सिंह लग्न की कुंडली के विषय में कुछ विशेष, शुभाशुभ ग्रह ।। Singh Lagna Ki Kundali Me Kuchh Vishesh.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, जिन व्यक्तियों के जन्म समय में चन्द्रमा सिंह लगन में होता है, वे सिंह राशि के जातक कहे जाते हैं । इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक होता है । दिशा पूर्व, चिन्ह शेर, स्वभाव स्थिर, तत्व अग्नि, राशि सिंह एवं वर्ण क्षत्रिय होता है । इन तत्वों के आधार पर हम सिंह लग्न के जातकों के बारे में चर्चा करने का प्रयास करेंगे । सिंह लग्न के जातकों का व्यक्तित्व, विशेषतायें, शुभ अशुभ ग्रहों के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा हम आज करेंगे ।।
सिंह लग्न के जातकों का व्यक्तित्व एवं विशेषताएँ ।। Singh Lagn jatak, Leo Ascendent.
मित्रों, सामान्य तौर पर इनका सीना चौड़ा होता है । इनकी चाल गर्वीली होती है, किसी से आज्ञा लेना, या अधीनस्थ रहना पसंद नहीं करते । इन जातकों को आज्ञा देना पसंद होता है । ये कुशल प्रबंधक होते हैं एवं सरकारी नौकरी के कारक माने जाते हैं । ऐसे जातक अक्सर शांत बने रहते हैं और यदि किसी से उलझ जाएँ तो प्रतिद्वंदी को धूल चटाने में जरा देर नहीं करते । इन्हें अपने कार्य एवं खाने और घूमने का बहुत शौक होता है ।।
सिंह राशि के जातक को आराम करना पसंद होता है । स्थिर स्वभाव का होने की वजह से ये किसी भी कार्य को करने में जल्दबाजी नहीं दिखाते हैं । आपने जंगल के शेर को यदि देखा हो तो जानते होंगे की शेर जंगल का राजा होता है । इसे किसी तरह की छेड़खानी पसंद नहीं होती है और इसी वजह से इनके लिए शिकार भी शेरनियाँ करती है । ये केवल बैठ कर खाना पसंद करता है । अग्नि तत्त्व एवं क्षत्रिय वर्ण केवल तभी देखने को मिलता है जब शेर के परिवार पर कोई खतरा हो ।।
शेर की प्लानिंग इस तरह देखी जा सकती है, कि ये शिकार के लिए ऐसे जानवर को ढूंढ़ता है जो कमजोर हो, इसके समीप हो । फिर कुछ ही पलों में शिकार करके काम तमाम कर देता है और आराम से बैठ जाता है । सिंह लग्न के जातक यदि उच्च पदासीन हों तो अपने नीचे काम करने वालों का विशेष ध्यान रखते हैं । मुसीबत में उनका साथ देते हैं एवं मुश्किल समय में लिए गए इनके निर्णय सटीक साबित होते हैं । इन्ही गुणों से इनके मैनेजमेंट स्किल्स की सराहना की जाती है ।।
सिंह लग्न के नक्षत्र ।। Singh Lagn Nakshtra.
सिंह लग्न के अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वाफ़ाल्गुनी के चारों चरण, और उत्तराफ़ाल्गुनी का पहला चरण आता है । इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है । लग्न स्वामी - सिंह, चिन्ह - शेर, तत्व - अग्नि, जाति - क्षत्रिय, लिंग - पुरुष, अराध्य अथवा इष्ट - हनुमानजी एवं देवी गायत्री । यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ या बारहवें भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ फलदायी हो जाते हैं ।।
ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमें से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । परन्तु इस लग्न की कुंडलियों में विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा जब यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।।
इस लग्न की कुंडलियों में लग्नेश होने के कारण सूर्य कारक ग्रह बनता है । जबकि मंगल चतुर्थेश और नवमेश होकर इस लग्न कुंडली में अति योगकारक होता है । गुरु पंचमेश और अष्टमेश होने से यहाँ कारक ग्रह ही बनता है । शुक्र तृतीयेश और दशमेश होता है अतः यहाँ यह सम ग्रह बनता है ।।
सिंह लग्न के लिए अशुभ या मारक ग्रह ।। Ashubh Ya Marak grah Sinh Lagn, Leo Ascendant.
बुध दुसरे और ग्यारहवें घर का मालिक होने से इस लग्न कुंडली में मारक ग्रह बनता है । शनि छठे और सातवें घर का मालिक और लग्नेश का अति शत्रु होने से मारक ग्रह तो बनता है, परन्तु इसका प्लेसमेन्ट ही निर्धारित करता है, कि यह शुभ फल देगा अथवा अशुभ । ऐसे में कभी-भी कोई भी निर्णय लेने से पूर्व किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी कुंडली का विस्तृत विवेचन अवश्य करवाएं ।।

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, जिन व्यक्तियों के जन्म समय में चन्द्रमा सिंह लगन में होता है, वे सिंह राशि के जातक कहे जाते हैं । इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक होता है । दिशा पूर्व, चिन्ह शेर, स्वभाव स्थिर, तत्व अग्नि, राशि सिंह एवं वर्ण क्षत्रिय होता है । इन तत्वों के आधार पर हम सिंह लग्न के जातकों के बारे में चर्चा करने का प्रयास करेंगे । सिंह लग्न के जातकों का व्यक्तित्व, विशेषतायें, शुभ अशुभ ग्रहों के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा हम आज करेंगे ।।
सिंह लग्न के जातकों का व्यक्तित्व एवं विशेषताएँ ।। Singh Lagn jatak, Leo Ascendent.
मित्रों, सामान्य तौर पर इनका सीना चौड़ा होता है । इनकी चाल गर्वीली होती है, किसी से आज्ञा लेना, या अधीनस्थ रहना पसंद नहीं करते । इन जातकों को आज्ञा देना पसंद होता है । ये कुशल प्रबंधक होते हैं एवं सरकारी नौकरी के कारक माने जाते हैं । ऐसे जातक अक्सर शांत बने रहते हैं और यदि किसी से उलझ जाएँ तो प्रतिद्वंदी को धूल चटाने में जरा देर नहीं करते । इन्हें अपने कार्य एवं खाने और घूमने का बहुत शौक होता है ।।
सिंह राशि के जातक को आराम करना पसंद होता है । स्थिर स्वभाव का होने की वजह से ये किसी भी कार्य को करने में जल्दबाजी नहीं दिखाते हैं । आपने जंगल के शेर को यदि देखा हो तो जानते होंगे की शेर जंगल का राजा होता है । इसे किसी तरह की छेड़खानी पसंद नहीं होती है और इसी वजह से इनके लिए शिकार भी शेरनियाँ करती है । ये केवल बैठ कर खाना पसंद करता है । अग्नि तत्त्व एवं क्षत्रिय वर्ण केवल तभी देखने को मिलता है जब शेर के परिवार पर कोई खतरा हो ।।
शेर की प्लानिंग इस तरह देखी जा सकती है, कि ये शिकार के लिए ऐसे जानवर को ढूंढ़ता है जो कमजोर हो, इसके समीप हो । फिर कुछ ही पलों में शिकार करके काम तमाम कर देता है और आराम से बैठ जाता है । सिंह लग्न के जातक यदि उच्च पदासीन हों तो अपने नीचे काम करने वालों का विशेष ध्यान रखते हैं । मुसीबत में उनका साथ देते हैं एवं मुश्किल समय में लिए गए इनके निर्णय सटीक साबित होते हैं । इन्ही गुणों से इनके मैनेजमेंट स्किल्स की सराहना की जाती है ।।
सिंह लग्न के नक्षत्र ।। Singh Lagn Nakshtra.
सिंह लग्न के अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वाफ़ाल्गुनी के चारों चरण, और उत्तराफ़ाल्गुनी का पहला चरण आता है । इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है । लग्न स्वामी - सिंह, चिन्ह - शेर, तत्व - अग्नि, जाति - क्षत्रिय, लिंग - पुरुष, अराध्य अथवा इष्ट - हनुमानजी एवं देवी गायत्री । यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ या बारहवें भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ फलदायी हो जाते हैं ।।
ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमें से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । परन्तु इस लग्न की कुंडलियों में विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा जब यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।।
इस लग्न की कुंडलियों में लग्नेश होने के कारण सूर्य कारक ग्रह बनता है । जबकि मंगल चतुर्थेश और नवमेश होकर इस लग्न कुंडली में अति योगकारक होता है । गुरु पंचमेश और अष्टमेश होने से यहाँ कारक ग्रह ही बनता है । शुक्र तृतीयेश और दशमेश होता है अतः यहाँ यह सम ग्रह बनता है ।।
सिंह लग्न के लिए अशुभ या मारक ग्रह ।। Ashubh Ya Marak grah Sinh Lagn, Leo Ascendant.
बुध दुसरे और ग्यारहवें घर का मालिक होने से इस लग्न कुंडली में मारक ग्रह बनता है । शनि छठे और सातवें घर का मालिक और लग्नेश का अति शत्रु होने से मारक ग्रह तो बनता है, परन्तु इसका प्लेसमेन्ट ही निर्धारित करता है, कि यह शुभ फल देगा अथवा अशुभ । ऐसे में कभी-भी कोई भी निर्णय लेने से पूर्व किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी कुंडली का विस्तृत विवेचन अवश्य करवाएं ।।
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