुरु से बारहवें भाव में बैठ जावे तो भी धन दायक हो जाता है ।।
चार या चार से अधिक भावों का अपने स्वामियों से द्र्ष्ट होने पर भी धनदायक योग बनता है । किसी ग्रह का तीनों लग्नों से शुभ बन जाना भी धनदायक योग बना देता है ।।
मित्रों, सूर्य या चन्द्र का नीच भंग हो जाना भी धनदायक बन जाता है । कोई उच्च का ग्रह शुभ स्थान में चला जाये और जिस स्थान में वह उच्च का ग्रह गया उसका स्वामी भी उच्च का हो जाये तो भी धनदायक योग बनता है ।।
शुभ भाव का स्वामी अगर बक्री हो जाये तो भी धनदायक योग बनता है । यदि यह सब कारण तीनों लग्नों में आ जाये तो शुभता कई गुनी बढ जाती है ।।
मित्रों, अब जमींदारी योग के विषय में बात करते हैं । कुण्डली में यदि चौथे घर का मालिक दशम में तथा दशमेश चतुर्थ मे हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में बहुत जमीन का स्वामी होता है ।।
कुण्डली में चतुर्थेश, २ या ११वें स्थान पर हो अथवा चतुर्थेश, दशमेश और चन्द्रमा बलवान हों और परस्पर मित्र भी हों तो जातक बहुत बड़े जमींदार का बेटा होता है ।।
किसी कि जन्म कुण्डली में पंचमेश लग्न मे हो अथवा सप्तमेश, नवमेश तथा एकादशेश लग्न मे हों तो जातक गरीब घर में पैदा होकर भी बहुत ही जमीनों का स्वामी बन जाता है ।।
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