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अतीव दुर्लभं श्रीकपालीश्वराष्टकम् ।। Shri Kapalishvara Ashtakam.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, आज श्रावण कृष्ण पक्ष कि चतुर्दशी है । सोमवार है, और श्रावण के सोमवार को तो वैसे भी किसी प्रदोष से ज्यादा महत्त्व शिव पूजन में होता है । उपर से आज मासशिवरात्रि व्रत भी है । इन सभी का संयोग क्या कुछ नहीं दे सकता आपको । आज आप शिव मंदिर जायें और महादेव का पूजन पुरी श्रद्धा से करें आपके सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध होंगे ।।

प्रदोषे पार्वतीनाथे महत्तन्वति ताण्डवम् । प्रदोष को शिव जी हिमालय पर ताण्डव करते हैं । शारदा वीणा बजाती है, विष्णु मृदंग, रमा (लक्ष्मी) संगीत गायन, ब्रह्मा ताली बजाते हैं और कृष्ण मुरली बजाते हैं । किसी न किसी रूप में सभी देवता भी भगवान शिव का दर्शन-सेवन करते हैं । आज शिव पूजन के उपरान्त पञ्च नमस्कार, भक्तिपूर्वक साष्टांग तथा भगवान शिव का चरणोदक (शिवलिंग का जल माथे से लगाना) जीवन के सभी कामनाओं कि पूर्ति कर देता है ।।


वैसे तो कहा गया है, कि - दर्शनं वन्दनं लिङ्गप्रदक्षिणञ्च तर्पणम् । प्रदोषे ऋणमुक्तेः स्यात् भवतूलमहानिलः । भुक्तिर्मैथुनमभ्यङ्गं हरिदर्शनकीर्तने । व्यर्थालापं प्रदोषे तु वर्जयेद्वैदिको जनः ॥ सबकुछ मिल जाता है इसलिये श्रेष्ठजनों को आज व्यर्थ आलाप नहीं करना चाहिये बल्कि भजन-पूजन करना चाहिये । ऐसा करने से भक्त हजारों वर्षों तक शिवलोक में सुखपूर्वक निवास करता है । यथा - दिव्यवर्षसहस्रंतु शिवलोके महीयते ।।

मित्रों, कहा जाता है, कि माया बहुत ही प्रबल होती है । भक्तों कि तपस्या को कभी-किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देती है । परन्तु प्रदोष, श्रावण सोमवार और सोमवार की शिवरात्रि को किये गये शिवपूजन से इस माया का प्रभाव निरस्त हो जाता है । यथा - अहो बलवती माया येन शैवी महातिथिः । नोपास्यते जनै-र्मूढैः अतिमूर्खैरिव त्रयी ।।

एक बिल्वपत्र से ही सही पर आज शिव का पूजन तो अवश्य ही करना चाहिये । वैसे तो दर्शन ही पर्याप्त होता है परन्तु पूजन से ऋण-रोगादि-दारिद्रद्य-पापक्षुदपमृत्यवः इत्यादि सभी का नाश हो जाता है । एकेन बिल्व-पत्रेण शिव-लिङ्गार्चने कृते । त्रैलोक्ये तस्य पुण्यस्य को वा सादृश्यमृच्छति ।। अतीव दुर्लभं तत्र शिवलिङ्गस्य दर्शनम् । सुदुर्लभतरं तत्र पूजनं परमेशितुः ।।


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मित्रों, कपालि को प्रशन्न करनेवाला यह स्तोत्र जो भक्त शिव पूजन के उपरान्त प्रदोष, श्रावण सोमवार और सोमवार की शिवरात्रि को पढ़ता है, उसके सभी अभीष्ट कामनाओं कि सिद्धि हो जाती है । पूर्णतः भक्ति में तल्लीन होकर जो भक्त इस स्तोत्र का गायन करता है, उसको महादेव का दर्शन (सान्निध्य) प्राप्त होता है । यथा - कपालि तुष्टिदायकं महापदि प्रपालकं, त्वभीष्ट-सिद्धि-दायकं विशिष्ट-मङ्गलाष्टकम् । पठेत्सुभक्तितः कपालि सन्निधौ क्रमात् , अवाप्य सर्वमायुरादि मोदते सुमङ्गलम् ॥१०॥

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अथ श्रीकपालीश्वर अष्टकम् आरम्भः ।।

कपालि-नामधेयकं कलापि-पुर्यधीश्वरं
     कलाधरार्ध-शेखरं करीन्द्र-चर्म-भूषितम् ।
कृपा-रसार्द्र-लोचनं कुलाचल-प्रपूजितं
     कुबेर-मित्रमूर्जितं गणेश-पूजितं भजे ॥१॥

भजे भुजङ्ग-भूषणं भवाब्धि-भीति-भञ्जनं
     भवोद्भवं भयापहं सुखप्रदं सुरेश्वरम् ।
रवीन्दु-वह्नि-लोचनं रमा-धवार्चितं वरं
     ह्युमा-धवं सुमाधवी-सुभूषितं महागुरुम् ॥२॥

गुरुं गिरीन्द्र-धन्विनं गुह-प्रियं गुहाशयं
     गिरि-प्रियं नग-प्रिया-समन्वितं वर-प्रदम् ।
सुर-प्रियं रवि-प्रभं सुरेन्द्र-पूजितं प्रभुं
     नरेन्द्र-पीठ-दायकं नमाम्यहं महेश्वरम् ॥३॥

महेश्वरं सुरेश्वरं धनेश्वर-प्रियेश्वरं
     वनेश्वरं विशुद्ध-चित्त वासिनं परात्परम् ।
प्रमत्तवेष-धारिणं प्रकृष्ट-चित्स्वरूपिणं
     विरुद्ध-कर्म-कारिणं सुशिक्षकं स्मराम्यहम् ॥४॥

स्मराम्यहं स्मरान्तकं मुरारि-सेविताङ्घ्रिकं
     पुरारि-नाशन-क्षमं पुरारि रूपिणं शुभम् ।
स्फुरत्-सहस्र-भानु-तुल्य तेजसं महौजसं
     सु-चण्डिकेश पूजितं मृडं समाश्रये सदा ॥५॥

सदा प्रहृष्ट-रूपिणं सतां प्रहर्ष-वर्षिणं
      भिदा विनाश-कारण प्रमाणगोचरं परम् ।
मुदा प्रवृत्त-नर्तनं जगत्पवित्र-कीर्तनं
     निदानमेकमद्भुतं नितान्तमाश्रयेह्यहम् ॥६॥

अहं-ममादि दूषणं महेन्द्र-रत्न-भूषणं
     महा-वृषेन्द्र-वाहनं ह्यहीन्द्र-भूषणान्वितम् ।
वृषाकपि-स्वरूपिणं मृषा-पदार्थ-धारिणं
     मृकण्डुसूनु संस्तुतं ह्यभीतिदं नमामि तम् ॥७॥

नमामि तं महामतिं नतेष्टदान-चक्षणं
     नतार्ति-भञ्जनोद्यतं नगेन्द्र-वासिनं विभुम् ।
अगेन्द्रजा समन्वितं मृगेन्द्र विक्रमान्वितं
     खगेन्द्र-वाहन-प्रियं सुखस्वरूपमव्ययम् ॥८॥

सुकल्पकाम्बिका-पति-प्रियंत्विदं मनोहरं
     सुगूडकाञ्चिरामकृष्ण योगिशिष्य संस्तुतम् ।
महाप्रदोष पुण्यकाल कीर्तनात्शुभप्रदं
     भजामहे सदामुदा कपालि मङ्गळाष्टकम् ॥९॥

कपालि तुष्टिदायकं महापदि प्रपालकं
        त्वभीष्ट-सिद्धि-दायकं विशिष्ट-मङ्गलाष्टकम् ।
पठेत्सुभक्तितः कपालि सन्निधौ क्रमात्
     अवाप्य सर्वमायुरादि मोदते सुमङ्गलम् ॥१०॥

।। इति गूडलूर् श्रीरामकृष्णानन्द यतीन्द्र शिष्य श्री रामचन्द्रेण विरचितं श्री कपालीश्वराष्टकं सम्पूर्णम् ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

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