वर वधु की कुण्डली मिलान में वर्ण, वश्य, गण एवं नाड़ी आदि दोष का परिहार ।। var vadhu ki kundali me varnadi dosh parihar.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, वर-वधु की कुण्डली मिलान में जो गण आदि मिलान किया जाता है, उसे बहुत गम्भीरता से मिलान करना चाहिये । अगर इस मिलान में कोई दोष हो और विवाह करना ही हो तो उस दोष का परिहार कैसे हो सकता है यह जानना भी अत्यावश्यक होता है ।।
आइये सबसे पहले हम योनि दोष का परिहार के विषय में जानते हैं । भकूट और वश्य कूटों में से कोई एक भी यदि शुभ (ठीक) हो तो योनिदोष का परिहार हो जाता हैं ।।
अगर वर-वधु की कुण्डली मिलान में तारा दोष हो तो उसका परिहार वर कन्या के राशीशों नवमांशेशों की मैत्री या एकता के अलावा तारा दोष का दूसरा कोई परिहार नहीं हैं ।।
अगर वश्य दोष हो तो उसका परिहार वर कन्या की राशियों की योनि मैत्री हो तो वश्य दोष दूर हो जाता हैं ।।
वर्ण दोष के परिहार की बात करें तो वर की राशि के वर्ण से कन्या की राशि का वर्ण उत्तम होने पर वर्ण दोष होता हैं । लोकिन यदि वर के राशीश का वर्ण कन्या के राशीश के वर्ण से उत्तम हो तो वर्ण दोष का परिहार हो जाता हैं ।।
ग्रहों के वर्ण इस प्रकार होते हैं जैसे सूर्य का वर्ण क्षत्रिय, चन्द्र का वैश्यः, मंगल का क्षत्रिय, बुध का शुद्र, गुरू का ब्राह्मण, शुक्र का ब्राह्मण और शनि का शूद्र होता है ।।
राशीश दोष का परिहार भकूट शुभ होने पर (यानि द्विद्वादश, नवंपचम और शताष्टक का अभाव होन पर) राशीश दोष दूर हो जाता हैं ।।
नाड़ी दोष के परिहार की बात करें तो नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है । जैसे वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है ।।
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार हो जाता है । दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब भी परिहार होता है । शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गण दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है ।।
ज्योतिष के ग्रन्थ चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है ।।

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, वर-वधु की कुण्डली मिलान में जो गण आदि मिलान किया जाता है, उसे बहुत गम्भीरता से मिलान करना चाहिये । अगर इस मिलान में कोई दोष हो और विवाह करना ही हो तो उस दोष का परिहार कैसे हो सकता है यह जानना भी अत्यावश्यक होता है ।।
आइये सबसे पहले हम योनि दोष का परिहार के विषय में जानते हैं । भकूट और वश्य कूटों में से कोई एक भी यदि शुभ (ठीक) हो तो योनिदोष का परिहार हो जाता हैं ।।
अगर वर-वधु की कुण्डली मिलान में तारा दोष हो तो उसका परिहार वर कन्या के राशीशों नवमांशेशों की मैत्री या एकता के अलावा तारा दोष का दूसरा कोई परिहार नहीं हैं ।।
अगर वश्य दोष हो तो उसका परिहार वर कन्या की राशियों की योनि मैत्री हो तो वश्य दोष दूर हो जाता हैं ।।
वर्ण दोष के परिहार की बात करें तो वर की राशि के वर्ण से कन्या की राशि का वर्ण उत्तम होने पर वर्ण दोष होता हैं । लोकिन यदि वर के राशीश का वर्ण कन्या के राशीश के वर्ण से उत्तम हो तो वर्ण दोष का परिहार हो जाता हैं ।।
ग्रहों के वर्ण इस प्रकार होते हैं जैसे सूर्य का वर्ण क्षत्रिय, चन्द्र का वैश्यः, मंगल का क्षत्रिय, बुध का शुद्र, गुरू का ब्राह्मण, शुक्र का ब्राह्मण और शनि का शूद्र होता है ।।
राशीश दोष का परिहार भकूट शुभ होने पर (यानि द्विद्वादश, नवंपचम और शताष्टक का अभाव होन पर) राशीश दोष दूर हो जाता हैं ।।
नाड़ी दोष के परिहार की बात करें तो नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है । जैसे वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है ।।
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार हो जाता है । दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब भी परिहार होता है । शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गण दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है ।।
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