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मंगल प्रशन्न हो तो क्या नहीं देता अर्थात सबकुछ दे देता है ।। Mangal Grah Sabhi Kamnao Ko Purn Karata Hai.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,


मित्रों, ज्योतिष शास्त्र में मंगल शारीरिक शक्ति, आत्म-विश्वास, अहंकार, क्रोध एवं वीरता का प्रतीक माना गया है । मंगल रक्त, मांसपेशी और मज़्ज़ा का स्वामी ग्रह भी है । इसलिये जन्मकुण्डली में मंगल का शुभ होना जातक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के लिए आवश्यक और सुखकारी माना जाता है । मंगल की महादशा का कुल ०७ वर्ष का होता है ।।


कुण्डली में मंगल परमोच्च का हो, अपने उच्च स्थान में हो, मूल त्रिकोण में हो, स्वक्षेत्र में हो, किसी केन्द्र अथवा किसी त्रिकोण में हो, लाभ स्थान, धनस्थान में हो, सम्पूर्ण बल से युक्त हो, शुभ ग्रहों से दृष्ट हो अथवा शुभ अंश में हो तो अपनी महादशा में स्त्री, पुत्र का विशेष सुख जातक को देता है ।।


मित्रों, शुभ मंगल की दशा में जातक को भूमि से विशेष लाभ प्राप्त होता है । मकान बनवाने, जमीन खरीदने, गड़ा हुआ धन प्राप्ति का योग भी बनता है । ऐसा जातक अपने समाज में उत्तम श्रेणी का सम्मान प्राप्त करता है और अपने जाति का सिरमौर बन जाता है । इस दशा में अतिरिक्त आय अथवा धन प्राप्ति भी होती है ।।


इसका दोष कहें अथवा गुण मंगल की दशा धन का योग तो बनाती है किन्तु वह शुभ कार्यो की अपेक्षा क्रूर कार्यो से ही धनप्राप्ति करवाता है । भूमि की प्राप्ति, बुद्धि का विकास, पराक्रम, युद्ध की कुशलता, वन्धु वर्ग से सुख यथा सहयोग, कृषि कार्यो द्वारा लाभ मानसिक शान्ति तथा आय के अन्य कई स्रोत खुलते हैं ।।


मित्रों, ऐसा मंगल राज्य से लाभ करवाता है और धनधान्य आदि का अतुलनीय लाभ देता है । अधिक राज्यसम्मान, वाहन, वस्त्र आदि प्राप्त होते है और विदेश में अच्छा स्थान भी प्राप्त होता है । यदि मंगल केन्द्र में हो तथा तीनों बलों से युक्त हो तो जातक पराक्रम में द्रव्य लाभ तथा शत्रु पर विजय प्राप्त करता है । स्त्री-पुत्र वैभव तथा राजसम्मान भी इस जातक को प्राप्त होता है ।।


मंगल यदि अपनी नीच राशि में होकर उच्च नवांश में हो तो अपनी दशा में कृषि, भूमि, धन-धान्यादि का भरपूर सुख देता है । हाँ मंगल की अशुभ दशा में जातक का अपने ही बान्धवों से अवश्य ही विरोध हो जाता है । साथ ही घर में ही मकान का बंटवारा या भूमि सम्बन्धी मामलों में वह कोर्ट-कचहरी तथा मुकदमेबाजी में उलझ जाता है । मंगल की नीच राशि में होकर भी उच्च नवांश का होना उसे मुकदमेबाजी में विजय दिलाता है ।।


मित्रों, इस दशा में शस्त्रभय तथा चोरों का भी भय बना रहता है । शत्रुओं से, शास्त्रों से एवं झगड़े से भी यह जातक अर्थ लाभ कर लेता है । मंगल नीच राशि में हो, वक्री हो, अस्तगत हो, दुष्ट स्थान में हो, बलाबल से रहित हो, पापग्रहों से युक्त तथा दृष्ट हो, उच्च का होकर अपने नीच नवांश में हो तो उसकी दशा में पुत्र अथवा बंधू किसी कि मृत्यु होती है ।।


पत्नी से कलह भाइयों से वैमनस्य तथा अधिकारियों से उग्र मतभेद हो जाते है । इस प्रकार की मंगल की स्थिति में जातक को नई-नई चिंतायें घेरे रहती है । शस्त्र, अग्नि, पित्त प्रकोप, रुधिर सबंधी बीमारी या ज्वर, पक्षाधात मूर्छा इनका भय होता है । राजा, युद्ध, झुठाई ठगबाजी, चालाकी अनेक प्रकार के क्रूर कर्मो द्वारा धन संपादन करता है ।।


मित्रों, द्वादशस्थ मंगल की दशा में धन का हरण, राज्य से भय, स्थान, पुत्र स्त्री आदि का नाश तथा बंधू वर्ग का परदेशवास होता है । अष्टम स्थान स्थित मंगल की दशा में दुःख, बड़ा भय, विस्फोटक रोग, अन्न में अरुचि, स्थान हानि, विदेश गमन इत्यादि बातें होती है । मंगल की दशा में शुरुआत में कुछ सुख, मानहानि और धनहानि होती है । दशा के मध्य में राजभय तथा चोर आदि का भय रहता है ।।


परन्तु दशा के अंत में भाइयों से वियोग, पुत्र, धन, स्त्री आदि को कष्ट, गुल्म रोग, मूत्रादि रोग भी हो सकते है । यदि गोचर में भी मंगल उक्त अवस्था में आवे तो उपरोक्त फल विशेष रूप से होते है । किसी की भी जन्मकुण्डली में मंगल यदि शुभ हो तो बल्ले-बल्ले है । परन्तु यदि मंगल की महादशा हो और आपको कष्ट-पे-कष्ट भोगने पड़ रहे हों तो इन उपायों को करना चाहिये ।।


मित्रों, मंगल की दशा में उसके विषम प्रभाव को कम करने और शुभ प्रभाव को बढ़ाने के लिए मंगलवार का व्रत, मंगल के मंत्रो का जप, लाल मसूर की दाल का दान करना चाहिये । इस के साथ ही मंगलवार को हनुमान चालीसा के साथ हनुमान जी की पूजा (चोला चढ़ाना, घी अथवा चमेली के तेल का दीप जलाना) अर्चना से भी अद्भुत लाभ होता है ।।



मंगल ग्रह के शुभाशुभ प्रभाव को बढ़ाने के लिए मूंगा रत्न या तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर सकते हैं । परन्तु आप आर्टिकल पढ़ने के साथ ही फाइनल निर्णय के लिये जन्मकुण्डली के और भी ग्रहों की स्थिति एवं उनके भी बलाबल को ध्यान में रखकर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श करके ही कोई उपाय करें ।।


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।।। नारायण नारायण ।।।

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