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चोर बदमाश, तथा लूटेरा भी बनाता है कुण्डली का अशुभ मंगल ।।

चोर बदमाश, तथा लूटेरा भी बनाता है कुण्डली का अशुभ मंगल ।। Ashubh Mangal Chor And Lutera Banata Hai.



मित्रों, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य को राजा, चन्द्रमा को मंत्री और मंगल को सेनापति माना गया है । मंगल लाल ग्रह मंगल के देवता भगवान् शिव के पुत्र स्वामी कार्तिकेय हैं । मंगल ग्रह को संस्कृत में अंगारक भी कहा जाता है जो लाल रंग का है । मंगल को भौम भी कहा जाता है, क्योंकि भूमि का पुत्र है । मंगल युद्ध के देवता हैं और ब्रह्मचारी कहे जाते हैं । मंगल को भूमि अर्थात पृथ्वी देवी की संतान माना जाता है ।।

मंगल वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी हैं और मनोगत विज्ञान अर्थात रुचका महापुरुष योग में एक शिक्षक की भूमिका में होते हैं । उनकी प्रकृति तमस गुण वाली बतायी गयी है और यह एक ऊर्जावान, आत्मविश्वास और अहंकार का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह है । मंगल का रंग लाल रंग या दीपक के लौ के रंग के सामान बताया जाता है । इसकी आकृति चतुर्भुज, एक त्रिशूल, मुगदर, कमल और एक भाला लिए हुए चित्रित किया जाता है । इनका वाहन एक भेड़ा है और यह मंगलवार का स्वामी हैं ।।

मित्रों, चोट-चपेट, मार-काट, हथियारों के विषय में, साहस, पराक्रम, वीरता, भाई-बन्धु, चोरी, धोखा (फरेब), गृहस्थी में सुख, मित्र, भाई, सगे-संबंधियों के साथ व्यवहार, लड़ने की शक्ति, आचरण आदि के विषय में जानने के संबंध में भी जन्मकुण्डली में मंगल का ही अध्ययन किया जाता है । शुभ मंगल वाला जातक सेना या पुलिस में अधिकारी बनता है और अशुभ मंगल वाला जातक बदमाश होता है, जो चोरी, राहजनी तथा लूटमार आदि करते हैं ।।

ज्योतिषीय सूत्रों के अनुसार मंगल सूर्य के बाद छठा बली ग्रह माना जाता है । इसके सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति मित्र ग्रह हैं तथा बुध एवं केतु शत्रु ग्रह हैं और राहु एवं शनि सम ग्रह हैं । मंगल की महादशा कुल 7 वर्ष की होती है और इसे छठे भाव का कारक ग्रह माना जाता है । यह मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच का होता है । अगर यह जन्मकुण्डली के चौथे और आठवें भाव में बैठा हो तो जातक को अशुभ फल देता है ।।

मित्रों, जन्मकुण्डली में मंगल 1, 2, 3, 5, 6, 7, 9, 10, 11 एवं 12वें भाव में बैठे तो शुभ माना जाता है । परन्तु कुण्डली में बुध या केतु यदि दूसरे भाव में बैठे हों और मंगल कहीं भी बैठा हो तो यह अशुभ हो जाता है और अशुभ ही फल भी देता है । छठे भाव का मंगल सूर्य को शुभ और केतु को अशुभ बना देता है । कुण्डली के प्रथम भाव पर शुभ मंगल का प्रभाव हो तो वह जातक को शुभ फल देता है । यदि कुण्डली में अशुभ राहू पर भी मंगल की दृष्टि हो तो राहु का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है । परन्तु यदि राहु मंगल को देखे तो अशुभ माना जाता है ।।

मंगल दसवें भाव में बैठा हो तो उसकी अष्टम दृष्टि पञ्चम भाव पर होती है, जो सन्तान के लिये शुभ नहीं होती । पहले तो सन्तान की सम्भावना को ही समाप्त कर देता है और यदि हो भी जाय तो सन्तानें जीवित नहीं रहती मृत्यु को प्राप्त हो जाती है । इतना ही नहीं यह मंगल जातक के भाई-भतीजों तक को मरवा डालता है । मंगल-केतु की युति हो या इनमें किसी प्रकार का कोई भी सम्बन्ध हो तो ऐसी स्थिति में दोनों का ही फल अशुभ होता है ।।


कहा जाता है, कि कुण्डली में मंगल का शुभ प्रभाव 45% होता है तो उसका अशुभ प्रभाव 55% तक हो सकता है । ज्यादातर मंगल का दु:ष्प्रभाव जातक पर 15 वर्ष तक होता है । मंगल दिन में प्रभावी रहता है तथा अशुभ हो तो पहले और आठवें भाव को भी अशुभ बना देता है । मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और बारहवें भाव में हो तो जातक मांगलिक होता है ।।

मित्रों, मांगलिक दोष जिस कुण्डली में हो मंगल जहाँ बैठा हो उसके सामने मंगल वाले स्थान को छोड़कर दूसरे स्थानों में पाप ग्रह हों तो दोष भंग हो जाता है । उस कुण्डली का मंगल दोष प्रभावी नहीं होता फिर वो कुण्डली दोष रहते हुये भी मंगल दोष रहित माना जाता है । केन्द्र अर्थात 1, 4, 7 एवं 10वें भाव में चन्द्रमा हो तो मंगल दोष दूर हो जाता है । शुभ ग्रह एक भी यदि केंद्र में हो तो सभी अरिष्ट भंग योग बना देता है ।।


मित्रों, यदि ऐसी स्थिति हो तो पीपल विवाह, कुंभ विवाह, शालिग्राम (नारायण) संग विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराकर फिर कन्या का विवाह अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करना चाहिये । जिस जातक के विवाह में देर हो रही हो, संतान न हो रही हो, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि जैसी समस्या हो तो मंगल यन्त्र का पूजन विधिवत करें ।।

मंगल-शनि के संबंध से तीसरा भाव नष्ट हो जाता है अर्थात तृतीयेश मतलब मारकेश कि दशा में भी कोई डर नहीं होगा । मंगल शुभ हो, तो पराक्रम, यश, प्रतिष्ठा, तेज, सन्तान, पारिवारिक सुख, सम्मान आदि प्रदान करता है । पूरा प्रयत्न करें कि वर-कन्या दोनों की ही कुण्डलियाँ मांगलिक हों । क्योंकि ऐसा हो तो दाम्पत्य जीवन सदा ही सुखमय एवं आनन्दमय रहता है ।।


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।।। नारायण नारायण ।।।

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